साल 2016 में नीतीश कुमार ने बिहार के कुल आबादी का लगभग 2% जनसंख्या वाले लोहार समुदाय जो कि बिहार के अत्यंत पिछड़ा वर्ग के सूची में आते थे, उनको लोहारा लोहरा आदिवासी के नाम पर अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के आदेश को रद्द करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने गलत कार्य करने पर बिहार सरकार पर ₹500000 का जुर्माना भी लगाया है।
बिहार सरकार के उक्त आदेश को हाईकोर्ट में भी चैलेंज किया गया है, किंतु एक गैर SC ST समुदाय के व्यक्ति सुनील कुमार राय पर लोहार जाति के लोगों ने एससी एसटी एक्ट का मुकदमा कर दिया। इसके कारण पीड़ित सुनील कुमार राय को जेल जाना पड़ा। निचली अदालत ने उनको बेल नहीं दिया।
सुनील कुमार राय ने दायर की थी याचिका
क्लोहार ओबीसी समुदाय है। इसलिए सुनील कुमार राय ने बिहार सरकार के 2016 के उस आदेश को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में चैलेंज किया। इसके तहत बिहार सरकार ने लोहार को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र देने का आदेश दिया था । सर्वोच्च अदालत ने बिहार सरकार के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि यह भारतीय संविधान का गंभीर उल्लंघन है। दिनांक 21 फरवरी 2022 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र देने वाले बिहार सरकार के 2016 के गजट नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए यह कहा कि बिहार सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर लोहार को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया जोकि भारतीय संविधान के 342 का गंभीर उल्लंघन है।
एससी एसटी की सूची में संशोधन केवल संसद के अधिनियम से किया जा सकता है:- सुप्रीम कोर्ट
सर्वोच्च अदालत ने 1993 के नित्यानंद शर्मा बनाम बिहार सरकार और अन्य सर्वोच्च न्यायालय के संविधान पीठ के जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सूची में किसी भी प्रकार का संशोधन केवल भारतीय संसद के अधिनियम के द्वारा ही किया जा सकता है।
अब रद्द किए जाएंगे जारी प्रमाण पत्र
लोहार अनुसूचित जनजाति के सदस्य नहीं है और बिहार सरकार ने लोहार को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र देने का गैर कानूनी काम किया जिसका लाभ लेते हुए लोहार समुदाय के लोगों ने गैर अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्ति के ऊपर एससी एसटी मुकदमा दिया। इसका खामियाजा उक्त गैर आदिवासी व्यक्ति को भुगतना पड़ा सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के इस क्रियाकलाप को गंभीर संवैधानिक उल्लंघन मानते हुए बिहार सरकार पर ₹500000 का जुर्माना लगाया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बिहार सरकार जुर्माने की राशि को 1 महीने के अंदर भुगतान करें।
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि बिहार सरकार हमारे इस आदेश के पालन के फलस्वरूप अपने सभी अधिकारियों को निर्देशित करें कि वह बिहार के लोहार जाति को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र नहीं देंगे और जारी किए गए प्रमाण पत्र रद्द किए जाएंगे।