New Delhi news : संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने मंगलवार को संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव स्तर के 45 पदों के लिए लेटरल एंट्री सम्बन्धी विज्ञापन रद्द कर भर्ती प्रक्रिया भी रद्द कर दी। आयोग ने यह कदम केन्द्र सरकार द्वारा लेटरल एंट्री का विज्ञापन वापस लेने के निर्देश के बाद उठाया है। यूपीएससी ने मंगलवार को जारी एक परिपत्र में लिखा, “सभी सम्बन्धितों को सूचित किया जाता है कि रोजगार समाचार, विभिन्न समाचार पत्रों और आयोग की वेबसाइट पर 17 अगस्त, 2024 को प्रकाशित विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव/निदेशक/उप सचिव स्तर के 45 पदों के लिए लेटरल एंट्री से संबंधित विज्ञापन संख्या 54/2024 को, अपेक्षित प्राधिकारी के अनुरोध पर रद्द कर दिया गया है।”
जारी विज्ञापन को रद्द करने के लिए लिखा था पत्र
इससे पहले मंगलवार को केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण, लोक शिकायत राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने यूपीएससी अध्यक्ष प्रीति सूदन से लेटरल एंट्री के लिए जारी विज्ञापन को रद्द करने के लिए पत्र लिखा था। इसमें उन्होंने कहा कि पिछली सरकारों के तहत, विभिन्न मंत्रालयों में सचिव, यूआईडीएआई का नेतृत्व आदि जैसे महत्त्वपूर्ण पद बिना किसी आरक्षण प्रक्रिया का पालन किये लेटरल एंट्री को दिये गये हैं। इसके अलावा यह सर्वविदित है कि बदनाम राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य एक सुपर-नौकरशाही चलाते थे और यह प्रधानमंत्री कार्यालय को नियंत्रित करती थी।
17 अगस्त को संयुक्त सचिव और निदेशक स्तर पर नियुक्ति के लिए यूपीएससी ने विज्ञापन निकाला था
पत्र में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृढ़ विश्वास है कि लेटरल एंट्री की प्रक्रिया को हमारे संविधान में निहित समानता और सामाजिक न्याय विशेष रूप से आरक्षण के प्रावधानों के संबंध से जुड़े सिद्धांतों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। हमारी सरकार का प्रयास प्रक्रिया को संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी और खुला बनाने का रहा है। लेटरल एंट्री का अर्थ है कि देश के शीर्ष सरकारी पदों पर सीधे नियुक्ति करना। वर्तमान में शीर्ष नौकरशाही से जुड़े पदों पर संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की नियमित चयन और प्रशिक्षण प्रक्रिया के बाद विभिन्न पदों पर रहने के बाद नियुक्ति होती है। 17 अगस्त को संयुक्त सचिव और निदेशक स्तर पर नियुक्ति के लिए यूपीएससी ने विज्ञापन दिया था।
नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं
यूपीएससी को लिखे पत्र में कहा गया था कि लेटरल एंट्री पदों को विशिष्ट माना गया है और एकल-कैडर पदों के रूप में नामित किया गया है, इसलिए इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री द्वारा सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने पर ध्यान केन्द्रित करने के संदर्भ में इस पहलू की समीक्षा और सुधार की आवश्यकता है। पत्र में पूर्ववर्ती सरकारों में लेटरल एंट्री की स्थिति भी बतायी गयी है। इसमें कहा गया है कि यह सर्वविदित है कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिद्धांत रूप में लेटरल एंट्री का समर्थन किया था, जिसका गठन 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में किया गया था। 2013 में छठे वेतन आयोग की सिफारिशें भी इसी दिशा में थीं। हालांकि, इससे पहले और बाद में लेटरल एंट्री के कई हाई-प्रोफाइल मामले भी हैं। इसके अलावा 2014 से पहले अधिकांश प्रमुख लेटरल एंट्री तदर्थ तरीके से की गयी थीं, जिसमें कथित पक्षपात के मामले भी शामिल हैं, हमारी सरकार का प्रयास प्रक्रिया को संस्थागत रूप से संचालित, पारदर्शी और खुला बनाने का रहा है। प्रधानमंत्री के लिए, सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण हमारे सामाजिक न्याय ढांचे की आधारशिला है, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना और समावेशिता को बढ़ावा देना है।