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धूमावती साधना : शत्रुनाश व धन प्राप्ति के लिए बेजोड़

धूमावती साधना : शत्रुनाश व धन प्राप्ति के लिए बेजोड़

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Dhoomavati Sadhana : धूमावती साधना : शत्रुनाश व धन प्राप्ति के लिए बेजोड़ है। धूमावती दस महाविद्या में से सातवीं हैं। इनका रूप विकराल है। वृद्धा, कृशकाय, वक्रदंता व विधवा हैं। बिखरे बाल के साथ रथ पर सवार हैं। रथ पर कौआ भी बैठा हुआ है। इनके मुख्य अस्त्र मूसल और सूप हैं। वे इसी से सृष्टि में प्रलय लाने में सक्षम हैं। लक्ष्मी की बड़ी बहन होने के कारण ज्येष्ठा लक्ष्मी भी कही जाती हैं।

लक्ष्मी प्राप्ति व शत्रु दमन में प्रभावी

इनकी पूजा मंदिर या निर्जन में हो तो अच्छा। शत्रु दमन में इनका प्रयोग प्रभावी होता है। लक्ष्मी प्राप्ति में भी उपयोगी हैं। यदि दुर्भाग्य में घिरे हैं। धन की लगातार समस्या बनी है। दोनों में स्थिति में इनकी साधना करें। रोग व प्रेतबाधा दूर करने में भी उपयोगी हैं। उपासक के घर सुख, शांति व समृद्धि आती है। शत्रु के खिलाफ साधना के दौरान ध्यान रखें। आपके मन में शत्रु के धन-वैभव को माता द्वारा सूप में समेटने का भाव हो। उस पर मूसल से प्रहार की भी भावना करें।

आध्यात्मिक शक्ति जगाने में सर्वोत्तम

महाविद्याएं सब कुछ देने में समर्थ हैं। फिर भी सबका मकसद अलग-अलग है। साधना के समय उसे ध्यान में रखें। धूमावती दारुण विद्या हैं। वे धन से लेकर शत्रुनाश में भी उपयोगी है। लेकिन आध्यात्मिक शक्ति के लिए श्रेष्ठ हैं। उनके रूप में ही असांसारिक भाव है। वे बंधनों से मुक्त कर ऊपर उठाती हैं। अतः साधकों के लिए यही मार्ग बेहतर है।

धूमावती उपासना के प्रमुख मंत्र

सप्ताक्षर मंत्र

धूं धूमावती स्वाहा।

ध्यान : येत् कालाभ्रनीलां विकलित वदनां काकनासां विकर्णाम्। संमार्जन्युक सूर्पैयुत मुसलं करां वक्रदंतां विषास्याम्।। ज्याष्ठां निर्वाणवेषा प्रकुटित नयनां मुक्तेकेशीमुदाराम्। शुष्कोत्तुंगाति तिर्यक् स्तनभर युगलां निष्कृपां शत्रुहन्त्रीम।।

विनियोग : इस मंत्र के ऋषि नारसिंह हैं। पंक्तिछंद: धूमावती देवता हैं। धूं बीज, स्वाहा शक्ति: संग शत्रुनिग्रह के लिए जप है।

अंगन्यास : धां, धीं, धूं, धैं, धौं, ध:।

अष्टाक्षर मंत्र

धूं धूं धूमावती स्वाहा। (मेरूतंत्र के अनुसार)।

धूं धूं धूमावति स्वाहा (मंत्रमहोदधौ के अनुसार)।

विनियोग : इस मंत्र के पिप्पलाद ऋषि हैं।निवृचछंद देवता धमावती हैं। धूं बीज, स्वाहा शक्ति हैं।

अष्टाक्षर मंत्र

धूं धूमावती स्वाहा ठ: ठ:। (शाक्त प्रमोद के अनुसार)।

अंगन्यास : ऊं धां, ऊं धीं, ऊं धूं, ऊं धें, ऊं धौं, ऊं ध:।

दशाक्षर मंत्र

धूं धूं धूं धूमावती स्वाहा।

विनियोग : इस मंत्र के ऋषि स्कंद हैं।पंक्ति छंद है। देवता धूमिनी, धूं बीज एवं शक्ति स्वाहा हैं।

चतुर्दशाक्षर मंत्र

धूं धूं धुर धूमावती क्रों फट् स्वाहा।

विनियोग : इस मंत्र के ऋषि क्षपणक है।गायत्री छंद है।देवता धूमावती, बीज धूं वशक्ति स्वाहा है।

विशेष-शत्रु के उच्चाटन में प्रयोग अमोघ है।

पंचदशाक्षर मंत्र

(अ) ऊं धूं दूमावति देवदत्त धावति स्वाहा। (देवदत्त के स्थान पर अमूकं पढ़ें। अर्थात जिस शत्रु के लिए कर रहे हों का नाम दें।

(ब) धूं धूं धूं धुरू धूमावति क्रों फट् स्वाहा।

सभी मंत्रों के लिए विधि

मंत्र जप के लिए पहले संकल्प लें। मंत्रों का एक लाख जप करें। तदनुसार दशांश हवन करें। जप से पहले रोज देवी का पूजन करें। शुभ दिन में साधना शुरू करें। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी उपयुक्त दिन है। उस दिन भी उपवास रखकर शुरू कर सकते हैं। जप अवधि में कम से कम बातचीत करें। जितना मौन रहेंगे, अच्छा होगा। मंदिर में हों तो शिवलिंग की भी पूजा करें। अन्यथा शिव बनाकर पूजा करना उचित। धूमावती साधना : शत्रुनाश व धन प्राप्ति में अमोघ है।

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