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अब बेशक आप मुझे मार ही क्यों ना डालो !!

अब बेशक आप मुझे मार ही क्यों ना डालो !!

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राजीव थेपड़ा

अपनी जिस सुन्दरता पर दिन-रात आप रीझते हुए नहीं अघातीं ! तो यह जो सुन्दरता अपने पायी है, यह तो अपने आप मानती ही होंगी कि यह आपको ईश्वर द्वारा वरदान स्वरूप प्रदत्त है। किन्तु, क्या इस सुन्दरता के केवल इतने ही मायने हैं कि आप सिर्फ और सिर्फ सुन्दरता की गहरी चाहत लिये हुए केवल लोगों की आंखों को सेंकने का काम करती दिखाई दें ?

जरा सोचिए ना ! इस धरती पर, सम्भवतः इस ब्रह्मांड में एक मात्र जीव मनुष्य को बुद्धिमता का वरदान मिला हुआ है और यह वरदान स्त्रियों और पुरुषों ; दोनों को ही तो मिला है, किसी एक को तो नहीं? तो उस बुद्धिमत्ता के कारण ही दुनिया में अब तक संसार में अब तक जितने भी लोग जाने-माने गये हैं या जिन्होंने संसार को अपनी बुद्धिमत्ता से एक ज्ञान का प्रकाश दिया है, एक दिशा उपलब्ध करायी है और ज्ञान के भूखे इन्हीं लोगों ने अपनी न जाने कितनी ही तरह की परिकल्पनाओं द्वारा नवीनतम आविष्कार किये, नवीनतम खोजें कीं और तब जाकर विकास के मायनों में दुनिया आज इस जगह पर जा पहुंची कि अपनी सुन्दरता को दिखाये रखने के लिए और बनाये रखने के लिए भी जिन किसी भी साधनों का आप उपयोग करती हैं, वे भी अन्ततः बुद्धिमत्ता के कारण ही आविष्कृत हुए हैं और जिन सौन्दर्य प्रसाधनों का आप उपयोग करती हैं, वह भी निश्चित तौर पर किसी न किसी की बुद्धिमत्ता द्वारा आविष्कृत और अन्य लोगों की बुद्धिमत्ता द्वारा विकसित किये जाते हैं और यह सब अनवरत जारी रहता है।

…तो प्लीज़ ! बुद्धिमत्ता के इन मायनों को भी समझिए! कभी सोचिए भी कि सुन्दरता ढल जायेगी ! आपको देखनेवाले भी कम हो जायेंगे ! इस संसार में पिपासु दृष्टियों की कोई कमी न तो कभी थी और ना ही अब हैं ! जितना आप अपने आप को उघाड़ कर दिखायेंगी, उतना ही लोग पागलों की तरह आप पर रीझते जायेंगे !! किन्तु, सच तो यह है कि दूसरे तो आप पर बाद में रीझते हैं ! सबसे पहले आप स्वयं खुद की सुन्दरता से खुद ही रीझती हैं ! किन्तु, तनिक विचारिये तो ! क्या आपकी यह सुन्दरता पिपासु और कामना भरी नजरों का केन्द्र-बिन्दु बनने भर के लिए है कि आपके भीतर एक अनूठे-अलौकिक ज्ञान के प्रकाश का आविर्भाव हो और आप भी अन्य बुद्धिमति स्त्रियों की तरह अपनी बुद्धिमत्ता द्वारा अपना प्रभाव बढ़ायें ! क्या यह अच्छा नहीं होगा ??

केवल और केवल अपनी सुन्दरता पर रीझना क्या एक बुद्धिभ्रष्टता का उदाहरण तो नहीं? घंटों तैयार होने में लगाना, घंटों स्वयं को देखना और फिर घंटों फोटो-सेशन करना और फिर घंटों दूसरों को रिझाना !! क्या यही जीवन है ?…और, कभी सोचा भी है कि इन सबमें लगभग कितने घंटे बर्बाद करती हैं आप ? क्या आपको इन सब बातों का तनिक भी भान है? यदि नहीं, तो होशियार हो जाइए, क्योंकि आप जहां तक सुन्दरता का मर्यादित प्रदर्शन करती हैं, वहां तक तो लोग स्वयं भी मर्यादित होते हैं, किन्तु जहां आप अपनी सुन्दरता को उघाड़ कर अश्लील बना देती हैं।…तो फिर वहां आप लोगों की नजरों को गंदा होने से और उनकी कामनाओं को विषाक्त होने से नहीं रोक सकतीं !

बेशक, आप यह कह दें कि मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं ;  मेरी मर्जी !! लेकिन, एक बात का सदैव ध्यान रहे कि एक तरफ यदि आपकी सुन्दरता है, तो दूसरी तरफ उसी सुन्दरता से उसी गहराई से जुड़ी हुई लोगों की कामनाएं हैं ! यदि एक चीज होगी, तो दूसरी चीज होकर ही रहेगी !! प्रतिशत का अंतर या अनुपात चाहे जो हो, किन्तु ज्यों सुन्दरता अपना वीभत्स रूप प्रदर्शित करती है, त्यों कामनाएं भी नग्न होती जाती हैं !!

ध्यान रहे, सुन्दरता और कामना एक दूसरे से अन्योन्याश्रित रूप से जुड़ी हुई हैं।…और, यदि इसका भी विचार आपको नहीं है, तो फिर इतिहास को स्मरण कीजिए। कि ना तो विगत में ऋषि मुनि इन कामनाओं से बच पाये और ना ही वर्तमान में साधु-महात्मा-मुल्ला-मौलवी-पादरी- गुरुजी इत्यादि-इत्यादि इन नैसर्गिक एवं प्राकृतिक कामनाओं से मुक्त हो पाते हैं !

सच तो यह है कि कुछेक विरले मनुष्य ही कामनाओं से मुक्त हुआ करते हैं, किन्तु ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि वह भी पूर्णतया मुक्त हुआ करते होंगे ! यदि आपको इसका भान नहीं है, तो फिर आप एक बहुत भयंकर चूक कर रही हैं ! मेरे इस दृष्टिकोण पर व्यापक शोर मचाया जा सकता है ! आप मुझे आकर मार भी सकती हैं ! क्योंकि, आपकी मर्जी ! आप चाहे यह करें, आप चाहे वह करें ! आप को रोकनेवाला भला कौन है ?

किन्तु, इन असीमित रागों का, इन चाहतों का अंतिम परिणाम क्या होता है ! यह आप भी भली प्रकार जानती हैं ! काश ! आपके भीतर ऐसा ज्ञान जन्म ले कि आप सुन्दरता को किनारे रख उस ज्ञान की भूख के लिए उसी प्रकार मरी जायें, जिस प्रकार आज आप सुन्दरता के लिए मरी जातीं हैं ! क्या आप इस छोटे से सच को भी नहीं देख पातीं कि चाहे विगत काल हो, चाहे वर्तमान काल, आपके सम्मुख जितनी भी प्रसिद्ध एवं बलशाली स्त्रियां हैं, सब पहले बुद्धिमति ही हैं !

तात्पर्य यह कि यदि सुन्दर स्त्रियां भी हैं, तो प्रभाव अंततः उन्हीं का है, जो साथ ही बुद्धिमति भी हैं !…तो क्या इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि बुद्धियुक्त होने पर सुन्दर हो या नहीं हो, यह एक बिलकुल महत्त्वहीन बात है !…तो आप इस बात का सदैव ध्यान रखिए कि क्षणभंगुर संसार में भी सदैव ज्ञान और बुद्धिमत्ता का ही जलवा रहेगा ! सुन्दरता कुछ क्षणों की मेहमान है! आयेगी और चली जायेगी, किन्तु आपका ज्ञान हमेशा इस संसार में न केवल अपने वर्तमान में ही प्रभावी होगा, बल्कि आनेवाले कल को भी आलोकित-प्रकाशित करता रहेगा ! इन्हीं शब्दों के साथ, आप सबों से क्षमा मांगते हुए….गाफिल।

(यह आलेख केवल और केवल उनके लिए है, जिनका सुंदरता के प्रति एक एकांगी दृष्टिकोण हैं। सभी के लिए नहीं है। इस आलेख में कुछेक वाक्यों को लेकर अपनी राय न बनायें, बल्कि इस समूचे आलेख के तात्पर्य को समझने का प्रयास करें।)

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