पाकिस्तान के शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि अल्पसंख्यकों के प्रति कट्टरता और गलत व्यवहार ने पाकिस्तान की गलत तस्वीर दुनिया में प्रस्तुत की है। इस व्यवहार ने पाकिस्तानियों पर असहिष्णु, हठधर्मी और कठोर होने का लेबल लगा दिया है। पाकिस्तानी शीर्ष कोर्ट ने लाहौर हाई कोर्ट के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें अहमदिया समुदाय के लोगों को ईशनिंदा का आरोपित करार दिया गया था।
अल्पसंख्यकों को उनके मतों से वंचित करना और पाकिस्तान के संविधान के खिलाफ
एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक अहमदिया समुदाय के लोगों पर आरोप था कि उन्होंने अपने उपासना स्थल की डिजाइन की और उसकी भीतरी दीवारों पर इस्लामिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस सैयद मंसूरी अली शाह के नौ पन्नों के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा, ‘देश के गैर मुसलमानों (अल्पसंख्यकों) को उनके मतों से वंचित करना और उन्हें उनके उपासना स्थलों की चारदीवारी में कैद करना लोकतांत्रिक संविधान के खिलाफ और हमारे इस्लामिक गणराज्य की भावनाओं के प्रतिकूल है।’
अहमदिया समुदाय के उपासना स्थलों को मस्जिद कहने और अजान देने को अपराध करार दिया था
शीर्ष कोर्ट के जस्टिस शाह ने अहमदी समुदाय के लोगों की तरफ से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि अहमदी समुदाय के उपासना स्थल का बिजली बिल मस्जिद के नाम पर आता है। साल 1984 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान सरकार ने अहमदिया समुदाय के उपासना स्थलों को मस्जिद कहने और अजान देने को अपराध करार दिया था। इसके लिए तीन साल कैद व जुर्माने का प्रावधान किया गया था। इसी आधार पर आरोप लगाए गए थे और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमे की कार्यवाही शुरू की गई थी।