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बांग्लादेशी घुसपैठियों से आदिवासियों को बचाने के लिए भाजपा का दामन थामा : चम्पाई सोरेन

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Ranchi news, Jharkhand news : पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बागी नेता चम्पाई सोरेन ने मंगलवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म `एक्स` पर एक पोस्ट के माध्यम से भाजपा में शामिल होने की घोषणा की। उन्होंने पत्र में  झारखंड के संताल में बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला भी उठाया है और इसे आदिवासियों के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा बताया है। इस समस्या को उन्होंने खुद के झामुमो छोड़कर भाजपा में जाने की एक बड़ी वजह भी बताया है। 

हमें बांग्लादेशी घुसपैठ को सामाजिक आंदोलन बनाना होगा, तभी जाकर आदिवासियों का अस्तित्व बचेगा 

चम्पाई सोरेन ने अपने पत्र में लिखा है कि हमें बांग्लादेशी घुसपैठ के मामले को सामाजिक आंदोलन बनाना होगा, तभी जाकर आदिवासियों का अस्तित्व बच पाएगा। उन्होंने आगे लिखा है कि इस मुद्दे पर केवल और केवल भाजपा ही गंभीर दिखाई दे रही है। बाकी दल वोट के कारण इस महत्वपूर्ण मामले को नजरअंदाज कर रही हैं। इसे देखते हुए आदिवासी अस्मिता और अस्तित्व को बचाने के इस संघर्ष में, मैने पीएम नरेद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने का निर्णय लिया है। 

तेजी से बढ़ रही है घुसपैठियों की संख्या

चम्पाई सोरेन अपने पत्र में आगे दिखाते हैं आदिवासियों और मूलवासियों को आर्थिक तथा सामाजिक तौर पर तेजी से क्षति पहुंचा रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों को यदि रोका न गया तो संताल में आदिवासियों का अस्तित्व संकट मिट जाएगा। उन्होंने अपने पत्र में इस बात का उल्लेख भी किया है कि  पाकुड़, राजमहल समेत कई अन्य क्षेत्रों में घुसपैठियों की संख्या आदिवासियों से ज्यादा हो गई है। आदिवासियों की जमीन पर घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं। उनके कारण हमारी माताओं, बहनों व बेटियों की इज्जत खतरे में है। 

मामला उठाने के लिए पार्टी में नहीं था सही फोरम

उन्होंने लिखा है कि उनकी पुरानी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा में इस मामले को लेकर उचित फोरम नहीं था, जहां वह इस बात को उठाते। अपने पत्र में चम्पाई सोरेन ने झामुमो के कुछ नेताओं द्वारा उठाए गए उन प् प्रश्नों का भी जवाब दिया है। इसमें उन्होंने कहा गया था कि यदि चम्पाई सोरेन अपमानित महसूस कर रहे थे या आहत थे तो उन्होंने अपनी समस्या पार्टी फोरम में क्यों नहीं रखी। चम्पाई ने लिखा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा में कोई ऐसा फोरम या मंच नहीं था, जहां वह अपनी पीड़ा को व्यक्त कर पाते। 

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