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मौत की रेलयात्रा और भावुकता का मरहम

मौत की रेलयात्रा और भावुकता का मरहम

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(निशिकांत ठाकुर)

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)Mail Id. nishikant.shuklapaksha@gmail.com Phone: +91 9810053283

‘सांप निकल जाने का बाद लकीर पीटना’ कहावत बालेश्वर (ओडिसा) रेल हादसे पर सौ प्रतिशत सटीक बैठता है। हादसे के बाद प्रधानमंत्री का दुर्घटना स्थल और अस्पताल में जाकर पीड़ितों से उनका दुख—दर्द सुनना, उनकी पीड़ा को कम करने का प्रयास करना, रेलमंत्री का तड़के घटना स्थल पर जाकर पीड़ितों से मिलकर हादसे के कारणों का पता लगाने का प्रयास करना प्रधानमंत्री और रेलमंत्री के पीड़ितों और घायलों के प्रति संवेदना को दिखाता है। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री और रेलमंत्री पीड़ितों से मिलकर भावुक थे, लेकिन क्या इन भावुकताओं से हादसे में मारे गए लोगों को जिंदा किया जा सकता है? हादसा तो हो चुका है, निर्दोष यात्री अपने गंतव्य तक पहुंचने के बदले पंचतत्व में विलीन हो गए, अब हादसे की सीबीआई जांच का कोई लाभ उन्हें नहीं मिलने वाला है। हां, उनके आश्रितों को उसका मुआवजा मिल जाएगा, जैसा कि रेलमंत्री ने घोषणा की है। 

अब सारी व्यवस्था ठीक कर ली जाएगी और भविष्य में कभी भी इस प्रकार की दुर्घटना नहीं घटेगी, ऐसा रेलवे से जुड़े सभी यहीं कहेंगे, लेकिन इतनी बड़ी जो दुर्घटना हो गई और लगभग तीन सौ लोगों की मृत्यु हो गई, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या इतने जीवन का हमारे देश में कोई मूल्य नहीं? प्रधानमंत्री और रेलमंत्री के भावुक होने अथवा रोने से क्या मामले को लेकर लापरवाही बरतनेवाले माफ कर दिए जाएंगे? नहीं, ऐसा कोई कानून नहीं कहता, जिम्मेदारी तो किसी—न—किसी को लेनी ही पड़ेगी और कानून के अनुसार उन्हें दंड भी दिया जाएगा, जिनके कारण इतना बड़ा हादसा हुआ, सैकड़ों लोग अकारण काल के गाल में समा गए और देश के अरबों रुपयों का नुकसान हुआ। सीबीआई को इस दुर्घटना की जांच सौंपकर क्या इतनी बड़ी दुर्घटना से आंखें बंद कर ली जाए? रेलमंत्री का कहना है कि ओडिशा के बालेश्वर में हुए भयंकर रेल हादसे के कारण का पता चल गया है। हादसे से जु़ड़ी पूरी जानकारी की रिपोर्ट जल्द ही उच्चाधिकारियों को सौंप दी जाएगी, जिसमें हादसे की सच्चाई का खुलासा हो जाएगा। बताया जा रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की वजह से हादसा हुआ है। इसमें जिम्मेदार लोगों की पहचान भी कर ली गई है। अब प्रश्न यह है कि आखिरकार इतने बड़े भीषण हादसे का जिम्मेदार कौन है और किसकी लापरवाही से हुआ? यह हादसा किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं है? ओडिसा के बालेश्वर में हुए रेल हादसे के 40 घंटे बाद केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि दुर्घटना का मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव से हुआ। रेलमंत्री ने कहा कि जो इसके लिए जिम्मेदार थे, उनकी पहचान भी हो चुकी है। अभी हमारा पूरा ध्यान राहत और बचाव कार्य में लगा हुआ है। रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने पूरे मामले की जांच की है और इस पर अभी से कुछ कहना सही नहीं है। बता दें कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम से रेल का ट्रैक तय किया जाता है और किसी भी ट्रेन को तब तक आगे बढ़ने का सिग्नल नहीं मिलता, जब तक आगे का ट्रैक सुरक्षित न हो जाए।

आधुनिक तकनीक से लैस भारतीय रेल विभाग लाख तरक्की के बावजूद रेल हादसों पर पूरी तरह लगाम नहीं लगा सका है। आजादी के बाद देश में कई बड़े हादसे हो चुके हैं। एक बड़ी दुर्घटना वर्ष 1981 में बिहार में मानसी से सहरसा जाती हुई पैसेंजर ट्रेन के नौ डिब्बों के बागमती नदी में गिरने से हुई थी। उस हादसे में 800 लोगों की मृत्यु हो गई थी। रेल दुर्घटना में सौ दो सौ लोगों का काल के गाल में समा जाना बड़ी बात नहीं है। यह भी ठीक है कि रेल प्रणाली में आमूलचूल विकास हुआ है और आगे भी होते रहेंगे। भारत जैसे विशाल देश में जहां, से ढाई करोड़ लोग अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए रोज रेल से ही यात्रा करते है, वहां यदि इस तरह की मानवीय अथवा तकनीकी लापरवाही या साजिश को रोका नहीं गया, तो वह दिन दूर नहीं, जब उनका विश्वास रेल मार्ग से यात्रा करने से उठ जाएगा और फिर वे आदिमयुग में अपने जीवन को वापस ले जाने की कल्पना करने लगेंगे।  

रेलवे के मामले में विश्व के पांच विकसित देशों में भारत चौथे स्थान पर है। उससे ऊपर और नीचे जिन देशों का स्थान है, वे कौन से देश हैं। अमेरिका का रेल नेटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा है। इसकी कुल लंबाई 2,50,000 किलोमीटर है। इसमें से सिर्फ 35,000 किलोमीटर हिस्सा यात्रियों के लिए, बाकी का करीब 80 फीसदी हिस्सा फ्रेट लाइनों का है। 1,00,000 किलोमीटर की लंबाई के साथ चीन ने रेल नेटवर्क के मामले में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। यह रेल नेटवर्क चीन रेलवे कॉरपोरेशन संचालित करता है, जिसने 2013 में 2.08 अरब लोगों को रेल सेवाएं दीं, जो भारतीय रेलवे के बाद दूसरा सबसे अधिक आंकड़ा है। 85,500 किलोमीटर के रेल नेटवर्क के साथ रूस तीसरे सबसे बड़े रेल नेटवर्क वाला देश है। इसे रशियन रेलवे संचालित करता है। 2013 में रशियन रेलवे ने करीब 1.08 अरब यात्रियों को सेवा दी थी और करीब 1.2 अरब टन माल की ढुलाई की थी, जो अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे अधिक आंकड़ा है। भारत का रेल नेटवर्क 65,000 किलोमीटर लंबा है, जिसे भारतीय रेलवे संचालित करता है, जो सरकार के अधीन है जिसका अलग एक मंत्रालय भी है, जिसे रेलमंत्री द्वारा नियंत्रित किया जाता है। 2013 में भारतीय रेलवे ने करीब 8 अरब यात्रियों को सेवाएं दी हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है। वहीं, माल ढुलाई के मामले में भारत करीब 1.01 मिलियन टन के साथ दुनिया में चौथे स्थान पर है। दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क कनाडा का है। इसकी कुल लंबाई 48,000 किलोमीटर है। देश में यात्री रेल सेवा करीब 12,500 किलोमीटर की है, जो ‘वाया रेल’ की तरफ से संचालित की जाती है। कनैडियन नेशनल रेलवे और कनैडियन पैसिफिक रेलवे देश के दो प्रमुख ऐसे रेल नेटवर्क हैं, जो फ्रेट की सेवा प्रदान करते हैं।

हर एक व्यक्ति का जीवन अनमोल है। यदि किसी को हम आहत करते हैं, तो उसके लिए विश्व के सभी देशों के साथ भारत में भी कानून बने हुए हैं, लेकिन यहां एक अनमोल जीवन की कोई क्या बात करे, सकड़ों व्यक्ति एक साथ हादसे के शिकार हो जाते हैं। दुर्भाग्य यह है कि हादसे के कुछ दिन तक तो अफसोस जताया जाता है, लेकिन बाद में सब सब कुछ सामान्य हो जाता है: क्योंकि मरने वाले तो यह पूछने नहीं आते कि हादसे को लेकर किसे क्या सजा मिली। आज तक जितनी भी रेल दुर्घटना भारत में हो चुकी है, उनमें जांच तो सभी की होती है, लेकिन कुछ दिन बाद यह किसी को पता नहीं चलता कि आखिर उस हादसे के दोषियों को क्या सजा मिली। बात आई गई हो जाती है। सत्ता की ऊंची कुर्सी पर जो बैठे होते हैं, उन्हें अपनी राजनीति चमकाने से फुरसत नहीं मिलती। अपने अगले चुनाव की चिंता उन्हें लगी रहती है। खालिस सामान्य लोग यदि मारे जाते हैं, तो वे अपने भाग्य से मारे जाते हैं। समझ में नहीं आता कि इस तरह की मानसिकता कब बदलेगी और हमारा भारतवर्ष भी अन्य विकसित देशों की तरह अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए सार्वजनिक रूप से देश की जनता से माफी मांगेंगे और भूल पर पश्चात्ताप करते हुए अपने मातहत छोटी जिम्मेदारी के तहत कार्यरत सामान्य कर्मचारी को दोषी ठहराकर अपनी जिम्मेदारी से कन्नी काट लेंगे। बालेश्वर रेल दुर्घटना की जांच तो सीबीआई शुरू कर चुकी है, जिसमें असली दोषी किसको सिद्ध करके सलाखों के पीछे पहुंचाया जाता है, इस संबंध में अभी सब केवल लकीर ही पीट रहे हैं। सच तो तभी दुनिया के सामने आएगा, जब अपराधी जेल के सलाखों के पीछे चला जाता है। फिलहाल तो इसी जिज्ञासा को जिंदा रखिए कि आखिर इस हादसे की जिम्मेदारी किसके मत्थे मढ़ी जाएगी।ध्यान रखिए किसी भी प्राणी के निर्दोष विकास के लिए जिस संस्कार–प्रणाली का उपयोग किया जाता है , वही धर्म है । शुष्क कर्मकांड का अर्थ धर्म नहीं इसलिए निर्दोष यात्रियों की घृणित हत्याकांड जैसें कृत्य के लिए अपराधियों के प्रति कठोर निर्णय तो लेना ही होगा– यही भारतीय कानून है और भारतीय धर्म भी ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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