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मोहब्बत के सभी रूपों को समझें हम अगर…!!

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राजीव थेपड़ा 

If we understand all the forms of love…!! : मोहब्बत बहुत तरह की होती है । मोहब्बत के अंदाज-ए-बयां भी अलग-अलग हुआ करते हैं। दुनिया एक मोहब्बत है और मोहब्बत का विस्तार ही यह दुनिया है। ब्रह्मांड में सारी चीजें, जो आपस में एकात्म है, वह भी मोहब्बत है। पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है, यह भी मोहब्बत है और सूर्य हम पर जो अपनी असंख्य रश्मियां करोड़ों साल से बिखेर रहा है और न जाने कब तक बिखेरता रहेगा, यह भी मोहब्बत है । 

          …तो, इंसान के जीवन में भी इसी तरह मोहब्बत के अलग-अलग रंग हैं और उन रंगों को हम इंसानों ने तरह-तरह के रिश्तों में बिखेरा हुआ है। हर रिश्ता अपने आप में एक अलग खूबसूरती रखता है। हर रिश्ते का अपना एक अलग ही मजा है और कोई भी रिश्ता आपस में घालमेल नहीं किया जा सकता और ना ही इन रिश्तों में मोहब्बत का घालमेल हो सकता है। दोस्ती की मोहब्बत अलग है। दो प्रिय पात्रों द्वारा एक दूसरे को चाहनेवाली मोहब्बत अलग है। मां-पिता की अपने बच्चों के प्रति मोहब्बत अलग है। भाई-बहनों की मोहब्बत अलग है। इसी तरह से चाचा-चाची, ताऊ-ताई, दादा-दादी, मामा-मामी इत्यादि-इत्यादि ; इन तमाम रिश्तों की मोहब्बत अलग है और इनमें से हर एक मोहब्बत अपने आप में लाजवाब है और इन तमाम रिश्तों से बंधे हुए हम सब लोग इन तमाम रिश्तों को जब तक अपने विवेक से जीते हैं, तब तक इन रिश्तों की खूबसूरती को महसूस कर सकते हैं। किन्तु इसके लिए यह भी जरूरी है कि हमारे द्वारा निभाया जानेवाला कोई भी रिश्ता किसी दूसरे रिश्ते का अतिक्रमण न करे। हर रिश्ता अपने तमाम रिश्तों को मजबूती से निभाये। सम्मान के साथ निभाये। भरोसे के साथ निभाये।

           …और, साथ ही मैं यहां यह स्पष्ट कर देना भी जरूरी समझता हूं कि कई बार हम आपसी सौहार्द को या आपसी सम्मान को या अच्छे व्यवहार को भी शंका की निगाह से देखते हैं और इस शंका के कारण भी हम अपने बहुत सारे रिश्तों की ऐसी की तैसी करा डालते हैं। मेरी निगाह में ऐसे कई उदाहरण आ चुके हैं, जबकि किन्ही रिश्तों में बंधे हुए लोग बेहद एक-दूसरे का सम्मान करते हुए बहुत अच्छी तरह अपने रिश्तों को निभा रहे थे। लेकिन, उनके उस सौहार्द को, उनके इस प्रेम को और उनकी इस निर्मलता पर भी लांछन कसे गये।…और, यहां तक कि कहीं-कहीं किसी के साथ बहुत बुरा बर्ताव भी हुआ। 

          …तो, सच तो यह है कि किसी को देखते हुए किस के मन में क्या चल रहा है ? कौन किसके प्रति किस भावना से आलोड़ित हो रहा है और कौन किसी की बात को किस रूप में लेता है और कौन किसी की किसी बात को किसी गलत-सलत अर्थ में प्रयुक्त कर लेता है। यह सब उसके मन की गति का परिणाम है और मेरे देखते हुए मैंने कई बार ऐसे बहुत सारे रिश्तों को भी कलुषित होते हुए देखा है, जहां दूसरों की गलत निगाहों ने उन्हें बुरा ठहरा दिया। जबकि, असल में ऐसा कुछ भी नहीं था।

            यहां पर मैं यह जताना जरूरी समझता हूं कि हर रिश्ते की बुनियाद मोहब्बत है। लेकिन, वह मोहब्बत उस हर रिश्ते में पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेयसी वाली मोहब्बत नहीं है। उस मोहब्बत के मायने अलग हैं। उस मोहब्बत का सौंदर्य अलग है। लेकिन, संकीर्ण निगाहों वाले कतिपय लोग उन रिश्तों को भी गलत ठहरा कर एक तरह से ऐसे रिश्तों की निर्मलता को शर्मसार कर देते हैं। 

            यह भी अपने आप में गलत है, क्योंकि ऐसा करने से वे निर्मलजन, जो अपनी सरलता के साथ और सामनेवाले के साथ अपनी सहृदयता के साथ व्यवहार करते हैं, क्योंकि सहृदयता ही उनका स्वभाव होता है और वह सहृदयता किसी एक खास व्यक्ति विशेष के लिए ना होकर समूची मानवता के लिए होती है या सटीक कहूं, तो समूचे प्राणी जगत के लिए होती है। लेकिन, ऐसा किये जाने पर उनके मन को बहुत बड़ी ठेस लगती है और उस कटु चोट की कचोट को फिर वह जिन्दगी भर जीते रहते हैं ।

           …तो, ऐसा करनेवाले लोगों को मेरी यह नेक सलाह है कि वह किसी पर भी शंका करने से पूर्व सौ बार सोचें और किसी भी कीमत पर बेवजह और नासमझी पूर्वक किन्हीं रिश्तों पर शक न करें, क्योंकि ऐसा करने से ऐसे सरल हृदय लोग अपने आप में तो बुरी तरह प्रताड़ित होते हैं और फिर उनका सरलता पर से और सहृदयता से भी भरोसा उठने लगता है और ऐसे में रिश्तों की मासूमियत भी छीजती है।

            …तो दोस्तों, एक बार फिर से संक्षेप में यह कहना चाहूंगा कि आदमी तो आदमी, पशु-जगत में भी मोहब्बत अपने आमूल स्वरूप में विद्यमान है। ऐसे में हम अपनी नासमझियों की वजह से अगर मानवता और मासूमियत का गला घोटते हैं, तो आप यूं समझ लीजिए कि हम धरती को पत्थर (कठोर) बनाने की राह पर चल रहे हैं। किन्तु निश्चित ही मानव के हृदय को फूल की जरूरत है, पत्थरों की नहीं। 

            …तो, हमें अपने तमाम रिश्तों को सहृदयता पूर्वक जीते हुए, समझदारी के साथ उन रिश्तों के सच को समझते हुए, एक उचित दूरी के साथ या नजदीकी के साथ समुचित बर्ताव करते हुए, एक-दूसरे का सम्मान करना आना चाहिए, किन्तु साथ ही हमें दूसरे की ऐसी ही तमाम भावनाओं को समझने की तमीज भी होनी चाहिए, क्योंकि तभी हम मोहब्बत या मानवता की उस उदारता को समझ पाने में सक्षम हो सकते हैं और उसी मोहब्बत से समूची मानवता भी लाभान्वित हो सकती है ।

           बस ! हमें सोचना यह है कि हमें करना क्या है ??

            …एक बेहद भीगी आत्मा।

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