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क्या आप जानते हैं ? श्रीकृष्ण जन्मभूमि व ईदगाह का मालिकाना हक श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा ट्रस्ट के पास है

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मथुरा स्थित शाही ईदगाह हटाने की याचिका को जिला जज द्वारा गुरुवार मंजूरी देते ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा समिति के सचिव कपिल शर्मा एवं सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने ईदगाह सहित श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट का बताते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा ट्रस्ट जमीन का मालिकाना हक उसी के पास है। सरकारी दस्तावेज और नगर निगम का वॉटर टैक्स वही जमा करता है, यहां तक की शाही ईदगाह मस्जिद का मालिकाना हक भी सेवा ट्रस्ट के पास है, तहसील में सरकारी दस्तावेज में नाम अंकित है।

अवैध कब्जा हटाने की मांग

श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा समिति ने गुरुवार शाम इंटरनेशनल गेस्ट हाउस में मीडिया से बातचीत करते हुए श्री कृष्ण जन्मभूमि परिसर में बने अवैध निर्माण हटाने की मांग की। श्रीकृष्ण जन्मभूमि सेवा समिति के सचिव कपिल शर्मा ने कहा कि पहले से ही अवैध कब्जा हटाने को लेकर न्यायालय में भी प्रार्थना पत्र दिए गए थे, न्यायालय ने सहयोग किया था लेकिन कुछ लोगों द्वारा परिसर से अवैध कब्जा नहीं हटाया गया।

1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बना था

मामले में गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बना था। इसके बाद राजकीय अभिलेखों खसरा, खतौनी, जलकर, गृहकर, मूल्यांकन रजिस्टर आदि में सभी जगह आज तक भूमि स्वामी के रूप में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम अंकित हैं। संघ के उपमंत्री के बिना अधिकार किए गए उक्त समझौते को आधार बनाकर ईदगाह की इंतजामिया कमेटी द्वारा नगर पालिका में 1976 में नाम दर्ज कराने के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। इस मामले में नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी द्वारा जांच की गई, जिसके बाद समझौते को अवैध मानकर प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के पदाधिकारियों का दावा है कि शाही ईदगाह मस्जिद के नीचे भगवान श्रीकृष्ण का गर्भगृह है। इसके अलावा यहां से कई मूर्तियां मिली हैं, जिनका जिक्र राजकीय संग्रहालय में दर्ज है। सचिव कपिल शर्मा और सदस्य गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी दावा करते हैं कि जिस स्थान पर मस्जिद बनी है वह मंदिर के स्थान पर बनी हुई है।

ब्रिटिश शासन काल में हुई थी नीलामी, राजा पटनीमल ने खरीदा था जन्मभूमि को

आपको बता दें कि ब्रिटिश शासन काल में 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीदा था। 1940 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब मथुरा आए तो श्रीकृष्ण जन्म स्थान की दुर्दशा को देखकर दुखित हुए। स्थानीय लोगों ने भी मदन मोहन मालवीय जी से कहा यहां भव्य मंदिर बनना चाहिए। मदन मोहन मालवीय ने मथुरा के उद्योगपति जुगल किशोर बिरला को जन्मभूमि पुनरुद्वार के लिए पत्र लिखा था। इसके बाद 21 फरवरी 1951 में श्री कृष्ण जन्म भूमि ट्रस्ट की स्थापना की। गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी ने बताया कि उन्होंने कहा कि शुरू से ही पटनीमल परिवार यहां रहता था। 1944 में माननीय मदन मोहन मालवीय जी, प्रोफेसर साहब और गणेश दत्त बाजपेई के नाम से रजिस्ट्री हुई। बिरला परिवार यहां पधारे, उससे पहले हनुमान प्रसाद पोद्दार एक यात्रा पर यहां आए थे। उन्होंने लक्ष्मी नारायण हॉल में एक सभा रखी थी और परिसर का निरीक्षण भी किया था।

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