चीन के लाख विरोध, चेतावनी और हस्तक्षेप के बावजूद नेपाल पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा। चीन की बातों को दरकिनार करते हुए आखिरकार नेपाल के सत्ताधारी गठबंधन ने अमेरिकी सहयोग परियोजन को संसद ने बहुमत से पास कर दिया है। संसद की कार्यवाही में एमसीसी पारित करने के साथ ही व्याख्यात्मक टिप्पणी भी सदन से पारित कर दी गई। रविवार दोपहर से शुरू हुई संसद की कार्यवाही में 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक सहयोग संबंधी एमसीसी परियोजना पर चर्चा के बाद हुई वोटिंग में इसे बहुमत से पारित कर दिया गया। अमेरिका ने इस परियोजना को हर हाल में 28 फरवरी तक नेपाली संसद से पास करने का अल्टिमेटम दिया था। अल्टिमेटम के एक दिन पूर्व ही सत्ताधारी गठबंधन में नाटकीय ढंग से आए परिवर्तन के बाद इस परियोजना को संसद से मंजूरी दे दी गई।
नेपाल में चीन करवा रहा था विरोध
बता दें कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में रहे गठबंधन के दो प्रमुख घटक दल माओवादी और एकीकृत समाजवादी पार्टी शुरू से ही इस बात पर अड़े थे कि एमसीसी नेपाल के हित में नहीं है। यह नेपाल के लिए राष्ट्रघाती समझौता है। इसे स्वाकार नहीं करना चाहिए। इन दोनों दलों के विरोध के पीछे चीन का दबाब काम कर रहा था। चीन ने खुलेआम नेपाल को mcc नहीं स्वीकारने के लिए नेपाली राजनीतिक दलों पर दबाब डाला था। चीन का यह तर्क था कि अमेरिका एमसीसी के जरिए नेपाल में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाएगा और वहां से तिब्बत के जरिए, चीन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है। इसे लेकर चीन की सरकारी मीडिया के जरिए लगातार आपत्ति जताई जाने लगी थी।
नेपाल पर दबाव बनाये हुए था चीन
अमेरिकी परियोजना को नेपाल में मंजूरी ना मिले इसके लिए चीन नेपाल पर लगातार दबाव डाल रहा था। चाईनीज कम्यूनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग के प्रमुख सैंग टाओ (Sang Tao) हर दूसरे दिन नेपाल के सत्ताधारी नेताओं को फोन और वर्चुअल मीटिंग कर एमसीसी को अस्वीकृत करने के लिए दबाब डालते रहे। विदेश विभाग के अन्य उपप्रमुख और सहायक मंत्री तो लगभग रोज ही यहां के कम्यूनिस्ट नेताओं को फोन करते थे। यही वजह थी कि अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा सहित सत्तारूढ़ दल के नेता प्रचण्ड और माधव नेपाल को फोन कर, 28 फरवरी तक हर हाल में एमसीसी को संसद से पारित करने के लिए दबाब डाला. इतना ही नहीं अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री लू ने नेपाल सरकार और नेपाली राजनीतिक दलों के नेताओं को चेतावनी दी कि अगर संसद से एमसीसी पास नहीं होता है, तो इसे सीधे-सीधे चीन का हस्तक्षेप माना जाएगा और उसके बाद नेपाल के साथ कूटनीतिक संबंधों पर अमेरिका पुनर्विचार करने पर मजबूर हो जाएगा। अमेरिकी चेतावनी के बाद प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से लिया और सत्तारूढ गठबंधन तोड़कर भी, एमसीसी पास करने का प्रयास करने लगे।