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मोदी सरकार न्यूनतम वेतन की जगह मिनिमम वेज लाने की तैयारी में, होगा करोड़ों कर्मचारी को फायदा, बदल जाएगा जीवन स्तर, जानें कैसे

मोदी सरकार न्यूनतम वेतन की जगह मिनिमम वेज लाने की तैयारी में, होगा करोड़ों कर्मचारी को फायदा, बदल जाएगा जीवन स्तर, जानें कैसे

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Breaking news, National top news, national news, national update, national news, new Delhi top news : देश में गरीब लोगों के लिए केंद्र सरकार की ओर से अभी ‘न्यूनतम मजदूरी’ की व्यवस्था है। कई कंपनियों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने इस नियम से बचने के अलग-अलग उपाय निकाले हैं। अब इस कानून को और बेहतर बनाने के लिए लिए सरकार जल्द ही न्यूनतम मजदूरी के स्थान पर लिविंग वेज (Living Wage) प्रणाली लाने जा रही है। आपको बताते हैं कि इसके लागू होने से क्या बदलाव हो सकता है।

अगले साल आ सकता है लिविंग वेज सिस्टम

अभी हाल ही में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाईजेशन ने भी लिविंग वेज सिस्टम की वकालत की थी। आईएलओ ने इस संबंध में जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए थे। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाईजेशन के अनुसार लिविंग वेज के जरिए इस सिस्टम को और स्पष्ट किया जाए। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मिनिमम वेज सिस्टम को लिविंग वेज सिस्टम में बदलने की प्रक्रिया 2025 में करने वाला है। वर्तमान में करीब 50 करोड़ मजदूर देश में काम करते हैं। इनमें से 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें से अधिकतर को मिनिमम वेज नहीं मिल पाते।

क्या है मिनिमम वेज सिस्टम, इसे जानें 

देश में फिलहाल मिनिमम वेज लागू है। इसके तहत प्रति घंटे की वेतन की गणना की जाती है। भारत में विभिन्न राज्यों में यह राशि प्रति घंटा के हिसाब से अलग-अलग तय की गई है। किसी भी कर्मचारी को इससे कम पैसा नहीं दिया जा सकता। महाराष्ट्र में यह राशि 62.87 रुपये और बिहार में 49.37 रुपये प्रति घंटा है। अमेरिका में यही रकम 7.25 डॉलर (605.26 रुपये) है। भारत में असंगठित सेक्टर में काम करने वालों को मिनिमम वेज भी बहुत मुश्किल से मिल पाते हैं। सरकार भी इन सेक्टर में बहुत कार्रवाई नहीं कर पाती है।

लिविंग वेज सिस्टम से क्या होगा बदलाव ? 

लिविंग वेज सिस्टम को आसान शब्दों में समझे तो इसमें रोटी, कपड़ा और मकान से एक कदम आगे जाकर सोचा जाता है। लिविंग वेज में वर्कर के सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक कई जरूरी चीजों के बारे में भी ध्यान दिया जाता है। इस सिस्टम में ध्यान दिया जाता है कि वर्कर और उसके परिवार को सामाजिक सुरक्षा के साधन भी मिलें। लिविंग वेज सिस्टम में लेबर को मूलभूत जरूरतों से ऊपर जाकर घर, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कपड़े जैसी कई जरूरतें शामिल होती हैं।

ये चीजें बनेंगी मेहनताना का आधार

अगर सरकार नई व्यवस्था लाती है, तो किसी व्यक्ति के लिए मेहनताने का आधार रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरतों पर होने वाले खर्च को बनाया जाएगा। हर सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए वहां आने वाले खर्च के हिसाब से मेहनताना तय होगा। मौजूदा व्यवस्था में लेबर प्रोडक्टिविटी और स्किल को आधार बनाया जाता है। अभी देश में 176 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी, मिनिमम वेज होती है। साल 2017 से इसमें कोई बदलाव भी नहीं हुआ है। ये देश में वेल्थ डिस्ट्रिब्यूशन को भी सही तरीके से नहीं करती है।

वेल्थ डिस्ट्रिब्यूशन को बेहतर बनाने पर बल

माना जा रहा है कि देश में नई व्यवस्था आने से लोगों को पहले से अधिक मेहनताना मिलने लगेगा। भारत में फिलहाल 50 करोड़ से ज्यादा लोग दैनिक मजदूरी पर गुजारा करते हैं। इसमें भी 90 फीसदी से ज्यादा असंगठित क्षेत्र के मजदूर है। मजदूरी को लेकर तय होने वाली नई व्यवस्था से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को बड़ा लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है। वहीं इसका एक और फायदा ये होगा कि ये अलग-अलग सेक्टर्स में काम करने वाले लोगों के बीच वेल्थ डिस्ट्रिब्यूशन को थोड़ा बेहतर बना सकता है।

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