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ऐसी होती है मरीज के अटेंडेंट की मनोदशा

ऐसी होती है मरीज के अटेंडेंट की मनोदशा

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Tata main hospital (टाटा मुख्य अस्पताल)  के पहले तल्ले पर स्थित प्रतीक्षा कक्ष में बैठा हूँ। बगल में कार्डियक कैथ लैब है। यूँ तो ऐसे अनेक लैब हैं इस अस्पताल में पर हृदय जैसे संवेदनशील अंग का उपचार स्थल होने के कारण इसका विशेष महत्व है।रात्रि के ग्यारह बजे हैं। मेरे जैसे कुछ दो दर्जन से अधिक लोग इस कक्ष में मेरी ही तरह चिंता युक्त स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। कुछ लेटे हैं,कुछ उकड़ू बैठे हैं और कुछ मोबाईल चला कर समय गुजार रहे हैं पर सभी के चेहरों पर चिंता की लकीरें खींची साफ दिख रही हैं। 

पत्नी दो सप्ताह से इलाजरत है

मेरी अर्धांगिनी आज लगभग दो सप्ताह पहले से इसी कार्डियक कैथ लैब में इलाजरत हैं। पूर्व में ही हृदय की एंजियोग्राफी एवं एंजियोप्लास्टी की जा चुकी है पर ईश्वर की बनाई चीज में जब मनुष्य (चिकित्सक) के छेड़छाड़ करने की आवश्यकता आन पड़े तो समझिए स्थिति गंभीर है।अजीब सी बेचैनी है। उठकर चाहते हैं कि इलाजरत परिजन की एक झलक तो मिल जाए, पर कक्ष के प्रवेश द्वार पर तैनात प्रहरी ईशारे से ही उधर जाने से रोक देता है। उसका ऐसा करना बहुत ही नागवार लगता है परन्तु दूसरे ही पल दिल इस बात को स्वीकार कर लेता है कि आखिर उसकी ड्यूटी भी तो यही है। 

चेतन लोक में तैरते मन की गति भी विचित्र है

चेतन लोक में तैरते मन की गति भी विचित्र है। पता नहीं कब अचेतन लोक में लेकर चला जाता है जहाँ सिर्फ और सिर्फ बुरे खयाल ही आते हैं। क्या होगा? आर्थिक, मानसिक और शारीरिक पीड़ा के दंश को झेलता मन ” मनुष्य लाख प्रगति के बाद भी कितना असहाय है!” की चिंता में पड़ा छटपटा रहा है।दो सप्ताह से बेहद अस्त व्यस्त समय सारिणी चल रही है।न खाने -पीने की सुध है वस्त्रों व श्रृंगार की।बस एक ही इच्छा है कि कब चिकित्सक कह दें, शी इज आउट ऑफ डेंजर। गार्ड साहब की मिन्नत करने पर पॉंच मिनट के लिए प्रवेश मिला है। अंदर सब कुछ निस्तब्ध, दोनों हाथों में प्रेशर हार्ट बीट आक्सीजन की उपलब्धता मापने की मशीनों ने कब्जा जमा रखा है। 

है।काश! कोई होता जो पीठ पर हाथ रखकर बोलता, ” सब ठीक हो जाएगा

चेहरे पर स्पाइडर मैन व अन्य कार्टून किरदारों की तरह मास्क लगा है। आपरेशन थिएटर में शल्य चिकित्सा चल रही है। सेविकाएं मरीजों की उचित देखरेख में भागा दौड़ी कर रही हैं। मरीजों की कराह और पीड़ा से मन विचलित हुए जा रहा है। ऐसे में ही मनुष्य को परिवार और समाज जैसी संस्थाओं के होने व सहयोग की आवश्यकता महसूस होती है।काश! कोई होता जो पीठ पर हाथ रखकर बोलता, ” सब ठीक हो जाएगा। ईश्वर पर भरोसा रखिए। “

लेखक : ओंकार नाथ सिंह ( अपनी पत्नी का दो सप्ताह से टाटा मेन अस्पताल में इलाज करवा रहे हैं)

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