Jharkhand (झारखंड) में रेप और मर्डर के एक केस में आरोपी को निचली अदालत ने सजा-ए-मौत दी थी, लेकिन पूरे केस को हाई कोर्ट ने अलग नजरिए से देखा और साक्ष्यों के विश्लेषण के बाद आरोपी को बरी कर देने का आदेश दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि निचली अदालतों को अपराध की प्रकृति और उसकी भयावहता से प्रभावित नहीं होना चाहिए। अपराध कितना भी जघन्य क्यों न हो, लेकिन निष्कर्ष से पहले साक्ष्यों का विश्लेषण करना चाहिए। जस्टिस आर मुखोपाध्याय और जस्टिस संजय प्रसाद की अदालत ने कहा कि यह मामला भयानक और जघन्य है, लेकिन इसमें साक्ष्यों पर गौर नहीं किया गया। इसलिए आरोपी को बरी किया जाता है। अदालत ने छह साल की बच्ची की रेप के बाद हत्या के आरोपी दुर्गा सोरेन को मिली फांसी की सजा निरस्त कर उसे साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। मामले में वरीय अधिवक्ता एके कश्यप को हाईकोर्ट ने अमेक्स क्यूरी (अदालत को सहयोग करने वाला वकील) नियुक्त किया था।
निचली अदालत में परिस्थिति जन्य साक्ष्य के आधार पर सुनाया था फैसला
सुनवाई के दौरान उन्होंने दलील दी कि इस मामले में न तो बाजार में चना बेचने वाले की गवाही दर्ज कराई गई और न ही वैसे लोगों की गवाही हुई, जिसने दोषी को पीड़िता के साथ देखा था। बच्ची के साथ रहने वाली दो बच्चियों के बयान में भी विरोधाभास है। वहीं न्याय मित्र की ओर से अदालत को बताया गया कि निचली अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर यह फैसला सुनाया है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर तभी किसी को सजा दी जा सकती है, जब केस की कड़ी एक-दूसरे से मिले। इस मामले में ऐसा नहीं है।
जानिए क्या है मामला
सरायकेला-खरसावां के राजनगर थाना क्षेत्र में नवंबर 2011 में छह साल की बच्ची का दुष्कर्म के बाद मर्डर कर दिया गया था। इस मामले में पीड़िता के पिता ने दुर्गा सोरेन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इस मामले में निचली अदालत ने 2016 में दुर्गा सोरेन को फांसी की सजा सुनाई थी।