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मैं भूत बोल रहा हूं….!!

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राजीव थेपड़ा 

I am speaking ghost…!! : मेरी गुजरी हुई जिन्दगी के प्यारे-प्यारे दोस्तों, अब बड़ा प्यार उमड़ता है आपलोगों के ऊपर !! जबकि, जब तक मैं जिन्दा था, आप सभी से झगड़ता ही रहता था !! मैं और मेरे जैसे अनेक लोग अक्सर ऐसी-ऐसी बातों पर झगड़ते थे कि आज जब मैं उन बातों को सोचता हूं, तो ख़ुद पर बड़ा आश्चर्य होता है कि उफ़ हाय मैं ऐसा था ?यदि मैं ऐसा था, तो जीते-जी मुझे इस बात कि अक्ल क्यों नहीं आयी कि आदमी होते हुए मुझमें आदमियों जैसा विवेक क्यों नहीं जागृत हुआ ? मै मूर्खों की तरह क्यों सबसे व्यवहार करता रहा ? यदि मुझमें इतनी ही अक्ल थी, तो मैंने अगली बार अपनी गलतियों को क्यों नहीं सुधारा ? और हरेक बार फिर-फिर से वही-वही गलतियां कैसे करता रहा ? कैसे मैं हर वक्त दोहरा और पाखंडपूर्ण जीवन जीता रहा ? क्यों मेरे दोस्त खासतौर पर मेरी ही जात या धर्म के या फिर कुछेक मेरे नजदीकी भर ही रहे ? गैर धर्म के लोगों को मैं काले चश्मे से क्यों देखता रहा ? किसी गैर धर्म के लोगों में मैं अपने आप को क्यों समेट लेता था ? उनसे कटा-कटा क्यों रहता था ? मैं सदा यह क्यों सोचता था कि चित्रों में दिखनेवाले मेरे भगवान ही बेस्ट हैं और इस बात पर मैं उनसे झगड़ता भी रहता था !! भगवान के नाम पर मैंने इतने काले कारनामे किये कि जिनके उदाहरण देने लगूं, तो फिर से एक जन्म लेना पड़ जायेगा !! अनमोल रत्न-जड़ित, विराट आभा मंडल से दीप्त अत्यन्त ख़ूबसूरत से दिखाई देते मेरे भगवान मुझे वाकई आकर्षित करते थे। मगर, मैंने अपने अंधेपन में यह कभी नहीं सोचा कि ठीक है मेरे भगवान तो सुन्दर हैं, मगर इसमें उन विजातीय खुदाओं का क्या कसूर ? फिर यह भी कि मेरे भगवान मेरे घर में हैं, तो उनके खुदा भी उनके घर में होंगे !! जब मुझे उनसे कोई मतलब ही नहीं है, तो मै उनके खुदा को लेकर क्यों परेशान हूं ? यह तो वही बात हुई कि मान न मान मैं तेरा मेहमान !! अरे भाई…जब तुम अपने घर में जी रहे हो, तो दूसरों को भी उनके घर में जीने दो न !! अपने घर में तुम क्या पका रहे हो, जब यह किसी को पता नहीं लगने देना चाहते, तो दूसरों के घर में क्यों ताक-झांक करते हो ? एक तरफ़ सभ्यता का पाठ पढ़ते हो, दूसरी ओर बिना उनकी इजाजत के क्यों उनका मन-परिवर्तन करना चाहते हो ? कोई और किसे पूजता है, इससे तुम्हारे बाप का क्या बन या बिगड़ जायेगा ? तुम अपने घर में घी-चुपड़ी रोटी खा रहे हो और जिसे सूखी रोटी भी नसीब में नहीं है, क्या उन्हें तुम्हारा बाप रोटी दे रहा है ?…महाराष्ट्र में एक समय शिवाजी महाराज का राज्य था। एक बार उनके गुरु महाराज उनकी राजधानी में पधारे, तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने उन्हें बताया कि उनके राज्य में सब खुशहाल हैं, सबको राज्य के अधिकारी रोटी, कपड़ा, घर और ज़रूरत की तमाम वस्तुएं उपलब्ध करा रहे हैं। चारों ओर शान्ति और समृद्धि का राज है ! गरु महाराज बड़े संतुष्ट हुए, मगर वे तत्क्षण ही ताड़ गये कि ये शिवाजी का अहंकार बोल रहा है, शिवाजी को वह एक चट्टान के पास ले गये और कहा कि ज़रा इसे तुड़वायें, शिवाजी बड़े चकित हुए कि गुरु ऐसा क्यों करा रहे हैं। मगर, गुरु की आज्ञा थी, सो उन्होंने शिला को तोड़ने का आदेश दिया।…तो जैसे ही शिला टूटी, उसमें से कुछ छोटे-छोटे कीड़े बाहर निकले !! गुरु ने पुछा कि इनको भोजन कौन दे रहा है ? गुरु की बात का मर्म समझते ही शिवाजी शर्म से पानी-पानी हो गये और गुरु-चरणों में गिर पड़े !! सार यह है कि हम दरअसल किसी को कुछ नहीं देते, तो हमें क्या हक़ बन पड़ता है कि किसी जिंदगी में अंधेरा बिखेरें या उसका जीवन ही छीन लें ?अपने अनमोल जीवन को हम किन बातों के झगड़़े में व्यर्थ करतें हैं। हम अक्सर बदतमीजी से भरे हुए ही क्यों रहते हैं। अपने सही होने के सिवा हमें हर कोई ग़लत ही क्यों प्रतीत होता है ? हम हर वक्त दूसरों पर हावी क्यों होना चाहते हैं ? हम अपने जैसे अपनी मर्जी से किसी को क्यों नहीं रहने देना चाहते ? हम क्यों किसी को अपनी बराबरी में नहीं देखना चाहते ? यह भी एक बहुत बड़ी विसंगति है कि एक और तो हम दूसरों को अपने बराबर नहीं देख सकते और दूसरी तरफ़ गरीब लोगों के साथ उठने-बैठने में भी अपनी तौहीन समझते हैं। यहां तक कि अपने गरीब रिश्तेदारों को भी नहीं पहचानते !! हम वाकई बड़े अद्भुत जीव हैं! हम जो चाहते हैं उससे ठीक उल्टा ही चलते हैं!! चाहते हैं प्यार, मगर करते हैं नफरत !! दूसरों से चाहते हैं ईमानदारी,  मगर ख़ुद हर वक्त करते हैं बेईमानी !! आदमी की दुनिया के मानदंड बड़े ही विचित्र हैं !! मगर, मैं जो भी कुछ सोच रहा था, वह अब बिलकुल फिजूल था, क्योंकि मैं तो अब मर ही चुका था और किसी को अब कुछ भी कह नहीं सकता था। कहता भी, तो बजाय कुछ समझने के, कोई भी बंदा बुरी तरह डर ही जाता !

…तो, इस तरह मैं एक फिजूल की जिंदगी धरती पर गुजार कर आ गया !! आज अफ़सोस कर रहा हूं !! मैं यह आप सबों को इसलिए बता रहा हूं कि आप भी मेरी तरह कीड़़े-मकोडे-सी जिंदगी गुजर कर न आ जायें, बल्कि अपनी बाकी की जिंदगी को एक नया रंग दें….उसमें उल्लास भर दें….उसमें अथाह प्यार भर दें…बच्चा हो या कोई बड़ा, आपके पास आये, तो यह महसूस करे कि वह किसी आदमी के पास ही आया …!! आदमी होना एक बड़ी अद्भुत बात है। हम वाकई आदमी की तरह ही जीकर जिन्दगी गुजार दें,  यह भी हमारे लिए एक अद्भुत बात ही होगी !! कहा भी है न कि आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना….आज मैं बेशक एक भूत हो गया हूं, लेकिन आपका साथ ही देना चाहता हूं…मगर, आपके लिए तो फिलहाल इतना ही बहुत है कि आप सचमुच एक इंसान बन कर दूसरे की तरफ़ मोहब्बत का हाथ बढ़ायें…आज बस इतना ही…सबको भूतों का प्यार…….!!!

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