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जीएसटी सुधारों पर कांग्रेस हमलावर, सरकार से मांगा हिसाब

जीएसटी सुधारों पर कांग्रेस हमलावर, सरकार से मांगा हिसाब

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New Delhi News : वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की बैठक में आठ साल पुराने ढांचे में बड़े बदलावों की केन्द्र की घोषणा के बावजूद इस फैसले से नाखुश कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया है कि यह कदम बहुत देर से उठाया गया है, क्योंकि जीएसटी का मूल डिजाइन शुरू से ही त्रुटिपूर्ण था।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘कांग्रेस लम्बे समय से जीएसटी के सरलीकरण की मांग करती रही है। लेकिन, मोदी सरकार ने वन नेशन, वन टैक्स को वन नेशन, नाइन टैक्स में बदल दिया। इसमें शून्य, पांच, बारह, अठारह और अट्ठाईस फीसदी के टैक्स स्लैब रखे गये। साथ ही 0.25, 1.5, तीन और छह फीसदी की विशेष दरें भी लागू की गयीं, जिससे व्यवस्था और जटिल हो गयी।’ खड़गे ने कहा कि कांग्रेस ने 2019 और 2024 के अपने घोषणापत्रों में जीएसटी 2.0 की मांग की थी, जिसमें तर्कसंगत दरें और सरल कर व्यवस्था शामिल थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि जीएसटी के जटिल नियमों के कारण एमएसएमई और छोटे कारोबारियों को भारी नुकसान हुआ है। 28 फरवरी 2005 को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने संसद में जीएसटी की औपचारिक घोषणा की थी और 2011 में जब वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी जीएसटी विधेयक लेकर आये थे, तब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसका विरोध किया था। नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी जीएसटी का विरोध किया था, लेकिन आज उनकी ही केन्द्र सरकार जीएसटी के रिकॉर्ड कलेक्शन का जश्न मना रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि मोदी सरकार ने इतिहास में पहली बार किसानों पर टैक्स लगाया। दूध-दही, आटा-अनाज, बच्चों की किताबें-पेंसिल, आॅक्सीजन, बीमा और अस्पताल खर्च जैसी रोजमर्रा की वस्तुओं पर भी जीएसटी लगाया गया। इसी कारण कांग्रेस ने इसे गब्बर सिंह टैक्स का नाम दिया। जीएसटी का लगभग चौंसठ फीसदी गरीब और मध्यम वर्ग की जेब से आता है, जबकि अरबपतियों से केवल तीन फीसदी वसूला जाता है। इसके साथ ही कॉरपोरेट टैक्स की दर तीस फीसदी से घटा कर 22 फीसदी कर दी गयी।
उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में आयकर वसूली में 240 फीसदी और जीएसटी वसूली में 177 फीसदी की वृद्धि हुई है। खड़गे ने मांग की कि राज्यों को 2024-25 को आधार वर्ष मान कर पांच वर्षों तक मुआवजा दिया जाये, क्योंकि दरों में कटौती से उनके राजस्व पर असर पड़ना तय है।

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