Categories


MENU

We Are Social,
Connect With Us:


Categories


MENU

We Are Social,
Connect With Us:

☀️
–°C
Fetching location…

लखनऊ के गोदौली हत्याकांड में सीबीआई कोर्ट का बड़ा फैसला, पति-पत्नी को फांसी की सजा

लखनऊ के गोदौली हत्याकांड में सीबीआई कोर्ट का बड़ा फैसला, पति-पत्नी को फांसी की सजा

Share this:

भूमि विवाद में परिवार के ही छह लोगों की हत्या के दोषी, दोनों फांसी सजायाफ्ता के पास हाईकोर्ट का दरवाजा खुला

Lucknow news : बंथरा थाना क्षेत्र के गोदौली गांव में हुए जघन्य हत्याकांड में सीबीआई की विशेष अदालत ने मुख्य अभियुक्त अजय सिंह और उसकी पत्नी रूपा सिंह को फांसी की सजा सुनाई है। यह सजा इलाहाबाद हाईकोर्ट की पुष्टि के अधीन रहेगी। कोर्ट ने इस मामले को समाज को झकझोर देने वाला अपराध करार देते हुए कहा कि इसे दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में रखा गया है, जिसमें मृत्युदंड आवश्यक था।

यह है पूरा मामला

यह हत्याकांड 30 अप्रैल 2020 को हुआ था, जब पारिवारिक जमीन विवाद के चलते अजय सिंह और उनकी पत्नी रूपा सिंह ने अपने ही परिवार के छह लोगों की निर्ममता से हत्या कर दी थी। जिनकी हत्या की गई, उनमें अजय के माता-पिता अमर सिंह और रामदुलारी, भाई अरुण सिंह, भाभी राम सखी और उनके दो मासूम बच्चे सौरभ और सारिका शामिल थे। हत्याओं को धारदार हथियार और तमंचे से अंजाम दिया गया था।

कठोरतम सजा

सीबीआई की विशेष अदालत ने इस नृशंस हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त अजय सिंह और रूपा सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 के तहत फांसी की सजा सुनाई। इसके अलावा, उन्हें एक-एक लाख रुपए का अर्थदंड भी लगाया गया। यदि अर्थदंड का भुगतान नहीं किया जाता, तो अजय सिंह को एक साल और रूपा सिंह को एक माह का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतना होगा। धारा 120 (बी) के तहत दोनों को आजीवन कारावास और 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। इसके साथ ही आयुध अधिनियम के तहत अजय सिंह को तीन साल के साधारण कारावास और पांच हजार रुपए का अर्थदंड भी दिया गया।

फांसी के लिए हाईकोर्ट की मुहर जरूरी

विशेष न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि यह मृत्युदंड की सजा तब तक निष्पादित नहीं होगी, जब तक इलाहाबाद हाईकोर्ट इसकी पुष्टि नहीं कर देता। साथ ही, दोषियों को निर्णय की एक प्रति निःशुल्क प्रदान करने और 30 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में अपील करने का अधिकार दिया गया है।

जानें पीड़िता ने क्या कहा

इस घटना की मुख्य गवाह और पीड़िता गुड्डी सिंह ने इस फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा, यह मेरे परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हमने बहुत दर्द सहा है, लेकिन अदालत के इस फैसले से हमें उम्मीद बंधी है कि दोषियों को उनका अंजाम मिलेगा।

सरकारी वकील बोले – ऐतिहासिक फैसला

सरकारी वकील एमके सिंह ने इसे ऐतिहासिक निर्णय करार देते हुए कहा कि यह फैसला समाज में कानून और न्याय के प्रति लोगों का विश्वास और मजबूत करेगा। इतने जघन्य अपराध के लिए सख्त सजा जरूरी थी, ताकि भविष्य में कोई भी इस तरह के अपराध करने से पहले सौ बार सोचे।

25 साल में केवल 8 को फांसी

वर्ष 2000 से अब तक 2,405 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई, मगर सिर्फ आठ लोगों को ही वास्तव में फांसी दी गई। भारत में फांसी की सजा मिलने के मामले बढ़े जरूर हैं, लेकिन अंतिम रूप से फांसी दिए जाने की दर बहुत कम है। नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में ट्रायल कोर्ट ने 165 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई, जो पिछले 22 वर्षों में सबसे ज्यादा थी। वर्ष 2000 से अब तक 2,405 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन इनमें से केवल आठ लोगों को ही वास्तव में फांसी दी गई। इसका मुख्य कारण यह है कि अधिकांश मामलों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद सजा कम कर दी जाती है। निर्भया कांड (2012), धनंजय चटर्जी (2004), याकूब मेनन (2015), अफजल गुरु (2013) और अजमल कसाब (2012) उन मामलों में शामिल हैं, जहां फांसी की सजा का निष्पादन हुआ। जिनमें निर्भया कांड के चार दोषियों को साल 2020 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

Share this:

Latest Updates