New Delhi News : जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस ने नई दिल्ली में ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए तकनीकी पहल ‘टैक्ट- टेक्नोलॉजी अगेंस्ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग’ का ऐलान किया।पांच सूत्रीय इस तकनीकी पहल में विशेष जोर पीड़ितों के पुनर्वास और इस चुनौती का सामना करने के लिए हर स्तर पर ट्रैफिकिंग के पीड़ितों की भागीदारी सुनिश्चित करने और उनसे मिली सूचनाओं के आधार पर ट्रैफिकिंग गिरोहों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने पर है। इस परामर्श का आयोजन एसोसिएशन फॉर वालंटरी एक्शन ने किया जो पूरे देश में बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम कर रहे 180 गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस का सहयोगी संगठन है।
भारत ने आदि काल से ही पुनर्वास का रास्ता दिखाया
परामर्श के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि भारत ने आदि काल से ही पुनर्वास का रास्ता दिखाया है ’ ट्रैफिकिंग से पीड़ित बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित करने और उन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में शिक्षा सबसे सबसे अहम औजार है। पिछले दस साल में हमने आधारभूत ढांचे और डिजिटल निगरानी के विकास में काफी प्रगति की है और आज हम इस स्थिति में हैं कि हम प्रतिक्षण स्थिति पर निगरानी रख सकते हैं। सुरक्षित प्रवासन और सभी बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हमें बस राज्य सरकारों के सक्रिय सहयोग की जरूरत है ताकि सभी बच्चों चाहे वे किसी भी राज्य या इलाके के हों, का स्कूलों में दाखिला कराया जा सके।
समाज की भी यह जिम्मेदारी
ट्रैफिकिंग से पीड़ित बच्चों को मुक्त कराने और आरोपितों पर मुकदमे के अलावा समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि ट्रैफिकिंग की रोकथाम के लिए सामूहिक कदम उठाये।जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि एक भी बच्चे की ट्रैफिकिंग बहुत से अपराधों को जन्म देती है। किसी भी पीड़ित बच्चे को सहज और सामान्य बनाने की दिशा में पहले कदम के तौर पर मनोवैज्ञानिक सहायता सबसे जरूरी है। इस संगठित वैश्विक आर्थिक अपराध के खिलाफ हमारी रणनीतियों में इसके पीड़ितों को सबसे अग्रिम कतार में होना चाहिए। हमें पीड़ितों को सभी स्तरों पर इसमें भागीदार बनाना होगा, क्योंकि ट्रैफिकिंग गिरोहों के बारे में पीड़ितों से ज्यादा कोई नहीं जानता जो उनके शिकार रहे हैं। इस वैश्विक संगठित और आर्थिक अपराध से लड़ने के लिए खुफिया जानकारी इकट्ठा करने, पैसे के रास्ते और प्रौद्योगिकी-संचालित तस्करी के पैटर्न की पहचान करने में उनकी भागीदारी महत्वपूर्ण है।
प्रवासन प्रगति का इंजन है
प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु ने एक समग्र और व्यापक एंटी-ट्रैफिकिंग कानून की जरूरत पर जोर देते हुए इंटरनेट और सोशल मीडिया मंचों के जरिए ट्रैफिकिंग के उभरते रुझानों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश को ट्रैफिकिंग की रोकथाम, पीड़ितों के पुनर्वास, क्षतिपूर्ति और अपराधियों को पर मुकदमे के लिए एंटी-ट्रैफिकिंग कानून की जरूरत है। परामर्श को संबोधित करते हुए तेलंगाना के सीआईडी विभाग की अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शिखा गोयल ने कहा कि प्रवासन प्रगति का इंजन है और सुरक्षित प्रवासन इसकी चाबी है। प्रवासी राष्ट्र निमार्ता होते हैं और उनकी गरिमा व कल्याण सुनिश्चित करना हमारी साझा जिम्मेदारी है। हालांकि इस बीच ट्रैफिकिंग के कुछ नए आयाम सामने आए हैं और हमें तत्काल इससे निपटने की आवश्यकता है। शुरूआती तौर पर प्रवासी मजदूरों के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर बनाया जा सकता है जिस पर जरूरत पड़ने पर वे मदद या सूचनाएं मांग सकें।
कार्यक्रम में इनकी रही मौजूदगी
इस परामर्श में उपस्थित अन्य प्रमुख लोगों में अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन की अंकिता सुरभि; असम राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ. श्यामल प्रसाद सैकिया, तेलंगाना की महिला एवं बाल विकास की संयुक्त निदेशक जी सुनंदा, मध्य प्रदेश पुलिस के डीआईजी विनीत कपूर, हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अद्यक्ष परवीन जोशी, दिल्ली के अतिरिक्त श्रम आयुक्त एससी यादव, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के साफ निजाम, उत्तराखंड के महिला एवं बाल कल्याण विभाग के मुख्य परिवीक्षा अधिकारी मोहित चौधरी, आंध्र प्रदेश के श्रम विभाग के संयुक्त आयुक्त एसएस कुमार, मानव सेवा संस्थान के जटाशंकर और दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अजय चौधरी भी मौजूद थे।यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराधउल्लेखनीय है कि ट्रैफिकिंग के बारे में उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि मादक पदार्थों और हथियारों के अवैध धंधे के बाद यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। बंधुआ मजदूरी और जबरिया देह व्यापार के अवैध धंधे से इन गिरोहों की सालाना अनुमानित वैश्विक कमाई 236 बिलियन डॉलर है। अनुमान है कि दुनिया में किसी भी समय कम से कम 2 करोड़ 76 लाख से ट्रैफिकिंग गिरोहों के चंगुल में फंसे होते हैं और इनमें एक तिहाई संख्या बच्चों की है।