- सीटों की संख्या और सीएम चेहरे को लेकर सहयोगियों से करेंगे बात
Patna News : बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन अपराध और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का वादा करेगा। वोटर को आकर्षित करने के लिए महागठबंधन के लोकलुभावन वादे भी होंगे। एसआईआर की गड़बड़ियां गिनाने-बताने के लिए राहुल गांधी 17 अगस्त से बिहार में ही रहेंगे। इसके जरिये वह महागठबंधन के पक्ष में चुनावी माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। इस दौरान राहुल गांधी बिहार के ज्यादातर जिलों में पद यात्रा करेंगे। उनकी पदयात्रा सासाराम से सीमांचल तक के 50 अहम विधानसभा क्षेत्रों से गुजरेगी। महागठबंधन की एकजुटता दिखाने के लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, सीपीआई (एमएल) नेता दीपांकर भट्टाचार्य समेत महागठबंधन के अन्य नेता भी राहुल गांधी की पदयात्रा में शामिल होंगे। इन सबके बावजूद आरजेडी और महागठबंधन के बीच जो पेंच फंसा है, वह कितना ढीला है, यह देखना दिलचस्प होगा।
महागठबंधन के नेताओं की लगातार बैठकें पिछले 2-3 महीनों से हो रही हैं। अभी तक इस बात पर सहमति नहीं बन पायी कि महागठबंधन का सीएम का चेहरा कौन होगा। हालांकि, लालू यादव यह बात कहते रहे हैं कि तेजस्वी को किसी भी कीमत पर इस बार सीएम बनाना है। तेजस्वी भी अपने को भावी सीएम घोषित करते रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस ने इसमें पेंच फंसा दिया है और कहा कि सीएम चेहरा चुनाव से पहले घोषणा होगी या चुनाव बाद फैसला होगा, इस बारे में बैठक कर तय किया जायेगा। लेकिन, किस बैठक में और वह बैठक कब होगी, किसी को पता नहीं। कभी कांग्रेस के प्रदेश स्तर के बड़े नेताओं के साथ, तो कभी शीर्ष नेतृत्व के साथ तेजस्वी यादव की मुलाकातें-बैठकें होती रही हैं। लेकिन, अभी तक इस मुद्दे पर सहमति नहीं बनी है कि तेजस्वी यादव ही 2020 की तरह इस बार भी महागठबंधन के सीएम चेहरा होंगे।
महागठबंधन की बैठकों के लिए कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को संयोजक की भूमिका दी है। कांग्रेस ने दूसरा पेंच सीटों को लेकर फंसाया है। कांग्रेस का कहना है कि उसकी तैयारी तो सभी सीटों पर है, लेकिन वह महागठबंधन में कम से कम पिछली बार की तरह 70 सीटें चाहती है। वह भी मन पसंद। यह स्थिति इसलिए पैदा हुई है कि 2020 में कांग्रेस ने 70 पर लड़ कर सिर्फ 19 सीटें ही जीती थी। उसका आरोप है कि उसे वैसी सीटें दी गयी थीं, जहां महागठबंधन का प्रत्याशी कभी नहीं जीता। कांग्रेस का परफार्मेंस खराब रहने के कारण ही तेजस्वी यादव सीएम बनने से चूक गये। दर्जन भर सीटें और महागठबंधन को मिली होतीं तो आज सरकार महागठबंधन की होती और सीएम तेजस्वी रहते।
कांग्रेस भले हड़बड़ी में नहीं दिखती है, लेकिन सीटों का जल्द से जल्द बंटवारा सभी चाहते हैं। जल्दी बंटवारा होने से उम्मीदवार को अपने क्षेत्र में प्रचार का प्रचुर समय मिल जाता। चूंकि, इस बार महागठबंधन में दो नये पार्टनर आ गये हैं, इसलिए उनके लिए सीटों का बंदोबस्त महागठबंधन के लिए मुश्किल हो रहा है। यह तभी सम्भव है, जब पहले की पांच पार्टियों को पिछली बार मिली सीटों में कटौती की जाये। घटक दलों को संदेह है कि उनकी सीटें कट सकती हैं। इसलिए सभी संख्या का दबाव बनाये हुए हैं। सच यह है कि कोई भी पार्टी संख्या घटाने को तैयार नहीं है। सीपीआई (एमएल) को तो इस बार पिछले मुकाबले ज्यादा सीटें चाहिए। वीआईपी के मुकेश सहनी 60 सीटों के साथ डेप्युटी सीएम पद चाहते हैं। आरएलजेपी के पशुपति कुमार पारस भी इसीलिए महागठबंधन में आये हैं कि उन्हें भी कुछ सीटें जरूर मिलेंगी। सीटों की दावेदारी करीब-करीब सभी दलों ने कर दी है। कांग्रेस ने खुलकर अभी तक कुछ नहीं कहा है, लेकिन उसके नेताओं के जिस तरह के बयान आते रहे है, उससे लगता है कि वह पिछली बार की 70 सीटों में 10-15 घटा सकती है, लेकिन सीटें उसे मनमाफिक चाहिए।
एसआईआर पर कांग्रेस विपक्ष की आवाज को बुलंद कर रही है। राहुल गांधी बिहार में इसी मुद्दे पर पदयात्रा कर रहे हैं। जाहिर है कि तब कांग्रेस की अपेक्षाएं भी बढ़ सकती हैं। यह भी सम्भव है कि कांग्रेस अपनी सीटें अब कम ही न करे।



