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अनमोल इंसानियत : एक हिंदू के बुढ़ापे का सहारा बना ‘मुस्लिम बेटा’, मौत के बाद मुखाग्नि देकर निभाया…

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Humanity can’t be measured by money. दौलत से इंसानियत को नहीं तौला जा सकता। इंसानियत के रिश्ते जाति, भाषा और धर्म से परे होता है। पश्चिम बंगाल में समाज को प्रेरणा देने वाला ऐसा ही एक उदाहरण सामने आया है। पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में एक गरीब परिवार में जन्मे अनवर अली ने साबित किया है कि इंसानियत का रिश्ता खून के रिश्तों से बड़ा होता है। अनवर एक हिंदू पिता के बुढ़ापे का सहारा बने। हर तरह से उनके लिए बेटे का फर्ज निभाया। इस हिंदू पिता की मौत के बाद उन्हें मुखाग्नि देकर अपना अतिम फर्ज भी निभाया। पूरे इलाके में उनके इस कदम की लोग तहे दिल से सराहना कर रहे हैं।

मार्बल मिस्त्री हैं अनवर

श्रीरामपुर के डे स्ट्रीट के रहने वाले अनवर अली पेशे से मार्बल मिस्त्री हैं। श्रीरामपुर के ही रहने वाले सुजीत हालदार एक वैज्ञानिक थे। उनकी एक बेटी हैं चैताली, जो शादी के बाद साइप्रस में रहती है। वह भी एक वैज्ञानिक हैं। बेटी की शादी के बाद सुजीत एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित हो गए। इस दौरान उनकी बेटी वापस नहीं लौट पाईं। उनके और घर के पास ही रहने वाले अनवर अली सुजीत के बुढ़ापे का सहारा बन गए।

मुंहबोला बेटे ने निभाया अंतिम फर्ज

सुजीत ने अनवर को मुंहबोला बेटा मान लिया। जब-जब सुजीत की तबीयत खराब हुई अनवर ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। उन्हें जब भी खून की जरूरत पड़ी अनवर ने उन्हें अपना खून दिया। उन्होंने अपने बेटे होने का फर्ज बखूबी निभाया। इस दौरान सुजीत ने अपनी इच्छा व्यक्त की कि उनकी मौत के बाद उन्हें मुखाग्नि उनका मुस्लिम बेटा अनवर अली ही देगा। अनवर अली ने मुंहबोले पिता की इच्छा को पूरा किया। उनकी मौत के बाद बेटे का फर्ज निभाया और मुस्लिम होते हुए भी पूरे हिंदू रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार संपन्न कराया।

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