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ब्रह्मांड की शक्ति का स्रोत है प्रेम व सकारात्मकता

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The source of the power of the universe is and positivity : ब्रह्मांड की शक्ति का स्रोत है प्रेम और सकारात्मकता। ऋषियों को इसकी कहरी समझ थी। वेद में उन्होंने इसी विचार को समाहित किया है। वे प्रकृति को न सिर्फ गहराई से समझते थे, बल्कि उसके दोहन की विधि भी जानते थे। इसके लिए उन्होंने प्रेम, सकारात्मक सोच, योग, ध्यान, मंत्र (शब्द), तंत्र और यंत्र का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है। इस लेख में प्रेम और सकारात्मक सोच की शक्ति की जानकारी दे रहा हूं। इसमें यह भी जानना आवश्यक है कि शारीरिक बल की तुलना में मानसिक बल ब्रह्मांड में अधिक होता है। इसका अर्थ विचार, अनुभव और सोच से है। इसे दैनिक जीवन में अपना कर आप स्वयं इसके चमत्कारिक लाभ महसूस कर सकते हैं।

सबसे उपयोगी प्रेम, जैसा सोचेंगे वैसा ही होगा


प्राणी मात्र के लिए सबसे बड़ी शक्ति है प्रेम व आकर्षण। इसका प्रभाव हर वस्तु अर्थात जड़-चेतन पर पड़ना सिद्ध हो चुका है। इसी नियम के कारण हम समान प्रकृति के व्यक्ति के प्रति प्रेम व आकर्षण अनुभव करते हैं। इसी तरह विचार और अनुभव का भी प्रभाव पड़ता है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम वर्तमान पल में कैसा अनुभव कर रहे हैं। क्योंकि वर्तमान पल से ही भविष्य का निर्माण हो रहा है। हम जैसा सोचते हैं, उसी से जीवन की हर घटना परिस्थितियों एवं अनुभवों का निर्माण होता है। यदि यह सोचें कि मेरा जीवन बेहतरीन है तो ऐसे लोग और परिस्थितियों को आकर्षित कर सकेंगे जिससे सचमुच जीवन बेहतरीन हो जाएगा। अर्थात हमारा विचार, भाव, अनुभव ब्रह्मांड में तरंगित होकर समान शक्ति को आकर्षित करता है। यही कारण है कि मन प्रसन्न हो तो सब अच्छा और दुखी हो तो बुरा अनुभव होता है।

प्रेम ही अच्छी भावना व अच्छी स्थिति का आधार


अच्छी भावनाएं और अच्छी स्थितियां प्रेम से बनती हैं। बुरी भावनाएं प्रेम के अभाव का प्रतीक है। इसी कारण कहा है कि ब्रह्मांड की शक्ति का स्रोत है प्रेम और सकारात्मकता। प्रेम की सकारात्मक शक्ति किसी भी अच्छी चीज का सृजन कर सकती है, उसे बढ़ा सकती है या बुरे को अच्छे में बदल सकती है। इसके लिए अच्छे विचार और भावनाएं बढ़ाने की आवश्यकता है। इसे बढ़ाने के लिए प्रतिदिन सुबह प्रिय चीजों, घटनाओं, वस्तुओं और व्यक्तियों के बारे में सोचें। इसके तहत हम दिन भर/सप्ताह भर या माह भर की अच्छी और प्रिय घटनाओं, वस्तुओं व लोगों के बारे में एक-एक कर सोचते हुए सिर्फ प्रेम, सकारात्मक विचार व भाव देकर बात करें। इसका अर्थ है कि हम ब्रह्मांड में प्रेम दे रहे हैं और अच्छी भावनाएं बढ़ा रहे हैं। ये जितना बढ़ेगा, उतना प्रेम बढ़ेगा और उतनी ही अनुकूल स्थितियां बनेंगी।

हमारे अनुभव का भविष्य पर पड़ता है प्रभाव


जीवन में हर व्यक्ति हर पल कुछ न कुछ विकल्प चुनता है। फिर उस माध्यम से ब्रह्मांड में सकारात्मक या नकारात्मक भाव देता रहता है। यह जानने के लिए कि हम ब्रह्मांड को क्या दे रहे हैं–हम नौकरी, स्वास्थ्य, जीवन, संबंधों आदि के बारे में सोचें और महसूस करें कि अच्छा या बुरा कैसा लग रहा है। इससे पता लग जाएगा कि हम क्या दे रहे हैं। ज्यादातर समय ठीक-ठाक महसूस करना भी नकारात्मकता का संकेत है। हमें अच्छा या बहुत अच्छा महसूस करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि हर पल प्रसन्न रहते हुए जो भी मिल रहा है, उसके लिए ईश्वर या ब्रह्मांड को धन्यवाद देते रहें। आभार जताते रहें। दूसरे शब्दों में कहें तो अच्छी चीज पाने के लिए पहले खुश होना होगा। उसे पाया मानकर धन्यवाद देना होगा, तभी वह मिलेगा। यदि खुश होने के लिए उसका इंतजार करेंगे तो कभी खुशी नहीं मिलेगी।

शब्दों व विचारों की ताकत है भावना


नोबल पुरस्कार प्राप्त भौतिकशास्त्री वार्नर हाइजनबर्ग ने कहा था कि परमाणु या प्राथमिक कण स्वयं वास्तविक नहीं है, वे वस्तुओं या तथ्यों के बजाय संभावनाओं का संसार बनाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भावनाएं ही विचार व शब्द की ताकत है। विचार और शब्द यदि रॉकेट हैं तो भावना ईंधन। बिना भावना के विचार और शब्द के कोई मायने नहीं हैं। यदि भावना प्रतिकूल और विचार व शब्द अनुकूल हो तो भी उसका कोई अर्थ नहीं है। इसीलिए कहा कि ब्रह्मांड की शक्ति का स्रोत है प्रेम। इसका सही प्रयोग करने के लिए अनुभव करने के तरीके को बदलना होगा। तभी जीवन बदलेगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमने पहले कितनी और कौन सी गलतियां की हैं। अफसोस करने में एक पल न गंवाएं क्योंकि अतीत की गलतियों के बारे में गहरी भावना हमें बीमार करती हैं। कहावत है—बीती ताहि बिसारी देहि आगे की सुधि लेहि।

हर चीज सजीव है


सृष्टि की हर चीज सजीव है। सभी का निर्माण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से ही हुआ है। अत: हर चीज में चुंबकीय शक्ति है और उसकी अपनी फ्रीक्वेन्सी होती है। भावना और विचार से हम जिस फ्रीक्वेन्सी में होते हैं, उस वस्तु, व्यक्ति एवं घटना को देख, समझ और अपनी ओर आकर्षित करते हैं। अच्छी व प्रिय वस्तुओं, घटनाओं व व्यक्तियों में सकारात्मकता व प्रेम देकर उन्हें आकर्षित कर सकते हैं। हम जिस फ्रीक्वेन्सी में नहीं होते,वह हमें सामने होते हुए भी दिखाई नहीं देता और हमारा ध्यान नहीं खींच पाता है। अत: कुछ समय निकाल कर प्रतिदिन घर, परिवार, दोस्त, संबंधी, वस्तु, घटनाएं, स्थान आदि में से प्रिय चीज की मानसिक सूची बनाएं। एक-एक कर उन्हें याद करते रहें तो अद्भुत अनुभव होगा। हर माह ऐसी सूची लिखी और पढ़ी जानी चाहिए।

फ्रीक्वेन्सी को समझें, भावना को स्वचालित न रहने दें


फ्रीक्वेन्सी को समझना आसान है। हम जैसा महसूस कर रहे हैं, उस समय उसी फ्रीक्वेन्सी में होते हैं। यदि उत्साहित हैं तो उत्साही लोग, स्थितियों व घटनाओं को आकर्षित करेंगे। डरे हैं तो डर से भरे लोगों व स्थितियों को आकर्षित करेंगे। भावनाओं व अहसासों को बदल कर फ्रीक्वेन्सी को बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए हम घूमने जाना चाहते हैं लेकिन पैसे न होने से निराश हैं। अर्थात हम निराशा की फ्रीक्वेन्सी पर हैं तो हमें भविष्य में भी निराशा हाथ लगेगी। इसलिए भावना को स्वचलित न रहने दें। हर स्थिति में सोच व प्रतिक्रिया सकारात्मक रखें। जैसे- पैसे नहीं हैं तो अच्छा महसूस नहीं करेंगे। यानि नकारात्मक भावनाएं देंगे। ऐसे में भारी-भरकम बिल, अप्रत्याशित खर्च जैसी स्थितियां ही मिलेंगी। यूनानी दाशर्निक एपिक्टीट के अनुसार आपके साथ जो होता है वह मायने नहीं रखता, मायने यह रखता है कि आप उस पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं।

नकारात्मकता का प्रतिरोध न करें


ब्रह्मांड की शक्ति का लाभ उठाने के लिए नकारात्मकता को बदलने की कोशिश के लिए उसका प्रतिरोध न करें। इस तरह आप बुरी भावना को ही बढ़ावा देंगे। वैसे भी नकारात्मकता और कुछ नहीं प्रेम का अभाव है। जैसे ही हम उसे सकारात्मकता व प्रेम से लबालब भर देंगे, नकारात्मकता खत्म हो जाएगी। उदाहरण के लिए पानी से आधे भरे ग्लास में से खालीपन को दूर करने के लिए खालीपन को निकालना विकल्प नहीं है, बल्कि उसमें पानी भरकर ही खालीपन दूर किया जा सकता है। पुरानी मान्यता है कि बुरी भावना (क्रोध, निराशा या गुस्सा) की तुलना जंगली घोड़े पर सवारी से करें। जब आप उस पर सवार हुए तो खुद उतर भी सकते हैं, उतनी ही तेजी से जितनी तेजी से सवार हुए थे। इससे चमत्कारिक लाभ मिलता है।

दोष नहीं दें, सिर्फ प्रेम करें


हम प्रेम तो करते हैं लेकिन कभी-कभार। दिन भर में ज्यादातर समय हममें नकारात्मक भावनाएं भरी रहती हैं। इसलिए वैसा ही परिणाम मिलता है। दिन में ज्यादातर समय प्रेम देने से प्रेम व सकारात्मक स्थितियां बनती और मिलती हैं। दोष देना, आलोचना करना, गलतियां खोजना, शिकायत करना आदि नकारात्मक आदतें हैं। मौसम, ट्रैफिक जाम, सरकार, महंगाई, खराब स्वास्थ्य, जीवनसाथी, संतान आदि के बारे में गलत सोचना भी नकारात्मकता है। अत: भयंकर, भयानक, बेकार और वाहियात जैसे शब्द अपनी शब्दावली से हटा दें क्योंकि इनके कहते समय हम नकारात्मकता देते हैं। इसके बदले सकारात्मकता वाले जबर्दस्त, अदभुत, शानदार बेहतरीन और जोरदार शब्द का प्रयोग करें। महात्मा गौतम बुद्ध ने भी कहा था कि क्रोधित होना दहकते अंगारे को पकड़ऩे जैसा है। आप इसे किसी दूसरे पर फेंकने के लिए पकड़ते हैं लेकिन जलते खुद हैं।

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