New Delhi news : भारत द्वारा सिंधु जल संधि को एकतरफा स्थगित किए जाने के फैसले से परेशान पाकिस्तान ने अब इस निर्णय पर पुनर्विचार की अपील की है। 22 अप्रैल को पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले के तुरंत बाद भारत ने इस संधि को रोकने का ऐलान कर दिया था, जिससे पाकिस्तान को स्पष्ट और कड़ा संदेश दिया गया। सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान ने भारत के जलशक्ति मंत्रालय की ओर से भेजे गए पत्र का जवाब देते हुए संधि को जारी रखने की मांग की है। उसने भारत के इस निर्णय से उत्पन्न संकट का हवाला देते हुए कहा कि इससे उसकी 80% कृषि और बड़ी आबादी के लिए पेयजल संकट उत्पन्न हो सकता है। भारत ने इस फैसले के तहत पाकिस्तान को जाने वाले पानी पर नियंत्रण के साथ ही नदियों से जुड़ा डाटा साझा करना भी बंद कर दिया है।
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी संधि
1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई इस संधि के तहत छह नदियों — ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम — के जल का बंटवारा तय हुआ था। इसमें पश्चिम की तीन नदियों का अधिकांश जल पाकिस्तान को दिया गया था। लेकिन अब भारत ने पहली बार इस संधि को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए उसे स्थगित करने का निर्णय लिया है।
पुनर्विचार की संभावना से जलशक्ति मंत्रालय का इनकार
पाकिस्तान ने अपने पत्र में संधि की शर्तों का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी पक्ष इसे एकतरफा स्थगित नहीं कर सकता और भारत को पुनर्विचार करना चाहिए। हालांकि भारत के जलशक्ति मंत्रालय ने फिलहाल अपने निर्णय पर पुनर्विचार की किसी संभावना से साफ इनकार कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद जलशक्ति मंत्री सीआर पाटिल ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को एक बूंद पानी भी नहीं दिया जाएगा और भारत तीन स्तरों पर इस फैसले को पूरी तरह लागू करने की दिशा में काम कर रहा है।
मोदी की दो टूक,पानी व खून भी एक साथ नहीं बह सकते
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने हालिया संबोधन में दो टूक कहा कि जैसे आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते, वैसे ही पानी और खून भी एक साथ नहीं बह सकते। उन्होंने यह स्पष्ट संकेत दिया कि भारत अब पहले की तरह उदारता नहीं दिखाएगा। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने भी बुधवार को कहा कि भारत के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा और भारत के हिस्से का हर बूंद पानी देश में ही रहेगा। उन्होंने बताया कि 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के बावजूद भारत ने इस संधि का सम्मान किया, लेकिन अब समय बदल गया है और भारत अब कठोर रुख अपनाएगा।



