होम

वीडियो

वेब स्टोरी

क्या आप जानते हैं लाल किला का असली नाम ? इसे बनवाने के पीछे क्या थी शाहजहां की मंशा ?

IMG 20240524 WA0005

Share this:

Do you know what is the real name of Red Fort? What was Shahjahan’s intention behind getting it built, Red fort New Delhi, Breaking news, National top news, national news, national update, national news, new Delhi top news : देश की भी शान लाल किला को भी विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। मुगल सम्राट शाहजहां ने 1638 ईसवी में इसका निर्माण शुरू कराया था। किले का निर्माण 1638 में शुरू और 1648 ईसवी तक चला। कुल मिला कर इसके निर्माण में तकरीबन 10 वर्ष लगे। शाहजहां ने किले के निर्माण के दौरान राजधानी आगरा को दिल्ली स्थानांतरित कर लिया था। वर्ष 2007 में लाल किला को यूनेस्को ने विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल किया। यहां पर रह कर उन्‍होंने इस शानदार किले को दिल्ली के केन्द्र में यमुना नदी के पास बनवाया। आइये, जानते हैं लाल किला की कुछ खूबियां…।

लाल किला नहीं है असली नाम

आपको यह जान कर हैरानी होगी कि लाल किला का असली नाम किला-ए-मुबारक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार, लाल किले में इमारत के निर्माण के दौरान कई हिस्से चूना पत्थर इस्तेमाल किया गया था, इसलिए इसका रंग पहले सफेद था। समय के साथ किला की दीवारों पर लगा चूना पत्थर गिरने लगा। …तो, अंग्रेज शासन के दौरान इस किले को लाल रंग का करा दिया गया। इसी के बाद इसका नाम लाल किला रखा गया। तब से यही नाम प्रचलित है।
वैसे, यह भी कहा जाता है कि लाल किले को बनाने के लिए लाल बालू और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया। इस कारण इसका नाम लाल किला पड़ा। इसका नाम शाहजहां की ओर से क्या रखा गया था, इसकी भी पुख्ता जानकारी इतिहासकारों के पास नहीं है और है भी तो मतभेद हैं।
वहीं, कहा जाता है कि शाहजहां ने जन्नत की कल्पना करते हुए लाल किले के अंदर के कुछ भागों का निर्माण कराया था, जिसे अंग्रेजों ने तोड़ दिया था।

यह भी जानना चाहिए आपको

लाल किला की आधारशिला 29 अप्रैल 1638 को रखी गयी थी। लाल किला के निर्माण में एक करोड़ रुपये का खर्च आया था। लाल किले की दीवारों की लम्बाई 2.5 किलोमीटर है। दीवारों की ऊचाई यमुना नदी की ओर 18 मीटर है और शहर की ओर 33 मीटर है। महल किले की पूर्वी दिशा में स्थित हैं दो भव्य तीन मंजिला मुख्य प्रवेश द्वार, जिनके बगल में अ‌र्द्ध अष्टभुजाकार बुर्ज हैं। इनमें कई कमरे हैं। ये पश्चिम और दक्षिण दिशाओं के मध्य में स्थित हैं, जिन्हें आप क्रमश: लाहौरी और दिल्ली दरवाजों के नाम से भी जानते हैं।
किले का मुख्य प्रवेश द्वार लाहौरी दरवाजे के जरिये है और महलों तक पहुंचने के लिए आप छत्तादार मार्ग से जा सकते हैं। इसकी बगल में मेहराबी कमरे हैं। इन्हें ‘छत्ता चौक कहते थे। इसके पीछे की ओर संगमरमर की एक छतरी है। इसी के नीचे तो बादशाह का सिंहासन होता था। छतरी के पीछे आपको दीवार पर सुन्दर पटल दिखेगा, जो बहुरंगे पत्थरों से जड़े हुए हैं। इसमें कई तरह की फूल-पत्तियां और पक्षी दिखाई देते हैं।

यूनानी देवता आर्फियस को बांसुरी संग दिखाया गया है

ऊपर की तरफ फलक में यूनानी देवता आर्फियस को उनकी बांसुरी के साथ दिखाया गया है। लाल किले में बने महलों की पंक्तियों के दक्षिणी छोर पर मुमताज महल दिखता है। यह दीवारों और स्तम्भों के अपने आधे निचले हिस्से में संगमरमर से निर्मित तथा मेहराबी द्वारों से विभाजित है। इसके भीतर छह कक्ष हैं और एक तहखाने पर टिका हुआ बड़ा हाॅल भी है, जिसे अन्दर की ओर से चित्रित किया गया था, इसलिए तो इसका नाम रंग महल पड़ा था। छह कक्षों में उत्तरी-दक्षिणी छोर के दो कमरों में स्तम्भों वाली संगमरमर की कुर्सियां हैं। इन कक्षों की दीवार भी चमचमाती हैं।

शीशे के छोटे-छोटे टुकड़े जड़े हुए हैं

दरअसल, उन पर शीशे के छोटे-छोटे टुकड़े जड़े हुए हैं, जो एक जलती हुई दीया-सलाई या अन्य प्रकाश को प्रतिबिम्बित करते हैं। यही कमरे शीश महल कहलाते हैं। इसके बीच इसी की लम्बाई की एक नहर..जो नहरें बहिश्त के नाम से विख्यात थीं, बहती थीं। उसी में संगमरमर का हौज बना हुआ था, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इसमें मूल रूप से एक हाथी दांत से बना फव्वारा लगा था। उत्तरी दीवार के मध्य में एक संगमरमर का जलप्रपात है, जिससे जल का एक शंखनुमा हौज में छलकता रहता था।

जिन्दगी बख्शने वाला बाग

सावन और भादो मोती मस्जिद के उत्तरी क्षेत्र में एक बाग है, जिसे हयात बख्श बाग, जिन्दगी बख्शने वाला बाग भी कहते थे। इस बाग के उत्तरी पूर्वी कोने पर शाह बुर्ज नाम का एक गुंबद रहित बुर्ज है। इस किले के दक्षिण पूर्वी किनारे पर असद बुर्ज है। इस बगीचे के दक्षिणी और उत्तरी किनारों के मध्य में दो अन्य संगमरमर के मंडप हैं, जो सावन और भादो कहलाते हैं। उत्तरी मंडप में एक तालाब और उसमें मोमबत्तियां रखने के लिए आलों की व्यवस्था है। इस बाग के बीच में एक बड़ा तालाब है, जिसके बीच में एक लाल बलुआ पत्थर का महल है। यह जफर महल के नाम से विख्यात है, जिसे 1842 में बहादुर शाह द्वितीय ने बनवाया था।

Share this:




Related Updates


Latest Updates