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“चौठी चंदा बड़े अनंदा”

“चौठी चंदा बड़े अनंदा”

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डॉ. आकांक्षा चौधरी

“मम्मी मम्मी, राहुल मुझ पर हंस रहा था और सारे बच्चे भी मेरा मजाक उड़ा रहे थे।” छोटा विनायक रोते-रोते मम्मी की साड़ी से लिपट कर बोल रहा था। 

मम्मी गुझिया बनाती हुई बोली – “उन पर ध्यान मत दो। ज़रा मम्मी की हेल्प कर देगा राजा बेटा ?” विनायक का मूड ऑफ था, फिर भी वह आज्ञाकारी बेटे की तरह हां बोल कर सहमति जतायी। 

जरा, वह गरी और मेवों का पैकेट देना। फिर धीरे-धीरे मम्मी ने विनायक को अपने साथ काम में लगा कर उसका मूड बदल दिया।

मम्मी ने कहा – “जानते हो, ये सारे अच्छे खाने क्यों बनाये जाते हैं, चौरचन के दिन ? क्योंकि, गणेश जी को ये सारे खाने बहुत पसंद हैं। गणेश जी सारे शुभ मुहूर्त और बुद्धि के देवता हैं। चन्दा मामा बहुत सुंदर दिखते हैं और उन्होंने गणेश जी के अजीबोगरीब रूप का मज़ाक उड़ाया था। तब गणेशजी ने गुस्से में चन्दा मामा को श्राप दे दिया कि जैसे तुम मेरे बाहरी रूप का झूठा मजाक उड़ा रहे हो, वैसे ही तुमको भी जो आज की रात देखेगा, उसे झूठा कलंक चढ़ेगा।”

मम्मी ने फिर आगे कहा – “चौरचन की कहानी हमें यह बताती है कि कभी किसी के बाहरी रूप से नहीं, बल्कि उसके गुण से उसे आंकना चाहिए। इसलिए बेटा, जो दोस्त आज तुम पर हंस रहे हैं, क्योंकि तुम मोटे और बेडौल दिखते हो, वही कल तुम्हें पूछेंगे, यदि तुम उन्हें अपनी बुद्धि और दिमाग से अपना बना लोगे।”

विनायक ने आत्मविश्वास से मम्मी को जवाब दिया – “ठीक है मम्मी ! अब मैं किसी के मज़ाक उड़ाने से नहीं घबराऊंगा, बल्कि और भी मेहनत से पढ़ाई-लिखाई करके सबको अपना दोस्त बना लूंगा।”

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