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घर की शोभा ही नहीं, सृजन की प्रचण्ड शक्ति हैं “बेटियां”

घर की शोभा ही नहीं, सृजन की प्रचण्ड शक्ति हैं “बेटियां”

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निशिकांत ठाकुर

बेटियों के जन्म को अभिशाप मानने वाले आज छाती कूट-कूट कर अपनी गलती के लिए ईश्वर से माफी मांग रहे होंगे। बेटियों के प्रति हीनभाव से ग्रसित ऐसे माता—पिता आज निश्चित रूप से यह सोचने के लिए मजबूर होंगे कि काश इशिता किशोर, गरिमा लोहिया, उमा हराती, स्मृति मिश्रा जैसी उनकी भी बेटियां होतीं, जिन्होंने देश की  सबसे कठिन यूपीएससी की परीक्षा में भारत में प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ स्थान लाकर अपने माता—पिता का मस्तक गर्व से ऊंचा किया। बधाई इन बेटियों को और इनकी परवरिश करने वाले इनके माता—पिता को, जिन्हें आज इस गर्व की अनुभूति हो रही होगी। पिछले कुछ वर्षों में देश हर क्षेत्र में बेटियों ने अपनी भागीदारी की शुरुआत की है, उसने सिद्ध कर दिया है कि हम कितने पिछड़े थे, जब इन बेटियों के गुण से वाकिफ नहीं थे अथवा जानकर भी उसे उजागर नहीं करना चाहते थे और कहते थे बेटियां घर की शोभा होती हैं, इसलिए उसे परदे में रहना चाहिए। 

एयर इंडिया की चार महिला पायलटों ने नॉर्थ पोल से उड़ान भरकर सोलह हजार किलोमीटर की दूरी तय करके इतिहास रच दिया। जोया अग्रवाल के साथ—साथ कैप्टन तनमई पपागिरी, कैप्टन आकांक्षा सोनावाने तथा कैप्टन शिवानी मन्हास थीं। टीम का नेतृत्व करके जोया अग्रवाल विश्व की सबसे युवा पायलट बनी थीं। उन बेटियों का उल्लेख यहां न करना नाइंसाफी होगी, ये वही हैं जिन्होंने देश को गौरवान्वित किया, और हर पिता का सीना गर्व से ऊंचा किया और सलाम उन माता—पिताओं को, जिन्होंने अपनी बेटियों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये बेटियां हैं— बेल्लूर की स्नेहा, ओडिशा की अनुप्रिया, लेखिका नासिरा शर्मा, लेफ्टिनेंट शिवांगी, भारतीय सेना की पहली महिला न्यायाधीश कर्नल ज्योति शर्मा, क्रिकेट बोर्ड की पहली अध्यक्ष रूपा गुरुनाथ, महालेखा नियंत्रक सोमा राय वर्मन, हिमा दास,सिंधु, वृंदा राठी, आरोही, अंजलि सिंह, पहली महिला डिफेंस अटैच ले. भावना कस्तूरी, दुती चंद, चंद्रिमा शाह, गगनदीप कंग, मानसी जोशी, और न जाने कितने।

अब आज के खेल के दौर को देखते हैं, जिनमें बेटियों ने भारत के लिए विजय का झंडा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर गाड़कर भारतीय तिरंगा का परचम लहराया। उनमें महिला पहलवानों का उल्लेख करना आवश्यक है। हरियाणा के महावीर फोगाट ने अपनी दो बेटियों को कुश्ती के लिए प्रेरित किया और अपनी प्राकृतिक प्रतिभा को कठोर प्रशिक्षण के साथ जोड़कर, उन्हें खुद को काफी कम उम्र में ही पहले राष्ट्रीय, फिर अंतर्राष्ट्रीय पहलवानों के रूप में स्थापित कर दिया। गीता फोगाट और बबिता फोगाट ने 2009 राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप में अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक जीता। गीता ने 55 किग्रा में और बबीता ने 51 किग्रा में स्वर्ण पदक जीता। 2010 में गीता फोगाट ने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण विजेता पहली महिला भारतीय पहलवान के समान इतिहास रच दिया, जबकि बबीता फोगाट रजत जीतकर अपनी बहन के साथ शामिल होने से बस एक कदम दूर रह गईं। गीता फोगाट ने लंदन 2012 में अपना ओलंपिक पदार्पण किया और ओलंपिक पदक विजेता पहली महिला भारतीय पहलवान बनने से काफी पीछे रह गईं, वह टित्याना लाजेरेवा के खिलाफ उग्र होने के कारण हार गईं। हालांकि, इसी वर्ष सफलता का दौर भी चला, जब गीता ने अपना पहला विश्व चैंपियनशिप पदक जीता। 2012 में स्ट्रैथकोना काउंटी में कनाडा में महिला कुश्ती विश्व चैंपियनशिप में गीता ने कांस्य पदक जीता, जबकि उनकी बहन बबीता फोगाट ने भी कांस्य पदक जीता। बबीता फोगाट ने 2014 में अपना राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण जीता और रियो 2016 में अपना ओलंपिक धनुष बनाया, जहां वह पहले दौर में हार गईं। इन बेटी महिला पहलवानों का भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप है कि उन्होंने उनका यौन शौषण किया। अब लगभग एक महीने से बैठी इन बेटियों पर तरह—तरह के जुल्म करके बाहुबली सांसद द्वारा मामले को खत्म कराने का प्रयास किया जा रहा है। इन बेटियों ने देश का मान—सम्मान विश्व के पटल पर बढ़ाया और आज उन्हें तरह-तरह से अपमानित किया जा रहा है। अब चूंकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप किया है, जिसके कारण हो सकता है कि इन महिला पहलवान बेटियों को न्याय मिल जाए और कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर लगाए गए आरोप सही पाए जाने पर कानूनी कार्रवाई से गुजरना पड़े। लेकिन, इन बेटियों की मेहनत को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

दुनिया की सबसे ऊंची और बर्फीली बैटलफील्ड सियाचिन का नाम सुनकर ही सिहरन होती है। हालांकि, वीर प्रसूता मां भारती की कोख से जन्मे वीर सैनिक यहां भी देशप्रेम की मिसाल कायम करते हैं। ऐसी ही वीरांगना हैं कैप्टन शिवा चौहान। फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स अधिकारी कैप्टन शिवा चौहान सियाचिन ग्लेशियर के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र में तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी बनकर इतिहास रचा है। उनकी इस उपलब्धि की चर्चा पूरे देश में हो रही है। कैप्टन शिवा को लोग बेटियों के लिए मिसाल के तौर पर देख रहे हैं। भारतीय सेना के फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से कैप्टन शिवा चौहान की इस सफलता के बारे में खुद जानकारी दी है। ट्वीट में लिखा गया है कि फायर एंड फ्यूरी सैपर्स की कैप्टन शिवा चौहान दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र कुमार पोस्ट में ऑपरेशनल रूप से तैनात होने वाली पहली महिला अधिकारी बन गई हैं।

संभवतः आज शायद कोई भी ऐसा क्षेत्र अछूता नहीं रह गया हो, जहां बेटियों का अहम योगदान न हो। लेकिन, हां आज भी हमारे देश में ऐसा होता है, जहां बेटियां उपेक्षित हैं, जिन्हें उनके माता—पिता शिक्षित नहीं करना चाहते। देश के कई भागों बिटिया के जन्म को अशुभ माना जाता है, उस महिला को हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है, उन्हें तरह—तरह के उलाहना दिए जाते हैं, अपमानित किया जाता है। इस सब के बावजूद यदि बड़ी होकर अपने पैरों पर खड़ा होना भी चाहें, तो उसे रोक दिया जाता है। इसलिए यदि लड़कियों को बीच में ही पढ़ाई छोड़ने की स्थिति देखेंगे, तो आंखें फटी रह जाएंगी। आंकड़ों के अनुसार 2010 में महिला साक्षरता दर 80.35% थी। अंततः समय के साथ दर में वृद्धि हुई है। 2010-2021 के बीच, भारत में महिला साक्षरता दर में 14.4% की वृद्धि हुई है। 2021 में यह दर 91.95% थी।

लड़कियों की शिक्षा का समर्थन करके, समुदायों, राष्ट्रों और दुनिया को बदल दिया जाता है। शिक्षा प्राप्त करने वाली लड़कियों के स्वस्थ, जीवित रहने की संभावना अधिक होती है और उनकी जल्दी शादी करने की संभावना कम होती है। वे अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर भविष्य बनाते हैं, और उन फैसलों में हिस्सा लेते हैं, जो उन्हें सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। लड़कियों की शिक्षा उद्योगों को बढ़ावा देती है और हमेशा काम करती है। यह अधिक सुरक्षित, लचीला समाज बनाने में मदद करता है, जहां सभी लड़कों और पुरुषों सहित अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने का मौका मिलता है। आज यदि हम अपनी बेटियों पर गर्व करते हैं, तो वह इसलिए कि समाज ने उन्हें पुरुषों के समान आगे बढ़ने का अवसर दिया और उन बेटियों में आगे बढ़ने की एक ललक थी। जिसे समाज एक भार मानता था, आज उसे शिक्षित समाज ने आगे बढ़ने का अवसर दिया। उसी की परिणाम है कि आज हर क्षेत्र में उसके आगे बढ़ने पर खुश होते हैं, समाज खुश होता है और फिर दूसरी बेटियों में विकास के उस रास्ते पर आगे बढ़ने का एक भाव जागता है और फिर अगले दिन उसका उससे बेहतर परिणाम वह देती है। हमारे यहां तो मान्यता ही यही है बेटी देवी होती है और उसकी खुशी से हमारा भविष्य उज्ज्वल होता है। सच में नारी–जीवन का अर्थ ही है–सृजन की प्रचण्ड शक्ति का सुप्त केंद्र । जब कभी वह अपनी शक्ति को पहचान लेती है , तब जीवन में पीछे मुड़कर कभी नहीं देखती, वह आगे आगे ही  चलती रहती है ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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