डाॅ. आकांक्षा चौधरी
Ram-Bharat or Ravana-Vibhishana! : जब भी इस दुनिया में भाइयों के रिश्ते की चर्चा की जाती है, तो कुछ विशिष्ट जोड़ियों की बात ज़रूर निकलती है। प्रेम और समर्पण की बात होती है, तो राम-भरत की जोड़ी याद आती है। छोटे भाई के तिरस्कार की बात हो, तो रावण और विश्वासघात की बात हो, तो विभीषण को याद किया जाता है। भगवान की कहानी के रूप में देखें या प्रेरणास्पद कहानी के रूप में, ये जो वैदिक काल के साहित्य दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रचलित हैं,
उन कहानियों से हर युग का समाज खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है। आस-पड़ोस में रहनेवाले दो भाइयों के बीच सम्पत्ति विवाद हुआ, उसी बीच एक भाई की काली कमाई की कलई खुल गयी पुलिस के सामने। बस, फिर क्या था, उस भाई और उसकी पत्नी ने दूसरे भाई को “घर का भेदी लंका ढाहे”, “विभीषण”, “जयचंद” न जाने किन-किन अलंकारों से सुशोभित करने लगे।
जब दो छोटे बच्चे आपस में पार्क में खेल रहे हों और बड़े भाई के बाईसाइकिल के करियर पर छोटा भाई बैठा हो, तो पार्क में मौजूद सारी नानियां-दादियां बल्लैयां लेने लगती हैं और आंखों में करण जौहर के बॉलीवुड ख़ुशी-ग़म वाले सिनेमा की तरह कहने लगती हैं…“ नज़र न लगे इत्ती सुन्दर राम-भरत की जोड़ी को!”
यदा कदा जब यही छोटे प्यारे भाई आपस में भिड़ जाते हैं, एक-दूसरे का हुलिया बिगाड़ मारपीट पर उतर आते हैं और मोबाइल फ़ोन के लिए छीना-झपटी शुरू करते हैं, तो घर के लोग कहते हैं कि कैसे “बाली सुग्रीव” की तरह लड़ रहे हैं !
अब गौर फरमायें, जब गांव-समाज का कोई बड़ा भाई अपने छोटे-छोटे भाइयों को सूचित किये बिना गांव के चौर वाली बढ़िया ज़मीन का सौदा कर देता है और सारे पैसे को अपने, अपनी पत्नी और अपने बच्चे के व्यक्तिगत विकास में लगा देता है, तब पूरा कुनबा और गांव उस बड़े भाई को “रावण” कह कर सम्बोधित करता है। कहनाम यह होता है कि अब बाक़ी के छोटे भाइयों की तो कब्र ही खुदी जा चुकी है न बिना पैसे के। उनकी तो आगे की संततियों की भी पूःजी बड़े भाई के कदाचार की बलि चढ़ा दी गयी है।
…तो, यही तो “राम-भरत, राम-लक्ष्मण, बाली-सुग्रीव, कौरव-पांडव, रावण-विभीषण” जैसे कई भाइयों की जोड़ी की छोटी-मोटी कहानियां हैं।