Recommendation to hold elections for the Legislative Assembly along with the Lok Sabha, Breking news, National top news, national news, national update, national news, new Delhi top news : पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में केन्द्र और राज्यों में एक साथ चुनाव कराने सम्बन्धित सिफारिशें देने के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। इसमें सिफारिश की गयी है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का हो और किसी कारण से सरकार नहीं बन पाने या सरकार नहीं चल पाने की स्थिति में दोबारा चुनाव केवल बाकी बचे समय के लिए हो।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी सुझावों और दृष्टिकोणों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद समिति एक साथ चुनाव कराने के लिए दो-चरणीय व्यवस्था की सिफारिश करती है। पहले चरण के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराये जायेंगे। दूसरे चरण में नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव कराने के सौ दिनों के भीतर कराये जायें। इसके लिए होने वाले संवैधानिक बदलाव के लिए कम से कम आधे राज्यों के समर्थन की आवश्यकता होगी।
इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों की सहमति की आवश्यकता
समिति ने सिफारिश की है कि सरकार के सभी तीनों स्तरों के निर्वाचनों में प्रयोग के लिए एक ही निर्वाचक नामावली और निर्वाचक फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) होने चाहिए। इन संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों की सहमति की आवश्यकता होगी। समिति का कहना है कि त्रिशंकु सदन, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में लोक सभा के समाप्त नहीं हुए कार्यकाल के लिए नयी लोकसभा या राज्य विधानसभा के गठन के लिए नये सिरे से चुनाव कराये जाने चाहिए। समिति की सिफारिश है कि साजो-सामान सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पहले से योजना बनायेगा और अनुमान लगायेगा और जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम व वीवीपीएटी आदि की तैनाती के लिए कदम उठायेगा, ताकि एक साथ सरकार के तीनों स्तरों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित हों।
सामाजिक सामंजस्य को प्रोत्साहित करेगा
समिति का मानना है कि एक साथ चुनाव मतदाताओं की पारदर्शिता, समावेशिता, सहजता और विश्वास को बढ़ायेंगी। एक साथ चुनाव कराने के लिए भारी समर्थन विकास प्रक्रिया और सामाजिक सामंजस्य को प्रोत्साहित करेगा, लोकतांत्रिक ढांचे की नींव को मजबूत करेगा और भारत की आकांक्षाओं को साकार करेगा। पैनल ने कहा कि सभी चुनावों को एक साथ कराने के लिए एक बार का अस्थायी उपाय आवश्यक होगा। आम चुनावों के बाद लोकसभा का गठन किया जाएगा और राष्ट्रपति पहली बैठक की उसी तारीख को अधिसूचना द्वारा परिवर्तन के प्रावधानों को लागू करेंगी। यह तिथि नियत तिथि कहलाएगी। एक बार प्रावधान लागू हो जाते हैं, तो नियत तिथि के बाद किसी भी चुनाव में गठित सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त हो जायेगा ; भले ही विधानसभा का गठन कभी भी हुआ हो।
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में गठित समकालिक चुनावों पर उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 18,626 पृष्ठों वाली रिपोर्ट, 02 सितम्बर को अपने गठन के बाद से 191 दिनों के हितधारकों और विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श और अनुसंधान कार्य का परिणाम है।
समिति के अन्य सदस्यों में केन्द्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में पूर्व नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष सी. कश्यप, हरीश साल्वे, और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी और विधि एवं न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल विशेष आमंत्रित थे। उच्च स्तरीय समिति के सचिव डॉ. नितेन चन्द्र थे।
विचारों को समझने के लिए व्यापक परामर्श किया
समिति ने विभिन्न हितधारकों के विचारों को समझने के लिए व्यापक परामर्श किया। 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार और सुझाव प्रस्तुत किये, जिनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। कई राजनीतिक दलों ने इस मामले पर एचएलसी के साथ व्यापक चर्चा की थी। सभी राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के समाचार पत्रों में प्रकाशित सार्वजनिक सूचना के उत्तर में पूरे भारत के नागरिकों से 21,558 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं। 80 फीसदी लोगों ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। समिति द्वारा विधि विशेषज्ञों, जैसे भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और प्रमुख उच्च न्यायालयों के बारह पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, भारत के चार पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों, आठ राज्य निर्वाचन आयुक्तों और भारत के विधि आयोग के अध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया था। भारत निर्वाचन आयोग से भी विचार मांगे गये थे।
सीआईआई, फिक्की और एसोचैम जैसे शीर्ष व्यापारिक संगठनों और प्रख्यात अर्थशास्त्रियों से भी पृथक चुनावों के आर्थिक नतीजों पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए परामर्श किया गया था। उन्होंने मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था को धीमा करने पर पृथक चुनावों के प्रभाव के कारण एक साथ चुनाव की आर्थिक अनिवार्यता की वकालत की। इन निकायों द्वारा समिति को जानकारी दी गयी कि बीच-बीच में होनेवाले चुनावों का सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के अलावा आर्थिक विकास, सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता, शैक्षिक और अन्य परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।