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ब्राह्मणों के सरनेम और विधि-विधान व दैनिक कार्य में अंतर क्यों?

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ब्राह्मणों के सरनेम और विधि-विधान में अंतर दिखता है। जबकि ब्राह्मण मूल रूप से एक हैं। फिर सहज सवाल उठता है कि उनके सरनेम अलग क्यों हैं? कोई तिवारी, कोई दुबे, कोई शुक्ला, झा, मिश्रा, पाठक, चौबे, शर्मा आदि क्यों हैं? साथ ही उनके खान-पान, कर्म, मंत्र जप विधि आदि में अंतर क्यों है? सवाल जटिल है लेकिन जवाब सरल। इसे जानने के लिए हमें उनकी उत्पत्ति और विकास क्रम को जानना होगा।

ब्राह्मण जाति नहीं वर्ण

ब्राह्मणों की उत्पत्ति की कथा पर काफी विवाद है। इसलिए मैं उसे यहां नहीं छेड़ रहा हूं। वह जानकारी दे रहा हूं जो सबको स्वीकार्य है। ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण होता है। उसका इतिहास वैदिक धर्म जितना पुराना है। वेद के अनुसार जाति नहीं, वर्ण व्यवस्था थी। अर्थात ब्राह्मण जाति नहीं वर्ण है। मतलब कर्म के आधार पर ब्राह्मण होते थे।  विश्वामित्र, वाल्मीकि इसके बड़े उदाहरण हैं। उस समय ब्राह्मणों ने देश और समाज को दिशा दी। वर्ण के जाति बनने से उनमें जड़ता आई। इसका कारण विदेशी आक्रमण था। उससे हमारी प्राचीन व्यवस्था भंग हुई।

ब्राह्मणों के भेद

पहला भेद क्षेत्र के आधार पर हुआ। उत्तर और दक्षिण भारत के ब्राह्मण। पुन: पांच-पांच के दो वर्गों में वे विभाजित हैं। वे हैं- तैलंगा,  महार्राष्ट्र, गुर्जर, द्रविड, कर्णटिका। यह पांच “द्रविण” कहे जाते हैं। ये मूल रूप से विंध्याचल के दक्षिण के हैं। उत्तर में- सारस्वत, कान्यकुब्ज, गौड़, मैथिल और उत्कलये हैं। ये पंच गौड़ कहे जाते हैं। अलग जगह में बसने के कारण इनमें क्षेत्रीय गुण और संस्कारों का समावेश हुआ। इस कारण उनके उपनाम बदले। साथ ही ब्राह्मणों के सरनेम और दैनिक कर्मों में भी अंतर आ गया है।

क्षेत्र के आधार पर आया बदलाव

ब्राह्मणों में बदलाव को समझने के लिए मंत्रों की दुनिया को देखें। क्षेत्र के अनुसार एक मंत्र को देखें। उनकी मात्रा व उच्चारण में भी थोड़ा अंतर दिखता है। यही अंतर पूजन विधि में भी है। यह विवाद का विषय नहीं हो सकता है। क्षेत्र का असर खान-पान, आचरण. उच्चारण पर पड़ता ही है। यहां तक कि व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है। शाखा भेद के कारण भी ब्राह्मण अनेक हैं। इनमें संकर जाति के भी ब्राह्मण शामिल हो गए हैं। सबको मिलाकर इनकी संख्या मोटे रूप में 115 है। सूक्ष्म विश्लेषण करने पर 230 के लगभग हैं। उपशाखा भी मिला लें तो 300 हो जाते हैं।

सूक्ष्म विश्लेषण व उपभेद में विवाद

सूक्ष्म विश्लेषण और उपभेद में विवाद है। इसमें अलग-अलग राय है। उससे परहेज करने पर 69 ब्राह्मणों की सूची मिली। हालांकि 115 ब्राह्मणों को मुख्य माना जाता है। चूंकि मुझे सिर्फ 69 ब्राह्मणों की सूची मिली। अतः उसे ही साझा कर रहा हूं। ब्राह्मणों के सरनेम और विधि में अंतर का यह बड़ा कारण है। 

ब्राह्मणों की पहली सूची  

1-गौड़ ब्राह्मण। 2-मालवी गौड़ ब्राह्मण। 3-श्री गौड़ ब्राह्मण। 4-गंगापुत्र गौड़ ब्राह्मण। 5-हरियाणा गौड़ ब्राह्मण। 6-वशिष्ठ गौड़ ब्राह्मण। 7-शोरथ गौड़ ब्राह्मण। 8-दालभ्य गौड़ ब्राह्मण। 9-सुखसेन गौड़ ब्राह्मण। 10-भटनागर गौड़ ब्राह्मण। 11-सूरजध्वज गौड़ ब्राह्मण (षोभर)। 12-मथुरा के चौबे ब्राह्मण। 13-वाल्मीकि ब्राह्मण। 14-रायकवाल ब्राह्मण। 15-गोमित्र ब्राह्मण। 16-दायमा ब्राह्मण। 17-सारस्वत ब्राह्मण। 18-मैथिल ब्राह्मण। 19-कान्यकुब्ज ब्राह्मण। 20-उत्कल ब्राह्मण। 21-सरवरिया ब्राह्मण। 22-पराशर ब्राह्मण। 23-सनोडिया या सनाड्य ब्राह्मण।

ब्राह्मणों की दूसरी सूची

24-मित्र गौड़ ब्राह्मण। 25-कपिल ब्राह्मण। 26-तलाजिये ब्राह्मण। 27-खेटुवे ब्राह्मण। 28-नारदी ब्राह्मण। 29-चंद्रसर ब्राह्मण। 30-वलादरे ब्राह्मण। 31-गयावाल ब्राह्मण। 32-ओडये ब्राह्मण। 33-आभीर ब्राह्मण। 34-पल्लीवास ब्राह्मण। 35-लेटवास ब्राह्मण। 36-सोमपुरा ब्राह्मण। 37-काबोद सिद्धि ब्राह्मण। 38-नदोर्या ब्राह्मण। 39-भारती ब्राह्मण। 40-पुश्करर्णी ब्राह्मण। 41-गरुड़ गलिया ब्राह्मण। 42-भार्गव ब्राह्मण। 43-नार्मदीय ब्राह्मण। 44-नंदवाण ब्राह्मण। 45-मैत्रयणी ब्राह्मण। 46-अभिल्ल ब्राह्मण। 

ब्राह्मणों की तीसरी सूची 

47-मध्यांदनीय ब्राह्मण। 48-टोलक ब्राह्मण। 49-श्रीमाली ब्राह्मण। 50-पोरवाल बनिए ब्राह्मण। 51-श्रीमाली वैष्य ब्राह्मण। 52-श्रीमाली वैष्य ब्राह्मण। 53-तांगड़ ब्राह्मण। 54-सिंध ब्राह्मण। 55-त्रिवेदी म्होड ब्राह्मण। 56-इग्यर्शण ब्राह्मण। 57-धनोजा म्होड ब्राह्मण। 58-गौभुज ब्राह्मण। 59-अट्टालजर ब्राह्मण। 60-मधुकर ब्राह्मण। 61-मंडलपुरवासी ब्राह्मण। 62-खड़ायते ब्राह्मण। 63-बाजरखेड़ा वाल ब्राह्मण। 64-भीतरखेड़ा वाल ब्राह्मण। 65-लाढवनिये ब्राह्मण। 66-झारोला ब्राह्मण। 67-अंतरदेवी ब्राह्मण। 68-गालव ब्राह्मण और (69) गिरनारे ब्राह्मण।

पाठकों के ध्यानार्थ

ब्राह्मणों के सरनेम और विधि-विधान में अंतर से संबंधित जानकारी वरिष्ठ पत्रकार श्री हरिप्रकाश शर्मा ने दी है। हम इसकी वैधानिकता की पुष्टि नहीं करते हैं। इसका मकसद किसी की भावना को आहत करना नहीं है। हम शोध की प्रक्रिया शुरू करना चाहते हैं। यदि किसी के पास कोई और जानकारी हो तो कृपया साझा करें।      

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