डाॅ. आकांक्षा चौधरी
Environment day : विकास की दिशा जबसे शहरों की तरफ़ मुड़ी, पर्यावरण का वैश्विक स्तर पर रसातल में पलायन होने लगा। प्रदूषण नामक राक्षस धरातल पर राज करने लगा। विकास को ऐशो-आराम और पैसे की बरकत से तुलना करके देखा जाने लगा है। इन सबमें पेड़ पौधे जैसे गूंगे जीवन की क्या अहमियत! बोलनेवाले जीव तो बेचारे हम इंसानों से बच नहीं पाये, फिर ये एक ही जगह पर निष्क्रिय रूप से खड़े पेड़ कैसे बचते! इंसान का घमंड अपने चरम पर है। इसे लगता है यह नीले रंग का धरती नामक गोला इसकी बपौती है। यही इसको चलानेवाला है।
मगर, इंसान यह भूल जाते हैं कि डायनासोर, मैगालोडन शार्क जैसे महाकाय जीव से लेकर बैक्टीरिया, वायरस जैसे एक कोशिकीय जीव भी प्रकृति से जीत नहीं पाये, तो यह इंसान किस खेत की मूली हैं ? चलो, अपने घमंड में चूर होकर स्वयं कभी सुनामी, तो कभी नौतपा को आमंत्रित करो। यह हीट वेव, यह ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत में छेद होना, बस हमारी प्रजाति के दिन लदने के संकेत हैं। धरती पहले भी थी, बाद में भी रहेगी, मगर यदि हम इसी तरह से खुद अपने हाथों अपनी प्रजाति की कब्र खोदते रहेंगे, तो समय से पहले ही बाकी प्रजातियों की तरह मानव जीवन का अंत हो जायेगा।
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जिसे हम विकास समझ रहे हैं, वह हमारी मूर्खता का प्रमाण भर है और कुछ नहीं। विकास तो वह है, जो सतत् गति से निर्बाध इस ब्रह्मांड में घटित होता रहता है। हमारी धरती तो उस बड़े एर्जा पुंज का एक कण मात्र है। हम इंसान तो इतने मूर्ख हैं कि हमें अपनी सूक्ष्मता का कोई भान नहीं।
इसी विकास के क्रम में हम पेड़ों को काटते जा रहे हैं और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ाते जा रहे हैं। इतना ही नहीं, फिर एक दिवस विशेष को टंकित करते हैं और पर्यावरण दिवस मनाने लगते हैं। कभी सोचा है, जितने भी पर्यावरण दिवस के बैनर, प्रचार प्रसार में खर्चे होते हैं, उतने में तो हम एक घना जंगल उगा सकते हैं। मगर, हमें वृक्ष, पेड़ पौधों से मतलब थोड़ी न है, हमें तो हाथों में पौधे लेकर तस्वीर लेने और सोशल मीडिया पर दिखावा करने से मतलब है।
यही तो है मानव प्रजाति का असली मूर्खतापूर्ण चेहरा, उसका बनाया हुआ छद्म पर्यावरण दिवस और फ़्लैट और अपार्टमेंट की इमारतों, बालकनी पर बसायी गयी नक़ली ज़मीन का सच !