निशिकांत ठाकुर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं) Mail id :nishikant.shuklapaksha@gmail.comMobile : +91 9810053283
यदि आप किसी की ओर इंगित करते हुए अपनी एक अंगुली दिखाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से तीन अंगुलियां आपकी ओर ही इशारा करने लगती हैं। संभवतः आजादी के बाद पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने न केवल विदेश में अपने देश की पूर्ववर्ती सरकारों को कोसा, बल्कि भारत में जन्म लेने को अपना दुर्भाग्य भी बताया। देश की पूर्ववर्ती सरकारों को नाकारा सिद्ध करने का प्रयास करते हुए कहा कि आजादी के बाद वर्ष 2014 से पहले देश के विकास के लिए किसी ने कोई काम ही नहीं किया। यही नहीं, देश की गरीबी का उपहास तक उड़ाया। इसके एकाध नहीं, आज ऐसे कई उदाहरण उपलब्ध हैं और विपक्ष को यही सब देखने और सीखने का अवसर मिला, इसलिए फिर आज जो स्थिति बनी है, उसके लिए विपक्ष को कोसने और देश की छवि बिगाड़ने का आरोप यदि किसी के द्वारा लगाया जाता है, तो इसके लिए गहन मंथन की जरूरत है। वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कहते हैं कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री रहते हुए अपनी विदेश यात्रा के दौरान चीन, दक्षिण कोरिया, कनाडा तथा यूएई में कई बुराइयों के साथ भारत में जन्म लेने वालों के प्रति अफसोस प्रकट किया और कहा कि पहले लोग कहते थे कि कौन सा पाप किया कि इस देश में जन्म लेना पड़ा। 70 वर्षों में देश में कुछ नहीं हुआ, देश में भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार था। प्रधानमंत्री जिस किसी भी देश में गए, उन्होंने ऐसा कहकर भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल किया। विश्लेषक बताते है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया; क्योंकि इस बात से विदेशी अवगत हो जाएं कि भारत में उनके प्रधानमंत्री बनते ही देश का कायाकल्प होना शुरू हो गया।
पिछले लगभग नौ वर्ष में इस बात का किसी ने विरोध नहीं किया, परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री सहित भाजपा द्वारा लगातार कांग्रेस पर एकतरफा प्रहार किया जाता रहा। भाजपा को उसके भविष्यवक्ता ने यह विश्वास दिला दिया कि अब वह आजातशत्रु है तथा उनके सामने सिर उठानेवाला देश में कोई नहीं बचा है और जिसके निकट भविष्य में आगे आने की संभावना है, वह केवल राहुल गांधी ही हैं, जो आगे चलकर भाजपा के गले की फांस बनेंगे। लिहाजा, इस पर फोकस किया जाए और कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर राहुल गांधी के भविष्य की संभावनाओं को खत्म कर दिया जाए, ताकि उनकी सरकार को आगामी पचास वर्ष तक किसी से खतरा न रहे। फिर इसी प्रकार योजनाएं बनाई गईं और कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देकर राहुल गांधी को नाकारा, अयोग्य और पप्पू साबित करने का हरसंभव प्रयास किया गया। लेकिन, कहा जाता है कि पानी के प्रवाह को कुछ क्षणों तक तो अवरुद्ध किया जा सकता है, उसे हमेशा के लिए रोका नहीं जा सकता है। गतिमान जल प्रवाह अपना मार्ग स्वयं ढूंढ लेता है। आज के परिपेक्ष्य पर यदि नजर डालें तो बिलकुल यही हो रहा है और विश्लेषक मानते हैं कि हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक में भाजपा की हार का एकमात्र कारण झूठा आत्मविश्वास है। रही राहुल गांधी की बात, तो केवल एक कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा ने भाजपा के सभी भविष्यवक्ताओं के अरमानों को धूल—धुसरित कर दिया।
इस भारत जोड़ो यात्रा का परिणाम यह हुआ कि सत्तारूढ़ भाजपा बुरी तरह डर गई। उसने समझ लिया कि उनके द्वारा फैलाए गए जाल से राहुल गांधी बाहर निकल चुके हैं और भविष्य के लिए चुनौती बन गए हैं। इसलिए जब राहुल गांधी ने लंदन की एक यूनिवर्सिटी में भाषण दिया तो उसे देशविरोधी और देश का अपमान बताकर उनसे माफी मांगने के लिए संसदीय इतिहास में पहली बार सत्तापक्ष द्वारा ही संसद का वहिष्कार किया गया। जबकि, मुद्दा यह था कि राहुल गांधी ने संसद में अडाणी के भ्रष्टाचार का मुद्दा जमकर उठाया था। फिर षड्यंत्र का चक्र घुमा और वर्ष 2019 में चुनाव के दौरान कर्नाटक में दिए गए मोदी सरनेम पर एक भाषण का मुद्दा, जो गुजरात की अदालत में सुप्त पड़ा था, उसे उठाकर दो वर्ष की सजा सुनाने के कारण उनकी संसदीय सदस्यता रद्द कर दी गई। संसद की सदस्यता जाने के बाद नियमानुसार उनका घर खाली कराकर बेघर कर दिया गया। फिर भाजपा ने मान लिया कि राहुल गांधी का राजनीतिक कैरियर अब खत्म हो गया और खतरा अब टल गया है। लेकिन, संसद की सदस्यता जाने के बाद आवाम की समझ में यह बात आने लगी कि इस योग्य व्यक्ति के साथ न्याय नहीं किया गया। आज देश में सर्वाधिक चर्चा का विषय उनकी अमेरिका यात्रा है, उनके द्वारा दिए गए भाषण और प्रेस कान्फ्रेंस लोकप्रिय हो रहे है, जहां राहुल गांधी ने छात्रों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों के बीच जो कुछ कहा, उसने देश की जनता का दिल जीत लिया। वे पश्चात्ताप करने लगे कि एक योग्य और भारतीय राजनीति को जानने वाले के साथ वर्तमान सरकार ने न्याय नहीं किया तथा देश को वर्षों तक गलत प्रचार के तहत गुमराह करके उन्हें भ्रम में रखा गया, जो उचित नहीं हुआ।
अब प्रश्न यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने राहुल गांधी की सदस्यता को समाप्त करके एक साधारण ही नहीं, दागी नागरिक भी बना दिया तो फिर ऐसे व्यक्ति द्वारा कही गई बातों पर कुछ प्रतिक्रिया देना क्या महत्व रखता है? लेकिन, ऐसा नहीं हो रहा है और आज देश में या राहुल गांधी द्वारा अमेरिका में कही गई एक— एक बात का छद्म विश्लेषण किया जा रहा है, साथ ही कहा जा रहा है कि राहुल गांधी जब भी विदेश जाते हैं, देश का अपमान करते हैं। भाजपा का चाहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद हों, चाहे वर्तमान केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, अनुराग ठाकुर, राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी हों या भाजपा प्रवक्ता अनिल बलूनी हों या राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी जैसे पढे—लिखे सदस्य हों, सभी राहुल गांधी की आलोचना में कूद पड़ते हैं। सत्तारूढ़ दल द्वारा इस तरह से प्रतिक्रिया देना स्पष्ट रूप से देश की जनता के मन में इस विचार को बल देता है कि राहुल गांधी ने ऐसा क्या कह दिया? क्या इतनी सी बात कहना कि प्रधानमंत्री यदि ईश्वर के भी बगल में बैठ जाएं, तो उन्हें भी बताने लगेंगे कि ब्रह्माण्ड कैसे चलाया जाता है। यह तो प्रधानमंत्री पर एक तंज है, न कि भारत पर। विपक्षी दल के नेता होने के नाते यह कोई भारत को अपमानित और बदनाम करने जैसी बात नहीं हुई। वहीं, अमेरिका में ही ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने प्रधानमंत्री की आगामी अमेरिका यात्रा का स्वागत करते हुए कहा है कि उन्हें इस बात का गर्व होता है कि उनके, यानी विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाले देश के प्रधानमंत्री के लिए अमेरिका तैयार हो रहा है। यह ठीक है कि राहुल गांधी की छवि में सुधार हुआ है और देश में आज कोई क्षेत्रीय पार्टी ऐसी नहीं है जिनके नेताओं की राहुल गांधी वाली अंतर्राष्ट्रीय स्तर की छवि हो जिन्हें वैश्विक मंच पर सभी जानते हों। अभी तक देश में किसी कारण से उनकी छवि को बुरी तरह बदनाम करके यह प्रचारित कर दिया गया कि यह व्यक्ति नितांत अयोग्य है, जिसके कारण वह नकारा हैं। राहुल गांधी इस बात को भी अपने भाषण और प्रेस कान्फ्रेंस में कहते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा से उन्हें देश को समझने का भरपूर अवसर मिला।
अब इस बात की भी आलोचना सत्तारूढ़ दल के नेताओं द्वारा की जा रही है कि लंबे समय तक भारतीय नेतृत्व के शीर्ष पर रहने वाले क्या भारतवर्ष को नहीं समझ पाए थे? लेकिन, सच तो यही है कि जिस तरह पैदल यात्रा करके आम लोगों के द्वार पर जाने के और पैदल मार्च करके अपने लक्ष्य को साधने का रास्ता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने चुना, उस सफलता की सीढी का कुछ ही राजनेताओं ने लाभ उठाया। स्व. चंद्रशेखर, स्व. सुनील दत्त की कड़ी में राहुल गांधी जुड़ चुके हैं और सफलता की एक ऐसी लंबी लकीर खींच चुके हैं जिसे हाल-फिलहाल में कोई तोड़ सकेगा, इसमें संदेह है। सच तो यह है और जिसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्वयं कहा भी कि यह असंभव था कि एक दिन में पच्चीस किलोमीटर पैदल यात्रा हो सके, तथा लगभग 4000 किलोमीटर के अपने गंतव्य के लक्ष्य (कन्याकुमारी से कश्मीर) को पूरा किया जा सके, लेकिन यह संभव इसलिए हुआ; क्योंकि देश की जनता ने अकूत प्रेम और बल उन्हें दिया। जो भी हो, जनता के बीच राहुल गांधी ने अपनी बिगड़ी छवि को निश्चित रूप से सुधार लिया है और अब बुद्धिजीवियों के मध्य उन्हें सर्वमान्य नेता के रूप में स्वीकार भी किया जाने लगा है। फिर भी उनकी परीक्षा की घड़ी तो अब शुरू होने वाली है, जब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले चार राज्यों में होने वाले चुनाव में पहले प्रदेश की जनता उनकी पार्टी को जिताकर उनकी सरकार बनवा दे, फिर लोकसभा चुनाव में जो ईवीएम का ‘खेला’ की संभावना आमलोगों द्वारा व्यक्त की जा रही है, उसके यथार्थ को समझा जा सके। यह जनतंत्र है। कोई भी व्यक्ति कितना ही पढ़ा-लिखा हो, राजनीति की समझ रखता हो, लेकिन जब तक जनता उसका साथ नहीं देगी, वह कभी सफल नहीं हो सकता। आज जो सत्तारूढ़ है, उसने जनता के लिए कुछ किया हो या न किया हो, लेकिन लोगों में एक भरोसा पैदा कर दिया है कि उनकी समस्या का समाधान इस सरकार द्वारा किया जाएगा, भले ही वह पिछले नौ वर्षों में उसने अपने द्वारा किए गए एक भी वादे को पूरा न किया हो, लेकिन आत्मविशास से भरपूर राहुल गांधी ने न्यूयॉर्क में कहा है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उनकी पार्टी तेलंगाना और अन्य राज्यों के चुनावों में भाजपा का सफाया कर देगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं, बल्कि भारत के लोग भी भाजपा की नफरत से भरी विचारधारा को आने वाले समय में हराने जा रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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