राजीव थेपड़ा
शीर्षक से ऐसा लग रहा होगा कि यह क्या कहा जा रहा है, लेकिन इस पर विचार कीजिए, तो पता चलेगा कि सभ्य कही जानेवाली इस दुनिया का सबसे बड़ा राक्षस कौन है और ऐसी क्या विसंगति है, जिसके कारण यह जीव राक्षस बना है।
देखा जाये, तो दुनिया अपने आदिम काल से ही बलशाली लोगों के प्रभुत्व का एक समूह या कबीलों के रूप में बंटी रही है। आदमी के शुरुआती काल में भुजा की ताकत ही सबसे बड़ी ताकत थी। फिर जैसे-जैसे इंसानों ने तरह-तरह की धातुओं व पत्थरों से हथियार बनाये, वैसे-वैसे उनकी ताकत उस ओर परिणत हो गयी। इसके बाद इंसानों ने पशुओं को अपनी ताकत बनाया और उसके बाद जब उसने धातुओं का विकास किया, तो धातुओं से भी अपनी रोजमर्रा की जरूरतों में काम आने वाली चीजों के अलावा उसने जो चीजें सबसे पहले निर्माण की, वे थे अस्त्र और शस्त्र ।
कालांतर में इंसान ने प्रगति की दौड़ में एक बड़ी छलांग लगायी और आज के दौर में जब यह दुनिया टेक्नोलॉजी-बेस दुनिया में के रूप में परिवर्तित हो गयी है, तो विभिन्न देशों को अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए आदमी के ही संहार के लिए हर वक्त नयी-नयी टेक्नोलॉजी के विकास की कवायद करती पड़ रही है। हाल-हाल तक तरह-तरह के बम, युद्धपोत और विमान देशों की ताकत हुआ करते थे।…तो, इन दिनों में मिसाइल और अन्य तरह की टेक्नोलॉजी और इसी का सबसे अधुनातन विकास है विभिन्न तरह की संहारक जैविक अस्त्र टेक्नोलॉजी।
इन दिनों दुनिया में परमाणु बम, हाइड्रोजन बम इत्यादि के अलावा सबसे ज्यादा जैविक अस्त्रों का विकास किया जा रहा है और ऐसा इसलिए है कि आदमी जो अपने आप को शुरू से ऊर्ध्वगामी मानता रहा है, विवेकशील मानता रहा है और असंख्य जीवों की भीड़ में अपने आपको उसने अगुवा घोषित करते हुए सबसे सभ्य और सबसे विकसित जीव का तमगा दे डाला है । हालांकि, ईमानदारी से शोध किया जाये, तो ये सारी बातें सबसे बड़ा झूठ साबित होंगी ।
आदमी का समूचा इतिहास सिर्फ युद्धों का इतिहास है या फिर युद्ध की तैयारियों का, क्योंकि एक युद्ध-मुखी जीव अपने आप को सभ्य कहे, वह जीव जो पूरी धरती को 200 देशों में बांट डाले, वह जीव जो अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए न जाने किस-किस तरह की कूटनीति और छल-कपट से दुनिया के विभिन्न हिस्सों में तरह-तरह की मारकाट मचायी, जगह-जगह के तख़्त गिराये और अपने मनमाफिक शासन बिठाये, वह जीव अगर अपने आप को सभ्य कहता है, तो इस पर सिवाय हंसी के कुछ और आनी नहीं चाहिए, लेकिन दुख इस बात का है कि आदमी इस बात पर हंसता नहीं है, बल्कि गर्व करता है !!
इस बिना पर देखा जाये, तो आदमी इस युग का सबसे बड़ा राक्षस है। पिछले आलेख में मैंने उसे धरती का सबसे बड़ा वायरस कहा था, लेकिन आदमी के तमाम कारनामों की बुनियाद पर उसे धरती का सबसे बड़ा राक्षस कहा जाना समीचीन पड़ता है और वर्तमान में फैला कोरोना नाम का यह वायरस भी आदमी की इसी करतूत का परिणाम जान पड़ता है। ऐसा लगता है कि संबंधित देश ने इस वायरस को विकसित करने का प्रयास किया था, लेकिन विकसित करनेवालों की गलती से यह वायरस धरती पर एक महामारी के रूप में फट पड़ा। इसका आगे परिणाम क्या होने को है, इसका तो कोई नहीं बता सकता, लेकिन इस लेख का अंत इस बात से करना चाहूंगा कि यदि आदमी ने सबको जीतने की, अपने युद्ध की प्रवृत्ति ना छोड़े, तो वह जल्द ही पूरी धरती में मिल जायेगा।