‘▪︎ ‘लोकतंत्र, जनसांख्यिकी, विकास और भारत का भविष्य’ विषय व्याख्यान
New Delhi News: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत अब वादे करनेवाला देश नहीं रह गया है। भारत को अब सपेरों का देश नहीं माना जाता। भारत पूरी दुनिया को अपनी सम्भावनाओं से आकर्षित कर रहा है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ रविवार को केरल राज्य के तिरुवनंतपुरम में ‘लोकतंत्र, जनसांख्यिकी, विकास और भारत का भविष्य’ विषय पर चौथे पी. परमेश्वरन स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि पी. परमेश्वरन की भारतीय मूल्यों के प्रति अटूट प्रतिबद्धता, भारतीय लोकाचार की उनकी गहरी समझ और राष्ट्रीय एकता के लिए उनका अथक प्रयास पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। सांस्कृतिक रूप से निहित और आध्यात्मिक रूप से जागृत एक आत्मनिर्भर भारत के लिए उनका दृष्टिकोण पूरे देश में गहराई से गूंजता है।
“जन-केन्द्रित नीतियों और पारदर्शी जवाबदेह शासन ने पारिस्थितिकी तंत्र को उछाल दिया है“
हाल के दशक में भारत के विकास को लेकर धनखड़ ने कहा कि जन-केन्द्रित नीतियों और पारदर्शी जवाबदेह शासन ने पारिस्थितिकी तंत्र को उछाल दिया है। 1.4 बिलियन का राष्ट्र ग्रामीण क्षेत्र में आये परिवर्तनकारी बदलाव को देखे। हर घर में शौचालय है, बिजली कनेक्शन है, पानी का कनेक्शन आनेवाला है, गैस कनेक्शन है, कनेक्टिविटी, इंटरनेट और सड़क, रेल और स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सहायता करनेवाली नीतियां आदि। ये हमारे विकास पथ को परिभाषित करती हैं।
“पी. परमेश्वरन इस सदी में हिन्दू विचार प्रक्रिया के अग्रणी विचारकों में से एक हैं“
उन्होंने कहा कि यह आर्थिक पुनर्जागरण, जो कुछ साल पहले कल्पना से परे था, चिन्तन से परे था, सपनों से परे था, उसने हमारे सनातन का सार, समावेशिता, गैर-भेदभावपूर्ण, समान विकास के परिणाम और सभी के लिए फल उत्पन्न किये हैं। किसी भी योग्यता, जाति, धर्म, रंग के बावजूद प्रयास किया गया है कि लाभ अंतिम पंक्ति में रहनेवाले लोगों तक पहुंचना चाहिए और यह बड़ी सफलता के साथ किया जा रहा है।
धनखड़ ने कहा कि भारत के सबसे महान सपूतों में से एक (पी. परमेश्वरन) की स्मृति में यह स्मारक व्याख्यान है। वह इस सदी में हिन्दू विचार प्रक्रिया के अग्रणी विचारकों में से एक हैं। हम इस व्याख्यान के माध्यम से सामाजिक कार्यों के लिए प्रतिबद्ध सबसे बेहतरीन बुद्धिजीवियों में से एक का जश्न मना रहे हैं। एक सभ्यता को केवल एक बुनियादी विचार से जाना जाता है। क्या यह वास्तव में अपने महान सपूतों का सम्मान करती है? और पिछले कुछ वर्षों में यही विषय रहा है। हमारे भूले हुए नायक, गुमनाम नायक, अच्छी तरह से कहें, तो अनदेखे नायक, हमने उन्हें याद किया है।
धनखड ने अकार्बनिक जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर अपनी चिन्ता जताई
अकार्बनिक जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने कहा कि जनसांख्यिकी मायने रखती है। जनसांख्यिकी को बहुसंख्यकवाद के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए। हम इन दो खेमों में विभाजित समाज नहीं बना सकते। लेकिन, जब जनसांख्यिकी की बात आती है, तो देश को गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। राष्ट्र में राजनीतिक रूप से विभाजनकारी माहौल पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम कुछ पहलुओं पर चिन्ताजनक परिदृश्यों से घिरे हुए हैं। राजनीति ध्रुवीकृत हो गयी है, ऊर्ध्वाधर रूप से विभाजनकारी हो गयी है, तापमान हमेशा उच्च रहता है। मूल राष्ट्रीय मूल्य और सभ्यतागत मूल्य केन्द्रीय विषय नहीं हैं। इस देश में जहां विविधता एकता में परिलक्षित होती है, यह देश जो समावेशिता के अपने सनातन मूल्यों पर गर्व करता है, हम इन मूल मूल्यों से दूर होने और ध्रुवीकृत, विभाजनकारी गतिविधियों में शामिल होने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं। संवाद और विचार-विमर्श के महत्त्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, ‘मुझे आपके साथ अपनी पीड़ा, अपना दर्द साझा करना चाहिए। संसद को लोगों के लिए आदर्श होना चाहिए। यह लोगों की आकांक्षाओं को वास्तविकता में बदलने का एक मंच है।’
इस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति की धर्मपत्नी डॉ. सुदेश धनखड़, केरल के राज्यपाल आरवी आर्लेकर, पूर्व केन्द्रीय मंत्री वी. मुरलीधरन और अन्य गण्यमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।