Why doesn’t the newlywed daughter-in-law celebrate her first Holi at her in-laws’ house? What is the connection with Holika, Dharm, religious, Dharma-Karma, Spirituality, Astrology, jyotish Shastra, dharmik totke, dharm adhyatm : होली का त्योहार आते ही लोगों में एक अलग ही लेवल का उत्साह होता है। बच्चों से लेकर बूढ़ें तक सभी होली के रंग में रंग जाते हैं। लेकिन हम सभी बचपन से अपने आस पड़ोस में एक परंपरा देखते हुए आए है कि कोई भी नई नवेली बहू अपनी पहली होली ससुराल नहीं मनाती। किसी से पूछो तो इस बारे में कोई ठीक जवाब नहीं दे पाते। लेकिन जब हम इस सवाल का जवाब पुराणों में खोजते हैं, तो आसानी से मिल जाता है। तो आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है?
विष्णु भक्त होने के नाते बच गए प्रह्लाद
पुराणों में वर्णित घटना के अनुसार हिरण्यकश्यप नाम के राक्षस के घर भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ था। वह बचपन से ही विष्णुभक्त थे। यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल पसंद नहीं थी तो उसने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर अपने ही बेटे को मारने की कोशिश की। लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्त होने के नाते बच जाते हैं। लेकिन होलिका जलकर भस्म हो जाती है।
नई बहू क्यों नहीं देखती होलिका दहन?
होलिका की इसी कहानी का एक और स्वरूप मिलता है। कहते हैं कि जिस दिन होलिका ने आग में बैठने का काम किया, अगले दिन उसका विवाह भी होना था। उसके होने वाली पति का नाम इलोजी बताया जाता है। लोक कथा के मुताबिक, इलोजी की मां जब बेटे की बारात लेकर होलिका के घर पहुंची तो उन्होंने उसकी चिता जलते दिखी। अपने बेटे का बसने वाला संसार उजड़ता देख वह बेसुध हो गईं और उन्होंने प्राण त्याग दिए। बस तभी से ये प्रथा चला आ रही है कि नई बहू को ससुराल में पहली होली नहीं देखनी चाहिए। इसीलिए वह होली से कुछ दिन पहले मायके आ जाती हैं।
बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश
हिरण्यकश्यप और उसके पुत्र प्रह्लाद की ये कहानी न केवल एक धार्मिक गाथा है, बल्कि इसमें निहित निःस्वार्थ भक्ति और बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश, आज के विचलित समाज को ईश्वर की मौजूदगी और उसके न्याय के प्रति अधिक विश्वास दिलाता है।