Categories


MENU

We Are Social,
Connect With Us:

☀️
Error
Location unavailable
🗓️ Sun, Apr 6, 2025 🕒 10:33 AM

भ्रूण का कचरा !

भ्रूण का कचरा !

Share this:

डॉ. आकांक्षा चौधरी 

अंग्रेज चले गये, लेकिन अंग्रेज़ी छोड़ गये। अंग्रेज़ी के साथ उन्होंने और भी बहुत कुछ भारत को दिया है। वह तो हमारी आदत है कि हम बस शिकायतों का पुलिंदा लेकर घूमते हैं और अपनी ग़लतियों का ठीकरा फोड़ने के लिए दूसरे का सिर ढूंढते हैं। अच्छी बातों को हम हाईलाइट नहीं करते और बस बुरी बातों का रायता फैलाते हैं।…तो, इसी तरह की सोच बरसों से हमारी जड़ों में पैठ बनाये हुए है। 

सन् 1790 के आस-पास पहली बार ईस्ट इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी ने नोटिस किया कि राजस्थान गुजरात के कुछ राजघरानों में एक भी बेटी या राजकुमारी नहीं बचती। एक लिंग विशेष के प्रति एक धर्म या समुदाय विशेष के नकारात्मक रवैये का पहला सबूत देनेवाले अंग्रेज ही थे। मैं यहां अंग्रेज़ी शासन की स्थापना का समर्थन नहीं कर रही, लेकिन उनके द्वारा किये गये एक अच्छे कृत्य की तरफ पाठकों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रही हूं।

सती प्रथा, बाल विवाह के अलावा बेटी बचाओ अभियान की शुरुआत करनेवाले अंग्रेज ही थे। धीरे-धीरे लड़की के न होने के नये-नये कई तरीक़े ईजाद होते गये हैं। हम कितने पारम्परिक और जड़ों से जुड़े हैं कि 200 से ज़्यादा सालों से हमने भारत के राजस्थान, गुजरात से आगे बढ़ कर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तक को लड़की नहीं रखनेवाले समूह में शामिल कर लिया है।

हर जगह लड़की का अनुपात घटाने का काम ज़ोरों पर चल रहा है। पहले तो यह काम बेटियों के होने के बाद इंफैंटिसाइड या नियोनेटीसाइड के तरीक़ों से किया जाता था, फिर समाज ने तरक़्क़ी की और मेडिकल के क्षेत्र में भी हमने कई नये आविष्कार देखे। ये आविष्कार भ्रूण में होनेवाले किसी अवरोध या गड़बड़ी की जांच के लिए किया गया था, लेकिन हम ठहरे जुगाड़ू भारतीय। हमने उनका इस्तेमाल फीटिसाइड (भ्रूण हत्या) के लिए करना शुरू कर दिया।

देखिए, इंफैंटीसाइड और नियोनेटीसाइड में तो सीधे तौर पर मर्डर जैसा महसूस होता होगा, लेकिन फीटिसाइड के साथ ऐसा नहीं है। भैया गर्भ गिराओ और कह दो कि प्राकृतिक या ख़राब स्वास्थ्य के कारण गर्भपात हो गया। …तो, 1994 में लिंग जांच निरोधी कानून बनने के पहले तक हम भारतीयों ने पूरी दुनिया में इसका भी रिकॉर्ड बनाया हुआ था। जान बचानेवाली यह मेडिकल तकनीक भारत में 1970-90 के दशकों में कन्या भ्रूण के लिए महिषासुर साबित हुई। उस समय काल में दिल्ली-मुम्बई जैसे महानगरों के साथ ही भीलवाड़ा संगरूर गोरखपुर पटना जैसे शहरों में 96% कन्या भ्रूण का गर्भपात किया गया।

क़ानून पारित होने के बाद भी दुबई सिंगापुर हांगकांग जाकर कन्या भ्रूण गर्भपात करानेवाले लोगों की तादाद बहुत है। आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि पहली बेटी होने के बाद बहुतायत परिवारों में दूसरी बेटी नहीं आती। 

उत्तर भारत की ऐसी सोच के इतर पूर्वोत्तर भारत की सात बहन राज्यों में मातृसत्तात्मक सामाजिक परिवेश और मां दुर्गा के नवमी के कन्या पूजन से मुझे काफ़ी आस बंधती है कि शायद किसी दिन भारतीय समाज इस भ्रूण का कचरा बनाना रोक दे और समाज उन प्यारी फूल की तरह कोमल लड़कियों की किलकारी भरी क्यारियों से सजने लगे।

Share this:

Latest Updates