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प्रेम…बस ! इसी में छिपा है हमारे जीवन का मर्म !!

प्रेम…बस ! इसी में छिपा है हमारे जीवन का मर्म !!

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राजीव थेपड़ा

“क्या यही प्यार है ? हां, यही प्यार है !
दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं
वक्त गुजरता नहीं !
क्या यही प्यार है ! हां…हां यही प्यार है !!”

शैशवावस्था के बाद एक उम्र ऐसी आती है, जब हम अपने सपनों में खोये अपनी ही एक दुनिया में विचरते रहते हैं और उस दुनिया में विचरने के मध्य हमारी वास्तविक दुनिया में हमारी तरह के जिस किसी भी व्यक्ति का पदार्पण हो जाता है, उससे हमें प्यार हो जाता है! एक्चुअली उस वक्त हमारी उम्र का वह दौर ही ऐसा होता है, जब हमारा यौवन उफान पर होता है और वह अपने काल्पनिक संसार में अबाधित उन्मुक्त विचरन करता रहता है और करता रहना चाहता है। तब हमारी चाहतें अपनी भावुकता के चरम पर होती हैं और हम अपनी उन भावनाओं के कारण न जाने कितने ही लोगों के प्रति आकर्षित होते हैं और उन्हीं में से अनजाने में चुन लिया जाता है हमारे मन द्वारा हमारे मन के अनुरूप एक हीरो और सचमुच वह हीरो ही होता है, जब तक हमारा मन उस से मिलता हुआ प्रतीत होता है !
यद्यपि, प्यार सदा बेशर्त होता है, किन्तु सच्चाई यह भी है कि एकतरफा प्यार का कोई अर्थ नहीं होता। दोनों व्यक्ति एक – दूसरे को प्यार करें, तब ही वह प्यार परवान चढ़ता है और हम सबके अपने-अपने जीवन में नयी-नयी और तरह-तरह की कहानियां बनती हैं ! कहानियां तो वही होती हैं, जो बाबा आदम के युग से होती चली आयी हैं, लेकिन व्यक्तिगत रूप से अपने-अपने जीवन में बनती ये कहानियां प्रेम में पड़े उन व्यक्तियों के लिए नयी ही होती हैं और अजूबी भी होती हैं !!
किन्तु, समय के साथ उम्र का वह दौर गुजर जाता है और जब वह पड़ाव गुजर जाता है, जब हम पर कोई दायित्व नहीं होता और तब उसके पश्चात हमारे जीवन के उस दौर की शुरुआत होती है, जब हम अपने कैरियर के लिए दौड़ लगाना शुरू करते हैं और जैसे-जैसे उस दौर में सफलता और असफलता हाथ लगती जाती है, तदनुसार हमारा आचरण जीवन के प्रति परिवर्तित होता चला जाता है और यह परिवर्तन हमारे उस प्यार के लिए भी होता है, जिसके लिए हम कभी मर-मिटे होते हैं !
क्योंकि, हमारा जीवन आर्थिक रूप से सबल हो जाने के लिए एक अनवरत लड़ाई लड़ने का उपक्रम है और व्यवहारत: आर्थिक रूप से सबल होना ही सबसे बड़ी प्रतिष्ठा भी है। इसलिए एक समय के बाद प्यार पीछे छूटने लगता है और आर्थिक विचार मन में ऐसा घर करने लगते हैं कि उन विचारों के अलावा किन्हीं अन्य विचारों की कोई अहमियत ही नहीं बचती और यहीं पर वह प्यार थोड़ा-थोड़ा कम होना शुरू होता है, क्योंकि व्यावहारिक और आर्थिक जीवन की वास्तविक सच्चाइयों से अवगत होने पर हमारे मन का नैसर्गिक, किन्तु किसी सीमा तक कल्पित वह उबाल कम होने लगता है। इसके लिए किसी दौर में हम पागल बने रहते थे और हमारे भीतर वे भावनाएं इस प्रकार बलवती होती थीं कि दुनिया उसके अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देती थी !!
जीवन संतुलन का नाम है और भावुकता के मारे सिर्फ और सिर्फ प्यार की बातें करना भी एक तरह का असंतुलन ही है। क्योंकि, एक बार फिर से वही बात लागू होती है कि जीवन जीने के साधन यदि हम निर्मित नहीं कर पाते और ठीक से जीवन को नहीं जी पाते हैं, तो फिर अपने-आप प्यार की ऐसी की तैसी हो जाती है। और तो और, सच तो यह भी है कि जिस पर हम किसी जमाने में मर मिटे होते हैं, हमारी सतत अकर्मण्यता समय के साथ हमारे प्रति उसे नफरत से भी भरने के लिए पर्याप्त होती है !!
इसीलिए दुनियादारी नाम का एक शब्द सदा से प्रचलित है और दुनियादारी इसी संतुलन को कहा जाता है। इसलिए यह हम सबके विवेक के ऊपर निर्भर है कि हम अपनी परिस्थितियों के अनुसार जीते हुए भी अपने साथ रह रहे समस्त पारिवारिक सदस्यों एवं दोस्तों के साथ भी सामंजस्य बनाते हुए एक सुन्दर और अद्भुत संतुलन बनाये रखें, केवल और केवल तभी उस प्यार की वास्तविक व हृदयगत महत्ता है ; अन्यथा बाकी सब गड़बड़ है!!
…तो, इस आलेख में सबसे पहले कही गयीं उपरोक्त पंक्तियां – क्या यही प्यार है? हां यही प्यार है! होओ…. दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं…. वक्त गुजरता नहीं !! तो यदि वास्तव में यह प्यार हमारे भीतर एक नदी की तरह बहता रहता है, तो हमें इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि हमारे सम्मुख किस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं। हम यदि संतुलित हैं, तो हमारा जीवन भी भली प्रकार चल सकता है और साथ ही हमारा प्यार भी ।
…तो, ना तो प्यार के मारे अपनी आर्थिक गतिविधियों को अवरुद्ध किया जा सकता है और ना ही आर्थिक गतिविधियों के कारण प्यार में कोई कमी ही आनी चाहिए। क्योंकि, जीवन ना तो प्यार के बगैर चल सकता है, ना रिश्तों के बगैर चल सकता है।…और, दुनियादारी के शब्दों में कहें, तो आर्थिक अभाव में भी प्यार नहीं पनप सकता।…तो, आर्थिक जरूरतें पूरी होनी भी उतनी ही अहम है, जितना कि जीवन में प्यार।
तब आप खुद सोचिए कि क्या यही प्यार है…. हां यही प्यार है….. होओ… दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं…. वक्त गुजरता नहीं…. इन शब्दों की आपके जीवन में क्या अहमियत है !! इन शब्दों को आप अपने जीवन में किस तरह लागू करते हैं !! इन शब्दों को किस तरह जीते हैं !! बस, इसी में आपके जीवन का मर्म छिपा है !!

जिन्दगी से मिलती हैं अक्सर खलिशें कई

ना कह पाते हैं हम, ना सह पाते
कहने से पता नहीं दर्द बढ़ता है कि घटता
कहने से क्या सचमुच मन हल्का हो जाता है ??
ऐसा लगता तो है, मगर ऐसा होता नहीं कतई
मन तो शांत होता समय के साथ
जैसा कि किसी ने सच ही कहा भी तो है
कि समय सब घाव भर देता है दिल के
मगर मुझे यह भी पता है कि दिल के घाव
समय के साथ भरते हों या ना भरते हों
ऊपर-ऊपर सूख जरूर जाते हैं और
मौके-बेमौके हमला भी करते हैं फिर-फिर से
यादें कभी पीछा नहीं छोड़तीं और
जो पीछा छोड़ दें, वो यादें ही क्या !!
जिन्दगी से मिलती है अक्सर खलिशें कई
मगर कुछ भी भूल जाने के लिए नहीं
इक रास्ता सीखने के लिए
गलती अपनी हो या किसी ने जान-बूझ कर दिया हो जख्म
सब कुछ थोड़े समय के लिए एक अंधेरा लेकर आता
उस पार इक नयी रौशनी को देख पाने के लिए
जिन्दगी से मिलती है अक्सर खलिशें कई
और अगर हम सचमुच समझ सकें जिन्दगी को
तो खलिशें भी जिन्दगी ही हैं
ठीक उसी तरह कि जैसे
सुख पर हमारा अबाध अधिकार !!

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