Dharm adhyatm, Shani jayanti : वर्ष 2025 में शनि जयंती 27 मई, मंगलवार को मनाई जाएगी। यह दिन हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ता है। यही वह पावन दिन माना जाता है जब न्याय के देवता, कर्मफलदाता भगवान शनि देव का जन्म हुआ था। इस दिन शनि देव की विशेष पूजा, व्रत और उपाय किए जाते हैं ताकि जीवन में आने वाली बाधाएं दूर हों और व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार उचित फल मिले।
शनि देव का परिचय
शनि देव को नवग्रहों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। वे सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शनि देव का रंग अति श्याम है और वे न्याय के देवता माने जाते हैं। वे अच्छे कर्म करने वालों को शुभ फल और पापकर्म करने वालों को दंड देते हैं। उनका वाहन कौआ है और वे हाथों में दंड, त्रिशूल, धनुष और वर मुद्रा धारण करते हैं।
शनि जन्म कथा
पुराणों के अनुसार, शनि देव का जन्म सूर्य देव और छाया से हुआ। छाया ने घोर तपस्या कर शनि देव को जन्म दिया था। उनकी तपस्या इतनी प्रबल थी कि शनि देव गर्भ से ही शक्तिशाली और तेजस्वी हो गए। जैसे ही शनि का जन्म हुआ, उनकी दृष्टि सूर्य पर पड़ी और सूर्य तुरंत काला पड़ गया। इससे सूर्य देव ने शनि से नाराज होकर उन्हें तिरस्कृत किया।
शनि देव ने अपने पिता की अवमानना को चुनौती के रूप में लिया और कठोर तप करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। शिव ने उन्हें नवग्रहों में स्थान देकर कर्मों का न्याय करने की शक्ति प्रदान की। इसी कारण से शनि देव को ‘कर्मफलदाता’ भी कहा जाता है।
शनि जयंती का महत्व
शनि जयंती पर शनि देव की पूजा करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और महादशा के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
यह दिन आत्मविश्लेषण और कर्म सुधार का सर्वोत्तम अवसर माना जाता है।
शनि जयंती के दिन दान, तप और सेवा करने से पापों का क्षय होता है और सौभाग्य प्राप्त होता है।
जिन लोगों की कुंडली में शनि नीच या पीड़ित होता है, उन्हें इस दिन शनि पूजा अवश्य करनी चाहिए।
शनि जयंती की पूजा विधि
शनि जयंती की पूजा प्रातःकाल से लेकर संध्या वेला तक की जाती है। इसे घर या किसी शनि मंदिर में संपन्न किया जा सकता है।
पूजा सामग्री
काला तिल, काली उड़द, सरसों का तेल
नीले या काले वस्त्र
शनि देव की मूर्ति या चित्र
लोहे का दीपक, गुलाल, नीले फूल, धूप-दीप
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
प्रसाद (गुड़, चना, खीर)
पूजा विधि चरणबद्ध
1. संकल्प एवं स्नान:
सर्वप्रथम प्रातःकाल उठकर स्नान करें और नीले वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को स्वच्छ करें और पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके आसन लें। फिर संकल्प लें – “मैं आज शनि जयंती के पावन अवसर पर शनि देव की पूजा करता/करती हूँ ताकि मेरे जीवन से दुख और दोष समाप्त हों।”
2. शनि मूर्ति या चित्र की स्थापना
शनि देव की प्रतिमा को लोहे या लकड़ी की चौकी पर स्थापित करें। यदि संभव हो तो पीपल के वृक्ष के नीचे पूजा करना श्रेष्ठ माना गया है।
3. अभिषेक
शनि देव को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से स्नान कराएं। फिर स्वच्छ जल से धोकर नीले वस्त्र अर्पित करें।
4. पूजन और मंत्र जाप
शनि देव को काले तिल, उड़द, नीले फूल, काले वस्त्र और लोहे की वस्तुएं अर्पित करें।
लोहे के दीपक में सरसों का तेल भरकर दीप प्रज्वलित करें।
शनि मंत्रों का जाप करें, जैसे:
ॐ शं शनैश्चराय नमः।
ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
मंत्रों का जाप कम से कम 108 बार अवश्य करें।
साथ ही “शनि स्तोत्र” या “शनि चालीसा” का पाठ करें।
दान और व्रत
इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। केवल फलाहार या एक समय भोजन करें।
ब्राह्मणों, निर्धनों, कुष्ठ रोगियों को काले वस्त्र, काले तिल, कंबल, जूते, तेल और लोहे का पात्र दान करें।
पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं और सात बार परिक्रमा करें।
शनि दोष निवारण हेतु उपाय
हर शनिवार शनि मंदिर में सरसों का तेल चढ़ाएं।
शनिवार को काली गाय, काले कुत्ते या कौवे को रोटी व तेल में चुपड़ी रोटी खिलाएं।
“हनुमान चालीसा” का पाठ शनि दोष से मुक्ति दिलाता है क्योंकि हनुमान जी शनि देव के कष्टों से रक्षा करते हैं।
शनि यंत्र की स्थापना कर नित्य पूजा करें।
शनि जयंती का निष्कर्ष
शनि जयंती एक ऐसा दिन है जब हम शनि देव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि कर्मों का फल निश्चित है और जीवन में अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा और परोपकार के बिना शांति नहीं मिलती। यदि हम शनि देव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो हमें अपने कर्मों को शुद्ध करना होगा। यह पर्व आत्मचिंतन, सेवा और संयम का प्रतीक है।



