राजीव थेपड़ा
यूं देखा जाये, तो हम सब रोटी के बाद जिस चीज के लिए जीते हैं, वह है सम्मान।…और, सम्मान के साथ एक सबसे बड़ी बात यह है कि वह हमें यूं ही नहीं मिलता !! वह हमें अपनी विशेषताओं के कारण…अपने कर्मों के कारण…अपने गुणों के कारण मिलता है और इसके साथ ही साथ यह भी है कि वह बगैर मोहब्बत के भी हमें नहीं मिल सकता !! …तो, सम्मान की पहली शर्त यही है कि हम मोहब्बत करनेवाले हों, यदि हम दूसरों से मोहब्बत करते हैं, तो वह सम्मान खुद-ब-खुद हमें हासिल हो जाता है और मोहब्बत की पहली शर्त यही है कि हम खुद से मोहब्बत करें !!
…तो, मोहब्बत का होना एक्चुअली खुद में होना है ! मोहब्बत एक किस्म का ध्यान है और जब वह होती है अपने भीतर, तो किसी एक के लिए नहीं होती या किसी के लिए ज्यादा या किसी के लिए कम नहीं होती है। वह होती है, तो सबके लिए होती है और नहीं होती, तो नहीं होती !!
…तो, जीवन जीने के लिए और सबके साथ मिल कर जीने के लिए सबसे पहली शर्त ही मोहब्बत है और यह जो हमारी दूसरों के प्रति पीड़ा है…जो करुणा है…यह जो दर्द है…यह सब कुछ हमारे भीतर दूसरों के प्रति मोहब्बत के कारण ही तो है !!
…तो, मोहब्बत व्यवहार में तो ऐसा दिखाई देती है कि अपने लोगों के लिए ज्यादा होती है और पराये लोगों के लिए कम होती है। लेकिन, अपनेपन और परायेपन का भाव यह हम सबकी एक तुच्छ सोच है, छोटी सोच है !! वरना मोहब्बत एक निरपेक्ष चीज है…एक निरपेक्ष भावना है, जिसके भीतर अपनेपन या परायेपन का कोई बोध है ही नहीं।…और, जो मुहब्बत के इस बोध में गहरे तक डूब जाता है, वह सबके साथ एकसमान भाव रखने में समर्थ हो जाता है। रही वाट्सअप या फेसबुक के इस युग की बात, तो हर जमाने में उस वक्त की एक प्रचलित तकनीक होती है, जो उस वक्त के विकास के अंतर्गत समाहित होती है !
…तो, जिस युग में जो तकनीक रही है, उसके अनुसार उस युग का रचना कौशल रहा है, कला कौशल रहा है और आज का युग बेशक बेहद तीव्रतर युग है। यह हम मानते हैं, लेकिन इससे उस भावना का लोप नहीं हो जाता ना !! अब यह बात अलग है कि लोग तकनीक के आ जाने के कारण उन भावनाओं का विलुप्तीकरण कर देते हैं। किन्तु, ये मूर्खतावाली बातें हैं। हमें इनमें नहीं पड़ना है। हमें सिर्फ यह देखना है कि हम अपने भीतर कितना जी पाते हैं और जितना हम अपने भीतर जी पाते हैं, उतना ही हम सभी से मोहब्बत कर पाते हैं या नहीं !!