Motihari News : नागपंचमी का प्रसिद्ध पर्व शुक्रवार को हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जा रहा। श्रावण शुक्लपक्ष पंचमी तिथि को नाग देवता की पूजा होने के कारण इसे नागपंचमी की संज्ञा दी गई है। इस दिन नाग जाति के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान निवेदन करते हुए दूध और लावा चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है। सनातन धर्म में सर्प जाति की पूजा करना अपने आप में अद्भुत परंपरा है। यह उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति में ही संभव है। नागपंचमी बल- पौरुष, ज्ञानवृद्धि, तर्कशक्ति एवं स्पर्धा के परीक्षण का पर्व है। इसीलिए इसदिन अखाड़े का भी आयोजन होता है। यह जानकारी महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने दी।
नाग देवता सदैव शिव के सहचर हैं
उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार सावन का महीना शिव को समर्पित है और नाग देवता सदैव शिव के सहचर हैं जो शिव के गले में विराजमान रहते हैं। वही शिव के एकादश रुद्र में हनुमान जी भी पूजित हैं। इसलिए नागपंचमी के दिन शिव पूजन,रुद्राभिषेक एवं हनुमान जी के पूजन के साथ नाग पूजन एक साथ होता है। विज्ञान के अनुसार नाग जाति इस सृष्टि में मनुष्यों के लिए केवल प्राण घातक ही नहीं बल्कि प्राण रक्षक एवं उपकारक भी हैं। नागपंचमी के दिन नाग पूजन तथा दर्शन करने से नाग देवता संतुष्ट होते हैं,घर में समृद्धि आती है तथा सर्प-भय से रक्षा होती है।