उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों में तैनात किये जा सकेंगे ये टैंक, दो साल तक परीक्षण होने के बाद 2027 तक सेना में होंगे शामिल
New Delhi news : चीन की सीमा पर पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त तेज बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों की तलाश पूरी हो गयी है। लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने डीआरडीओ के सहयोग से ढाई साल के भीतर स्वदेशी लाइट टैंक जोरावर का पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है। दो साल तक परीक्षण होने के बाद 2027 तक इसे सेना में शामिल कर लिया जायेगा। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में उच्च ऊंचाईवाले युद्ध क्षेत्रों के साथ-साथ कच्छ के रण जैसे नदी क्षेत्रों में भी इन हल्के टैंकों को तेजी से तैनात किया जा सकता है।
चीन को चौतरफा घेरने की तैयारी
पूर्वी लद्दाख में टकराव के बाद भारतीय सेना ने चीन को चौतरफा घेरने के लिए एलएसी पर 40 से 50 टन वजन वाले रूसी मूल के भीष्म टी-90, टी-72 अजय और मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन भी तैनात कर रखे हैं। लद्दाख के ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए सेना के जवानों को कई दर्रों से गुजरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में आपरेशन के दौरान आवश्यकता पड़ने पर टी-72 और अन्य भारी टैंक उस स्थान तक नहीं पहुंच सकते हैं। इसलिए उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए हल्के वजन वाले टैंकों की जरूरत महसूस की गयी, ताकि इन्हें 08 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाया जा सके। इसके बाद भारत ने खुद ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत 25 टन से कम वजन वाले 354 टैंकों का निर्माण करने का फैसला लिया।
डीआरडीओ व एलएंडटी ने टैंक की डिजाइन तैयार की
सैद्धांतिक रूप से डीआरडीओ को 2021 के अंत तक 354 टैंकों की आवश्यकता में से 59 का निर्माण करने के लिए हरी झंडी दे दी गयी थी। इसके बाद डीआरडीओ ने हल्के टैंकों को विकसित किया और एलएंडटी को इसके निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गयी। डीआरडीओ और एलएंडटी ने टैंक की डिजाइन तैयार की है, के-9 वज्र सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टी 155 मिमी. की चेसिस पर आधारित है। एलएंडटी ने ही गुजरात के हजीरा में एलएंडटी के प्लांट में के-9 वज्र टैंक तैयार किया है।
एलएंडटी व डीआरडीओ ने ढाई साल के भीतर स्वदेशी लाइट टैंक जोरावर का पहला प्रोटोटाइप तैयार किया
अब एलएंडटी ने डीआरडीओ के सहयोग से ढाई साल के भीतर स्वदेशी लाइट टैंक जोरावर का पहला प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है, जिसका अनावरण 06 जुलाई को किया गया था। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों के साथ-साथ कच्छ के रण जैसे नदी क्षेत्रों में भी इन हल्के टैंकों को तेजी से तैनात किया जा सकता है। ये सभी टैंक हल्के होने के साथ-साथ बेहतर मारक क्षमता और सुरक्षा प्रदान करनेवाले होंगे। डीआरडीओ प्रमुख डॉ. कामत ने कहा कि पहला प्रोटोटाइप अगले छह महीनों में विकास परीक्षणों से गुजरेगा और फिर भारतीय सेना को दिसम्बर तक उपयोगकर्ता परीक्षण के लिए सौंप दिया जायेगा। परीक्षण पूरे होने में सम्भवत: दो साल लगेंगे और इसके बाद 2027 तक इसे सेना के बेड़े में शामिल कर लिया जायेगा।