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रत्नगर्भा है झारखंड की धरती, यहां रामायण और महाभारत ही नहीं कृष्ण के भी अवशेष

रत्नगर्भा है झारखंड की धरती, यहां रामायण और महाभारत ही नहीं कृष्ण के भी अवशेष

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Jharkhand news : झारखंड की धरती रत्नगर्भा है, यह पूरी दुनिया को पता है। इससे हटकर यह धरती रामायण और महाभारत के समकालीन कई कहानियों को भी खुद में समाहित किए है। इन दोनों कालों के कई प्रमाण राज्य के विभिन्न हिस्सों में विद्यमान हैं, कई अवसरों पर यह प्रमाणित भी हो चुका है। अब यहां भगवान कृष्ण से भी जुड़े तथ्य प्रकाश में आए हैं । अब टाटा जूलाजिकल पार्क और गम्हरिया स्थित वन विभाग की नर्सरी में कुछ ऐसे पेड़ पाए गए हैं, जो उसे कई स्तरों पर श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं। आज उन्हीं की चर्चा…

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– गम्हरिया स्थित वन विभाग की नर्सरी में वट वृक्ष की एक प्रजाति का एक पेड़ पाया गया है, जिसे स्थानीय भाषा में मक्खन कटोरी जाता है।  इसी तरह का एक पेड़ टाटा जूलाजिकल पार्क में भी है। दरअसल, इसके बड़े पत्ते कटोरी के समान होते हैं। कहते हैं श्रीकृष्ण इसी कटोरीनुमा पत्ते में चुराए गए मक्खन रखते थे। जीव-जंतुओं व पेड़-पौधों पर रिसर्च करने वाले राजा घोष ने बताया कि माखन कटोरी पेड़ की खासियत इसकी पत्तियां हैं। इसके बड़े पत्ते कटोरी के समान होते हैं और छोटे पत्ते चम्मच की तरह। कई ग्रंथों में इस पेड़ के बारे में वर्णन है। 

– दलमा के जंगलो में बड़े पैमाने पर कृष्ण कमल के पौधे पाए गए। मान्यता है कि कृष्ण कमल फूल के केंद्र में रेडियल तत्व भगवान कृष्ण के सबसे शक्तिशाली हथियार सुदर्शन चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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– भगवान श्रीकृष्ण गोकुल में गायों को चराने के दौरान कदंब के पेड़ व मौलश्री के नीचे बैठकर बांसुरी बजाया करते थे। यमुना के किनारे कदंब के काफी वृक्ष हुआ करते थे। वही कदंब का पेड़ जमशेदपुर के आसपास के जंगलों में बहुतायत पाए गए है।

भगवान श्रीकृष्ण अपने गले में वैजंती का माला पहनते थे। वैजंती माला के वृक्ष पर जो फल लगते हैं, उनकी माला बनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार वैजंती माला को पहनना बहुत ही शुभ माना जाता है।  वैजंती के फूल भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को बहुत ही प्रिय हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने जब पहली बार राधा और उनकी सखियों के साथ रासलीला खेली थी तब राधा ने उन्हें वैजंती माला पहनाई थी। वैजंती का पौधा घर में लगाने से दुर्भाग्य दूर भाग जाता है और लक्ष्मी का वास होता है।

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