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देसी श्वान पर भी लुटाएं प्रेम और पैसा

देसी श्वान पर भी लुटाएं प्रेम और पैसा

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आनंद सिंह

इंद्रजीत तिवारी और उनकी पत्नी ज्ञानवी देवी सरायकेला खरसावां जिले के आदित्यपुर में रहते हैं। श्वानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह दंपती आहत है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि दिल्ली में जो तीन लाख से ज्यादा स्ट्रीट श्वान हैं, उन्हें शेल्टर होम में रखा जाए। यह आदेश उस याचिका के जवाब में आया, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली में सड़कछाप श्वान लोगों को काट रहे हैं, कई इंसानों की मौत भी हो चुकी है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने सड़कछाप श्वानों को शेल्टर होम में बंद करने से संबंधित फैसला सुनाया। ज्ञानवी देवी इस फैसले से सहमत नहीं हैं। उनका सीधा सवाल है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट को यह व्यवस्था भी देनी चाहिए कि ये शेल्टर होम बनाएगा कौन? क्या दिल्ली सरकार शेल्टर होम बनाएगी? अगर ऐसा है, तब तो ठीक है लेकिन क्या माननीय सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं पता कि श्वान, इंसानों के साथ ही रहते हैं। ऐसे में जब उन्हें शेल्टर होम में बंद कर दिया जाएगा तो वह कितने दिन जी सकेंगे?

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ज्ञानवी देवी मानती हैं कि जीव में ही शिव हैं। लेकिन, इस धार्मिक मान्यता को ही उन्होंने आधार नहीं बनाया। वह तर्क देती हैं कि अगर वह दस श्वानों को अपने घर में रख सकती हैं, उनका लालन-पालन कर सकती हैं (जो खांटी देसी नस्ल के हैं) तो दिल्ली वाले या फिर देश भर में लोग सड़कछाप श्वानों को एडॉप्ट करने के लिए आगे क्यों नहीं बढ़ते? विदेशी मूल के श्वानों को हजारों रुपये महीने खर्च करके तो लोग पालते हैं, देसी श्वानों से उन्हें क्या परेशानी है? ये बेहद वफादार होते हैं और वक्त-बेवक्त काम भी आते हैं। ये आपको तब तक काटते नहीं, जब तक ये भूखे न हों या आप इन्हें छेड़ते नहीं। श्वानों को छोड़िए। इंसानों की ही बात कीजिए। आपको भूख लगी है और आपको खाने को न दिया जाए। तब आपकी मनोस्थिति क्या होगी? यही चीज श्वानों के साथ भी लागू होती है। हम उन्हें कुछेक साल तो पालते हैं, सोफे पर सुलाते हैं लेकिन जब वह उम्रदराज हो जाता है तो उसे सड़क पर छोड़ देते हैं। यह कहां का न्याय है? आप विदेशी मूल के श्वानों पर जितना खर्च करते हैं, जितना प्रेम लुटाते हैं, उतना ही अगर देसी नस्ल के श्वानों पर भी प्रेम लुटाएं और खर्च करें तो कोई समस्या ही नहीं रह जाएगी।

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ज्ञानवी देवी और उनके पतिदेव इंद्रजीत तिवारी बताते हैं कि हर माह 10 श्वानों पर उनके पांच से छह हजार रुपये खर्च होते हैं लेकिन उन्हें परम संतोष की प्राप्ति होती है। बकौल ज्ञानवी देवी यह दिल से, प्रेम से जुड़ा मामला है। मुझे इसमें आत्मिक संतुष्टि मिलती है। इनकी सेवा करने में मुझे परम आनंद मिलता है। श्वानों को मैं अपने परिवार का ही हिस्सा मानती हूं। इन्हें रोज रोटी, भात और दही देती हूं। यह किसी प्रचार के लिए नहीं कर रही हूं। मेरा एक दर्शन है कि अगर कोई श्वान जरूरतमंद है तो उसकी सेवा, उसकी रक्षा करनी चाहिए। यही मैं कर रही हूं। मेरे घर में सिर्फ श्वान ही नहीं हैं। एक जंगली पक्षी को भी मैं पाल रही हूं क्योंकि वह प्रारंभ से ही हम लोगों की शरण में आ गया था। हम उसे भी पाल रहे हैं। यह परमात्मा है, जिन्होंने इतनी सामर्थ्य दे रखी है।

ज्ञानवी देवी के अनुसार, एक श्वान उनके पास ऐसा भी है, जिसका एक पैर क्षतिग्रस्त है। वह सही तरीके से चल नहीं सकता, लेकिन वह भी हमारे साथ है। वह वही खाता है, जो अन्य श्वान खाते हैं। उसे उतना ही प्रेम मिलता है, जितना अन्य श्वानों को मिलता है। कोई भेद नहीं। इसीलिए आज आप जो दस श्वान देख रहे हैं, ये एक ही दिन में हमारे पास नहीं आ गये। पहले एक आया, फिर दूसरा, तीसरा और इस तरीके से दस श्वान हो गये। ये आये तो अपनी जरूरत से लेकिन रह गये मेरी सहानुभूति और प्रेम से वशीभूत होकर। ये इंसानी संकेतों को समझते हैं। बेशक बोल न पाते हों पर हर बात को समझते हैं और उसके हिसाब से ही रिस्पांड करते हैं।

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