डाॅ. आकांक्षा चौधरी
हमारी आज की पीढ़ी बापू को बस हरे गुलाबी बदलते नोटों पर स्थितप्रज्ञ रहनेवाले चेहरे के तौर पर पहचानती है। नोटबंदी, नोटबदली जितने भी कार्यक्रम हैं, उन सबमें अभी चार-पांच साल के मेरे बेटे ने एक ही स्थिर चीज़ नोटिस की, वह था नोटों पर बापू का चेहरा। उसके स्कूल में दो अक्टूबर के लिए बच्चों को गांधी जी की जीवनी पर एक प्रहसन करना था। …तो, मेन रोड में खादी ग्रामोद्योग भंडार की दुकान से उसके लिए खादी की टोपी और धोती खरीदने पहुंचे। वहां मेरे बेटे ने बापू की आदमकद फोटो देख कर उसने पूछा कि “यह नोटवाले बाबा यहां क्या कर रहे हैं ? यही बापू हैं न ! क्या यह कपड़े भी बेचते हैं !” उस बच्चे ने झटपट एक और सवाल पूछ कर मुझे भ्रमित कर दिया कि “सारा पैसे पर तो बापू की ही फोटो होती है, फिर यह इतने गरीब क्यों हैं मम्मा? कपड़े भी पूरे नहीं पहनते !”
मैंने जवाब देने की कोशिश की, लेकिन वह जवाब खुद मुझे ही संतुष्ट नहीं कर पा रहा था। मैंने कहा – “बेटा, यह हमारे राष्ट्रपिता ( फादर ऑफ नेशन) महात्मा गांधी हैं। इन्होंने ही देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया था, इसलिए आदर सहित हम इनकी फोटो हर सरकारी कामकाज और पैसे-रुपये पर छपवाते हैं। यह हमारे देश की आवाज थे।”
“…तो, मम्मा ! फिर हम अपने फादर को पैसा बना देते हैं और यह कपड़े की दुकान पर क्यों ? क्या यह कपड़े भी बेचते थे ?”
मैंने फिर से उस छोटी-सी जान को समझाने की कोशिश की – “अरे नहीं बेटा ! पैसा नहीं बना देते ! जैसे तुमसे मुझे प्यार है, तो मैं तुम्हें गिफ्ट्स देती हूं और तुम भी मुझे रेस्पॉन्स में प्यार करते हो, वैसे ही पूरी इंडिया कंट्री उनसे प्यार करती है, तो बस इसलिए, उनकी फोटो रुपये पर है।”
“तो मम्मा… क्या मैं आपकी फोटो देकर दुकान से कुछ खरीद लूं?”
मैं हताश उसे कुछ नहीं कहना चाह रही थी, तभी बीच में ड्राइविंग सीट से मेरे पति महोदय ने बेटे को समझाना शुरू किया – “बेटा, हर किसी की फोटो उतनी बहुमूल्य नहीं होती, जितनी बापू की है। उन्होंने कितने दिन भूखे प्यासे रह कर, कभी अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा और सत्य से लड़ कर, जेल जाकर हमें जीने का हक दिलवाया…अंग्रेजों को भगा दिया इंडिया से। वह बहुत ब्रेव थे।”
“तो क्या, वह हमारे किंग थे ?” बेटे ने पूछना जारी रखा। उसके पापा ने कहा – “नहीं किंग तो नहीं, लेकिन उससे भी ज्यादा। हम सबके पापा।”
“फिर, एक आदमी ने उन्हें गोली क्यों मारी ? अपने पापा को या किंग को गोली मारना, तो गंदी बात है न ! क्या वह उनसे प्यार नहीं करते थे?” अब पति महोदय भी थोड़ी दुविधा में पड़े। उन्होंने कहा “यह तुमको किसने कहा? वह गोली गलती से लग गयी थी।”
मेरे बेटे ने फिर आत्मविश्वास से जवाब दिया – ” पापा मैं स्कूल में नाथूराम गोडसे बना हूं और मैं बापू को सामने से गोली मारनेवाला हूं, फिर गलती से कैसे? उन्होंने जान-बूझ कर बापू को मारा था न ! कोई अपने पापा को कैसे मार सकता है ?”
मेरे पति ने बस इतना कह कर बात खत्म की, कि “कोई अपने पापा को गोली नहीं मार सकता बेटे ! लेकिन, तुम नाथूराम गोडसे क्यों बने हो यार? बुरा आदमी था वह, बापू बनते तुम !”
पापा, मिस ने कहा कि एक रोल एक ही बच्चा कर सकता है। हर कोई बापू बनेगा, तो गोडसे कौन बनेगा? इसलिए मुझे गोडसे बनाया और मिस ने यह भी समझाया कि बापू ने तो गोडसे को भी माफ़ कर दिया था कि इसकी कोई ग़लती नहीं है। यह मेरी बात नहीं समझ पाया ! कोई भी इंसान बुरा नहीं होता। बुरी होती हैं सोच और हिंसा ! यह हिंसा क्या होती है पापा…?”