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…और प्रिया “तीज” के असल मायने समझ चुकी थी !

…और प्रिया “तीज” के असल मायने समझ चुकी थी !

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लघुकथा : लेखिका – डाॅ. आकांक्षा चौधरी

सपना मैम हमेशा की तरह शालीनतापूर्वक सूती साड़ी में क्लास लेने पहुंची। सारी लड़कियों में खुसुर-फुसुर होने लगी कि “मैम आज ऐसे ही बिना बजे संवरें आयी हैं ! तीज के दिन बाकी मैम लोग को देखो ! इनके हसबैंड भी कभी नहीं आते हैं, इनको लेने के लिए। बाकी मैम लोग तो कार से जाती हैं, अपने-अपने हसबैंड के साथ और ये ऑटो से। बड़ी अजीब ही हैं।”

प्रिया ऊपर से नीचे सपना मैम को स्कैन कर रही थी और क्लास के बाद उसने एनाउंस किया – लगता है, सपना मैम के हसबैंड ने उनको छोड़ दिया है, क्योंकि न तो मैम ने बिछुआ पायल पहने हैं, न अल्ता मेंहदी की है। ये छोड़ी हुई औरत हैं, जो तीज में बिना रंगरोगन के हैं।” सारी लड़कियां भी जैसे समर्थन में थीं।

घर जाते समय यकायक तेज बारिश होने लगी और प्रिया फंस गयी। वह इधर-उधर सहायता को देख ही रही थी कि तभी सामने के टिन वाले गेट से आवाज़ आयी, “प्रिया, अंदर आ जाओ।” उसने देखा, सपना मैम छाता लेकर खड़ी थी। वह सकपकाते हुए उनके घर के अंदर चली गयी। 

मैम ने उसे तौलिया और अपनी सलवार-कमीज़ बदलने को दी और पानी लेने रसोई में चली गयीं।

घर बेहद सलीकेदार और साफ सूती हल्के रंगों के चादर और पर्दे से सजा हुआ था। 

तभी अंदर से किसी बीमार आदमी के खांसने की आवाज पर मैम दौड़ती हुई उस कमरे की तरफ भागीं। प्रिया ने कौतूहलवश झांका, तो देखा…एक प्रौढ़ लकवाग्रस्त आदमी, जिसे मैम अपनी गोद में सहारा देकर पानी पिला रही हैं। उसके मुंह से आधा पानी बाहर गिर रहा है। उस आदमी को स्थिरता से पलंग पर लिटा कर मैम ने उनके पैर छुए और कहा – “आज तीज है जी, अभी आपकी दी हुई पहली मैरेज एनिवर्सरी वाली साड़ी पहनूंगी। आपको पसंद है न!” 

मैम बिलकुल शांत-सौम्य मुस्कुरा रही थीं और इधर, प्रिया अवाक…असली तीज के मायने समझ चुकी थी।

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