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राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने कह दी ऐसी बात की हो गया संविधान का अपमान, पूर्व सांसद सलखान मुर्मू ने उठाया सवाल

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पूर्व सांसद और आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को उस बयान पर आड़े हाथों लिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘मैं रबर स्टांप नहीं बनना चाहता’। मुर्मू ने कहा कि ऐसा कह कर यशवंत सिन्हा ने संविधान और राष्ट्रपति पद का अपमान किया है। सलखान मुरमू में सवालिया लहजे में पूछा है कि देश का प्रथम नागरिक क्या रबड़ स्टांप हो सकता है।

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना तय

सालखन कहते हैं कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना करीब-करीब तय हो चुका है। यह भारतीय जनतंत्र  की गरिमा का अद्भुत सत्य है, जो संपूर्ण राष्ट्र के सहयोग से संभव हुआ है। परंतु वंचित वर्गों के लिए यह गर्व का ऐतिहासिक पल है। डा. मार्टिन लूथर किंग जूनियर के अनुसार वंचितों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए बने कानूनों अथवा वंचित व्यक्तियों की पदस्थापना से बहुत कुछ बदल नहीं जाता है। परंतु उक्त प्रतीकों से कुछ न कुछ जरूर बदलता है। सबसे बड़ी बात यह कि इससे समाज में सोच बदलती है। 

यशवंत सिन्हा को नहीं मिल रहा विपक्ष का पूरा समर्थन

सालखन मुर्मू ने आगे कहा कि यशवंत सिन्हा विपक्षी दलों के राष्ट्रपति प्रत्याशी हैं। लेकिन उनके समर्थकों के बीच उत्साह और वैचारिक एकता की कमी दिखाई दे रही है। सिन्हा साहब का दावा है कि वे ‘रबर स्टांप” राष्ट्रपति नहीं बनेंगे, वे शिक्षा और अनुभव में श्रेष्ठ हैं। वे विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं’। उनका यह दावा भारतीय संविधान और भारतीय जनतांत्रिक व्यवस्था और प्रक्रिया की नासमझी और निरादर है। भारत के राष्ट्रपति और अमेरिका के राष्ट्रपति की व्यवस्था और कार्यपालिका शक्तियां बिल्कुल भिन्न हैं। पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने पूछा कि क्या सिन्हा जी पूर्व के सभी राष्ट्रपतियों को रबर स्टांप घोषित कर अपमानित करने की हिमाकत कर सकेंगे ? क्या वे राष्ट्रपति बन जाएं तो संविधान के अनुच्छेद – 74 के तहत केंद्रीय कैबिनेट के सहयोग एवं सुझाव के विपरीत कार्य करेंगे ? ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ वाली कहावत को चरितार्थ करना शोभा नहीं देता है। भारत के राष्ट्रपति का पद कोई आईएएस/ आईपीएस का पद नहीं है। यह पूर्णत: एक राजनीतिक पद है। इसका निर्णय राजनीतिक दल और राजनीतिक प्रक्रिया से चुने हुए विधानमंडल और संसद के प्रतिनिधि करते हैं। 

द्रौपदी मुर्मू का निर्विवाद रहा है अब तक का कैरियर

सालखन ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा विधानसभा में दो बार विधायक बनीं। मंत्री भी बनीं। सर्वश्रेष्ठ विधायक के रुप में ‘नीलकंठ पुरस्कार’ प्राप्त किया। झारखंड प्रदेश के राज्यपाल के रूप में 6 वर्षों का निर्विवाद कार्यकाल पूरा किया। झारखंड प्रदेश और केंद्र में भाजपा के सरकारों के बावजूद उन्होंने झारखंड की आत्मा- छोटानागपुर और संताल परगना टेनेंसी कानूनों की रक्षा की। सरकारों की इच्छा के खिलाफ फैसला किया। चूंकि दोनों कानून झारखंडी और खासकर आदिवासियों की सुरक्षा कवच हैं। द्रौपदी मुर्मू ने सीएनटी/ एसपीटी कानूनों को बचाने वाले जन आंदोलनों को सम्मान दिया।

सीएनटी एसपीटी एक्ट पर सरकार को बिल लौटाया

सालखन मुर्मू कहते हैं कि झारखंड में कार्यरत राजनीतिक दलों से ज्यादा आदिवासी जनसंगठनों ने सीएनटी-एसपीटी कानूनों को बचाने का जोरदार आंदोलन किया था। जिसमें आदिवासी सेंगेल अभियान सबसे आगे था। हमारे द्वारा मान्य झारखंड हाई कोर्ट में झारखंड सरकार द्वारा किए गए गलत संशोधन के खिलाफ दायर मुकदमा संख्या: 6595/ 2016 dt 17.11.2016 को भी मुर्मू जी ने संज्ञान में लिया और पत्र संख्या: 883 dt 15.3. 2017 के तहत मुख्य सचिव झारखंड को जवाब मांगा। झारखंड सरकार जवाब नहीं दे सकी। अंततः उन्हें TAC में 3.11.2016 को और विधानसभा में 23.11.2016 को पारित गलत बिल को वापस करना पड़ा। द्रौपदी मुर्मू ने संविधान की मर्यादा को अक्षुण्ण रखा। TAC या आदिवासी सलाहकार परिषद में प्रस्तावित गलत नियुक्ति- नियमावली आदि को कई बार अस्वीकार किया था। जो वर्तमान राज्यपाल माननीय रमेश बैस ने भी किया है।

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