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सोचने की दिशा बदलने से बदल जाती है जीवन की दिशा

सोचने की दिशा बदलने से बदल जाती है जीवन की दिशा

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राजीव थेपड़ा

मनुष्य की कठिनाई है कि वह अनुकूलता को ही जीवन समझता है और प्रतिकूलता को समस्या ! किन्तु, प्रतिकूलता जैसी कोई चीज होती ही नहीं ! घटनाओं को प्रतिकूल समझनेवाले हमारे भाव होते हैं। इस प्रकार जो हमारे अनुकूल है, वह तो सही है। किन्तु इसके विपरीत कोई चीज प्रतिकूल लगती है, तो वह समस्या है ! या हमारा भाग्य खराब है ! जब हम किसी चीज को समस्या समझना शुरू करते हैं, तो वह समस्या हमें अपनी लपेट में ले लेती है ! किन्तु उसे केवल एक सामान्य घटनाक्रम के रूप में देखें, तो वह केवल एक खेल के रूप में दिखाई देगी।

यूं भी देखा जाये, तो संघर्ष के बिना जीवन में जीवन जैसा कुछ बचता ही नहीं ! जीवन में हर दिन कुछ ना कुछ घटता रहता है, हर दिन कुछ-कुछ नयी परिस्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं। …तो, अगर यदि सब कुछ स्मूथ सा चलता रहता है, तब तो हमें कोई कठिनाई नहीं आती ! लेकिन, जहां भी तनिक-सी कुछ भी गड़बड़ होती है, जिससे हमारी चाल में, हमारी सोच में, हमारी दैनिक दिनचर्या में कोई व्यवधान उत्पन्न होता है, तो हमें वह समस्या लगने लगती है ! जबकि, ऐसा बिलकुल भी नहीं है।

जीवन में हर दिन उत्पन्न होनेवाले नये या पुराने व्यवधान हमारे मस्तिष्क को और ज्यादा सामर्थ्यवान बनाते हैं। हमारी देह की तरंगों को उससे जो कम्पन मिलता है, उससे हमारी देह में स्फूर्ति और ताजगी बनी रहती है और हमारा मस्तिष्क लगातार इन सब से रूबरू होते हुए सदैव ऊर्जावान बना रहता है। किन्तु, हम सबको इसका कोई भान ही नहीं होता कि हमारे समक्ष यह जो कुछ भी घट रहा है, उस पर हमारी प्रतिक्रिया ही हमारे जीवन का सार है ! कहने का तात्पर्य यह है कि हम किसी भी बात पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं, वही हमारी समस्या और हमारा समाधान है ! हमारी अनुचित प्रतिक्रिया ही समस्या है ! और हमारी उचित प्रतिक्रिया ही समाधान है !

इसे दूसरे शब्दों में सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष के रूप में भी लिया जा सकता है। यदि हम समस्त विषयों के प्रति सकारात्मक हैं, तो समस्या है ही नहीं ! किन्तु, यदि नकारात्मक हैं, तो समस्या ही समस्या है ! इस प्रकार जीवन जो है, वह विभिन्न घटनाओं का एक समूचा संजाल है और हमारे पूरे जीवन में सम्भवतः लाखों लाख घटनाएं घटती हैं। हमारे निकटतम से लेकर हमारे बहुत दूर दूरस्थ तक भांति-भांति की सूचनाओं से हम उन सब से रूबरू होते हैं। किन्तु बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो आवश्यकता अनुरूप प्रतिक्रिया देते हैं। किन्तु, बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो जहां प्रतिक्रिया की कोई आवश्यकता नहीं, वहां भी वह प्रतिक्रिया देते हैं। …तो, जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप भी एक समस्या है और वह हस्तक्षेप घटनाओं के प्रति भी हो सकता है, लोगों के प्रति भी हो सकता है, इसी प्रकार वह समस्याओं के प्रति भी हो सकता है।

इस विषय पर एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण बात हमें सदा सर्वदा हेतु समझ लेनी चाहिए कि यदि जीवन का निर्वाह उचित तरीके से करना चाहते हैं, तो हमें हर विषय में, हर बात में, हर घटना में तत्क्षण ही उसमें छिपी सकारात्मकता को ढूंढ ही लेना चाहिए, क्योंकि जैसे हर प्रश्न अपने आप में एक उत्तर है। समस्या भी उसी प्रकार है। जैसे प्रश्नों में ही उनका उत्तर छिपा होता है, उसी प्रकार समस्या में भी उसका समाधान छिपा होता है। बस, हमें उसे टटोलना आना चाहिए।

अपने जीवन में भी हम सब देखते होंगे कि बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो बड़ी से बड़ी समस्या में भी हमें “कूल” दिखाई पड़ते हैं! शांत चित्त ! …और, बहुत सारे लोग ऐसे भी होते हैं, जो थोड़ी-सी कठिनाई आते ही उग्र हो जाते हैं ! अपने भाग्य को दोष देने लगते हैं ! जबकि, हमारा यह आचरण सर्वथा अनुचित है ! हमें अपने सम्मुख घटनेवाले हर घटनाक्रम अथवा हमारे स्वयं के साथ होनेवाली हर घटना पर साक्षी भाव से दृष्टि रखनी चाहिए और कोई भी विषय या घटना सामने आते ही प्रथमत: तो तत्काल उस पर प्रतिक्रिया देनी ही नहीं चाहिए ! कुछ क्षण हम उसके साथ बिता लें और उस पर शांत चित्त से विचार कर लें, तो हमारी सूझ हमें उसके बारे में लगभग एक सही दिशा-बोध प्रदान करती है।

इस प्रकार हमारे भीतर के साक्षी भाव द्वारा हमें अंधेरे के बजाय प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता है ! इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी भी विषय या घटना पर तत्काल उग्र प्रतिक्रिया उस विषय या घटना को और भी अधिक उलझा देता है और तब वह हमारे लिए समस्या बन जाती है ! वास्तव में यह विषय ऐसा है, जिसे किसी को भी बोल कर समझाया नहीं जा सकता। किन्तु, बातें तो करने के लिए होती हैं। इसी प्रकार विषय होते हैं, भिन्न-भिन्न भांति के विषय हमारे समक्ष उत्पन्न होते रहते हैं। हम उन पर विचार व्यक्त करते हैं…प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। …तो, यह विषय भी ऐसी ही एक बात की तरह ही है, जिस पर अभी बात की जा रही है। बाकी इससे जो कोई भी थोड़ी बहुत शिक्षा लेगा, उसके लिए भी समस्या नहीं ; अपितु समाधान प्रस्तुत होंगे और जो उल्टा लेगा, उसके लिए समाधान भी समस्या प्रतीत होंगे। जैसा कि हमारे साथ सदा होता है ! वस्तुतः सोचने की दिशा बदलने से जीने की दिशा बदल जाती है !!

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