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चंदा कलेक्शन का धंधा!

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डाॅ. आकांक्षा चौधरी 

नववर्ष 2024 शुरू हुआ और हर वर्ष की तरह पूजा-पाठ का आयोजन भी शुरू हो गया है। हालिया गणतंत्र दिवस समारोह मनाया है हमने। भारत उत्सवों का देश है। हर पर्व-त्योहार का अपना विशिष्ट महत्त्व है और उसे मनाने के विशिष्ट तरीक़े हैं। फ़रवरी माह की दस्तक के साथ ही नहीं पढनेवाले बच्चों की टोलियां सड़कों पर उतर आयी हैं। इन बच्चों को बच्चा कहते ज़ुबान कांपती है। ये बच्चे किराने की दुकान पर, परचून की दुकान पर, दूधवाले की दुकान पर प्रकट होते हैं, फिर कहते हैं – ” हैलो अंकल…चंदा दीजिए !” 

मां कसम, पिक्चर ड्रामा में जो पुष्पा प्रजाति के किरदार का चरित्र चित्रण किया जाता है न, बिलकुल उसकी याद आ जाती है। मुंह से रजनीगंधा एक तरफ़ चुआते हुए, हाथ से खैनी चुनियाते हुए, एक बॉस टाइप का भाई रहता है, जिसके आस-पास तीन चार और छुट्टे भाई भी दांत निपोरते खड़े रहते हैं। अब दुकानवाले चच्चा जी कहते हैं – “बेटा, शाम हो गयी है, कल आना, नहीं कल तो गुरुवार है, परसों आना !” “इतनी बार आयेंगे अंकल तो 1001 रुपय्या से एक पैसा कम नहीं लेंगे ! ए फ़लां दुकान का 1001 का रसीद काटो तो…!”

अब चच्चा जी कहते हैं – ” रुको रुको, दे रहे हैं ! 201 देंगे !” फिर अगला कहता है – ” नहीं अंकल, 901!” ऐसे बारगेन करते-करते बात 501 पर आकर फ़ाइनल हो जाती है। “ठीक है अंकल, परसादी खाने आइएगा !” इतने पर चंदा के लेन-देन का पटाक्षेप हो गया।

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