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राजीव थेपड़ा
दोस्तों ! वैसे तो जीवन में दुश्वारियां वैसे भी कम नहीं होतीं, लेकिन बहुत बार हम अपनी उन दुश्वारियां को अपने हाथों से और भी ज्यादा बढ़ा लेते हैं ! जीवन में लोग झूठ तो पहले भी बोलते थे, लेकिन एक मोबाइल नाम के गैजेट आ जाने के बाद दुनिया में झूठ लाखों गुना बढ़ चुका है और इस झूठ के कारण न जाने कितनी ही तरह के कलह भी होते हैं। हम कहीं हैं, लेकिन मोबाइल पर खुद को कहीं और बता रहे हैं !! हम कुछ और कर रहे हैं, लेकिन सामनेवाले को कुछ और ही बता रहे हैं। इस तरह, इसी भांति अन्य बहुत प्रकार की समस्याओं ने जन्म ले लिया है इस मोबाइल के गर्भ से !!
सोशल मीडिया में रह रहे लोगों की दोस्तों की संख्या में अचानक बहुत इजाफा हो गया है और यह दोस्ती झट से मोबाइल नाम के इस यंत्र में उपस्थित व्हाट्सएप पर व्यक्तिगत चैट और वीडियो कॉल में भी परिणत हो जाती है ! …तो जो लोग घर में अकेले हैं और जो लोग अपने कार्यस्थल पर अकेले हैं या फिर अलग-अलग डेस्क पर भी हैं, तो वे अपने जरूरी कार्यों की कीमत पर मोबाइल में वर्चुअल वर्ल्ड पर अपने दोस्तों से चैटिया रहे हैं ! या फिर किसी खास से व्यक्तिगत चैट कर रहे हैं, जो केवल व्यक्तिगत ही नहीं, गुप्त भी है !!
उसी प्रकार किसी जमाने में जब मोबाइल नहीं हुआ करता था, तब खाली बैठे हम लोग अपने कार्यस्थल या अपने घर, जहां कहीं भी हम होते थे, वहां 2-4 लोगों के साथ हमारी बातचीत हो जाया करती थी, लेकिन अब इस मुए मोबाइल ने (हालांकि मोबाइल को भी भला क्यों दोष दें, क्योंकि यह दोष तो हमारे खुद के चरित्र का है !!) सामूहिक बातचीत को व्यक्तिगत चैट में परिवर्तित कर दिया है और यह व्यक्तिगत चैट जल्दी ही एक गुप्त व्यक्तिगत सम्बन्ध के रूप में परिणत हो जाता है और तब हमारे द्वारा झूठों का ऐसा एक सिलसिला शुरू होता है, जो कभी खत्म ही नहीं होता और हम अपने पार्टनर के साथ लगातार झूठ पर झूठ बोलते हुए अपनी जिन्दगी को दोमुंहे स्तर पर जीने लगते हैं !!
मोबाइल पर सोशल मीडिया में सक्रिय ऐसी स्त्रियों की संख्या में भी बेहद इजाफा हुआ है, जो अच्छी भली खुशहाल जिन्दगी जीते हुए भी अचानक अपनी जिन्दगी को नीरस महसूस करने लगी है, क्योंकि सोशल मीडिया का जो अंतहीन दायित्वहीन रोमांच है, उसमें उन्हें अपने जीवन की जिम्मेदारियां कभी-कभी बोझ प्रतीत होती हैं, बल्कि कभी-कभी अपना दाम्पत्य जीवन भी बंधन प्रतीत होता है और वे इस बंधन से छूटने के लिए छटपटाती हैं, तो कहीं हमें कोई पुराना मित्र मिल गया है, जिसके साथ हम वापस व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाना चाहते हैं, तो कहीं कुछ और !!
इस प्रकार इस मोबाइल ने हमारी लालसाओं को अचानक बहुत ही ज्यादा उभार दिया है, जहां पर हम व्यक्तिगत जिन्दगी में अपने आप को बोर महसूस करते हैं और उस काल्पनिक जिन्दगी को, जिसे हम अपने झूठ के सहारे गढ़ रहे हैं, उसे रोमांचक समझते हुए उसकी ओर अपने कदम बढ़ाते हैं या बढ़ाना चाहते हैं। …तो, इस तरह न जाने कितने ही लोगों के जीवन का अधिकतम समय मोबाइल पर चैट में व्यतीत हो रहा है। न जाने कितने ही लोग मोबाइल द्वारा अलग-अलग जगहों पर गुप्त रूप से मिल रहे हैं और ना जाने कितने ही लोग मिलना सम्भव न पाकर अपने आप में छटपटा रहे हैं और उनको अपना जीवन और भी ज्यादा बंधन प्रतीत होता है, हालांकि बाहर-बाहर वह व्यावहारिक तौर पर दिखाई नहीं देता, लेकिन अन्दर उनके कुछ और ही चल रहा होता है !!
…तो, इस प्रकार मैं लगातार पाता हूं कि लोगों द्वारा अपने इस नये आधारहीन रोमांचक जीवन की कल्पना ने उनके दायित्व बोध को ढीला करते हुए कुल मिला कर उनके व्यक्तित्व को ही ढीला कर दिया है और इस प्रकार हम एक ऐसे समय में जा पहुंचे हैं, जहां रिश्तों को सम्भाले रखना ही हमारे लिए एक चुनौती बन गया है, क्योंकि बहुत बार किसी पार्टनर को ऐसा लगता है कि उसके पार्टनर को उसके बारे में कुछ नहीं मालूम। लेकिन, सच यह होता है कि उसका पार्टनर उसके बॉडी लैंग्वेज और उनकी और अन्य बातों से बहुत कुछ जान जाता है। खासतौर पर अपने पार्टनर द्वारा बार-बार चैट हिस्ट्री उड़ाये जाने पर !!
यह क्या कर रहे हैं हमलोग ? ऐसा क्यों कर रहे हैं हमलोग ? कल्पनाओं की दुनिया में सिर्फ फंतासी होती हैं और हमारी उस कल्पना के हकीकत बन जाने पर उसमें भी उतना दायित्व और बंधन होगा, जितना हमारी अभी किस जिन्दगी में है, बल्कि हो सकता है कि वह हमारी इस हकीकत में सोचा जानेवाला नर्क से बड़ा नर्क निकले !! क्योंकि यदि दो दायित्वहीन लोग आपस के किसी गुप्त संबंध को बढ़ाना चाह रहे हों, तो वे आपस में मिल कर भी कोई बड़ा तीर नहीं मार लेंगे, बल्कि अपनी उस जिन्दगी से पहलेवाली जिन्दगी से भी ज्यादा बोर हो जायेंगे, क्योंकि जल्द ही जिन्दगी की जिम्मेदारियां उन्हें अपने उस सो कॉल्ड रोमांच के लिए खतरा प्रतीत होने लगेंगी !! किन्तु, यह सब तो हम सोच ही नहीं पाते, क्योंकि यह हम सोचना ही नहीं चाहते !! खाली बैठे हम सब लोग अपने ही लिए एक चक्रव्यू रच रहे हैं, एक मृगतृष्णा रच रहे हैं, जिसमें दरअसल अपने ही बने बनाये जीवन को भी खो देना है हमें !!
दोस्तों !! हम इसे न समझ पाये और अपनी हकीकत वाले वर्तमान जीवन में ही इंजॉयफुली ना रह पाये, तो फिर हमारा जीवन आगे हमेशा तलवार की धार पर चलने के समान होगा, जिसमें देर-अबेर हमारे न केवल पांव घायल होंगे, बल्कि हमारे रिश्ते भी सदा-सदा के लिए घायल हो जायेंगे, जिन पर कोई मरहम लगाना भी हमारे लिए फिर सम्भव न हो सकेगा!!
दोस्तों !! क्या हम ये बातें समझ सकते हैं ?? क्या मेरे शब्दों का किसी पर कोई असर पड़ने को है ?? यही सोचते हुए मैंने अपने उद्गार व्यक्त किये हैं।