Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, Dharm- adhyatm, dharm adhyatm, religious , chath puja : राजधानी में लोक आस्था का महापर्व छठ की तैयारी जोर शोर से शुरू हो गयी है। हर जगह छठ के गाने बजने लगे हैं। शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय पर्व शुरू होगा। पंडित राजेन्द्र पांडेय ने गुरुवार को बताया कि 17 नवम्बर को नहाय-खाय के साथ पर्व शुरू होगा। 18 नवम्बर को खरना होगा। जबकि, 19 नवम्बर की शाम 05:22 बजे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 20 नवम्बर को प्रात: 06:39 बजे उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित होगा। इसी दिन छठ का पारण होगा। दुर्गा पूजा, दीपावली, काली पूजा जैसे त्योहारों के बीत जाने के बाद लोक आस्था और सूर्योपासना के महापर्व छठ की गूंज हर ओर सुनाई देने लगी है। सुबह-शाम मंदिरों और जहां छठ व्रत के अनुष्ठान हो रहे हैं, उन घरों में बज रहे छठ के गीत वातावरण को भक्तिमय बना रहे हैं।
इस साल का अंतिम सामूहिक त्योहार
सूर्योपासना का यह पर्व आंग्ल वर्ष के अनुसार इस साल का अंतिम सामूहिक त्योहार है। कठोर तप और साधना का यह महापर्व विश्व के प्राचीनतम व्रतों में एक है। इसकी चर्चा पुराणों में भी है। बाबा आम्रेश्वर धाम स्थित दुर्गा मंदिर के पुजारी पडित सच्चिदानंद शर्मा बताते हैं कि छठ पर्व ही ऐसा व्रत है, जिसमें सिर्फ पय अर्थात दूध का सर्वाधिक महत्त्व है। उन्होंने बताया कि कश्यप ऋषि के कहने पर माता अदिति ने इस व्रत को किया था। इस व्रत के प्रभाव से उनके गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अवतार लिया था।
इस महापर्व की शुरुआत कब हुई
लोक आस्था के इस महापर्व की शुरुआत कब हुई, इसका कोई पामाणिक प्रसंग तो नहीं मिलता, लेकिन जिस गति से यह महापर्व बिहार से होकर पूरे विश्व में फैला है, इसका उदाहरण और कहीं नहीं मिलता। अब तो भारत ही नहीं, विदेशों में भी छठ महापर्व बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा है। यह व्रत स्वच्छता और आस्था का प्रतीक है। इसमें न पंडे-पुरोहितों की जरूरत पड़ती है और न ही किसी आडम्बर की। छठ व्रती कहते हैं कि अन्य पर्व त्योहारों में तो ईश्वर की मूर्ति या प्रतीक की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन छठ महाव्रत ऐसा अनुष्ठान है, जहां भक्त अपने आराघ्य के साक्षात दर्शन कर उनकी आराधना करते हैं। अपने आराध्य के साक्षात दर्शन कर आराधना का महापर्व है छठ। दीपावली के ठीक चार दिनों के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से चार दिवसीय महापर्व की शुरुआत हो जाती है और सप्तमी को उदयाचल सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ इसका समापन हो जाता है।
महाभारत और रामायाण में भी मिलता है वर्णन
कर्रा प्रखंड के राजपुरोहित परिवार से ताल्लुक रखने वाले पंडितसदर गोपाल शर्मा बताते हैं कि सूर्य को अर्घ्य देने की कथा का वर्णन महाभारत और रामायाण में भी मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार अपना राजपाट गंवा चुके पांडवों के कष्ट को देख कर द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की सलाह पर छठ व्रत का अनुष्ठान किया था। कुंती को कर्ण जैसा महाबली पुत्र भी सूर्य की कृपा से ही मिला था। कर्ण ने ही जल में रह कर सूर्य को अर्घ्य देने की परम्परा की शुरुआत की थी। भगवान श्रीराम भी सूर्यवंशी राजा थे। पंडित सदन गोपाल शर्मा बताते हैं कि बिहार में सबसे पहले सूर्य मंदिर की स्थापना द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने औरंगाबाद जिले के देव नामक स्थान पर किया था, जो आज भी उसी तरह है, जैसा हजारों साल पहले था। पंडित जी ने कहा कि सम्भवत: उसी समय से बिहार में छठ की परम्परा शुरू हुई होगी।