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यह बड़बोलापन ही डुबोता है हमको !!

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राजीव थेपड़ा

देश की राष्ट्रीय कही जानेवाली पार्टियों के सांसदों और विधायकों के आचरण के भी कुछ ना कुछ कोड तय किये जाने चाहिए और वह पार्टियों द्वारा स्वयं ही तय किया जाना चाहिए। क्योंकि, हमारे देश में अपने कैरेक्टर को, अपने आचरण को स्वयं से मापने का या किसी पैमाने पर जांचने का किसी को कोई शउर ही नहीं है, क्योंकि राजनीति में आते ही हर एक व्यक्ति अपने आप को एक सिकंदर से कम नहीं समझता और हमने इतिहास में देखा है कि तमाम सिकंदरों ने बाकी जनता को अपने पांव की जूती की नोक के बराबर ही समझा है ! 

…तो ऐसे में यदि पार्टियों को देश की चुनौतियों को सही मायनों में मुकाबला करने की इच्छा शक्ति हो, तो उन्हें अपने सांसदों और विधायकों के लिए हरगिज-हरगिज एक कड़ा आचरण कोड लाना ही चाहिए ।

पिछले दिनों पूर्व की ख्याति प्राप्त अभिनेत्री एवं वर्तमान नयी नवेली नेत्री कंगना रावत ने किसान आन्दोलन एवं विभिन्न विषयों से सम्बन्धित जो नासमझी वाली बातें की हैं, उन्हें यहां पर दोहराना भी मुझे अशोभनीय लगता है ! क्योंकि, यह बिल्कुल ऐसा लगता है कि आप अपनी स्वयम्भू राय को कहने के लिए बाकी किसी को अपने सामने तुच्छ समझते हैं। जबकि, आपको लगता है कि आपके द्वारा दिया जा रहा किसी घटना का वर्णन या विवरण बिल्कुल सही है ! जबकि, देखा जाये, तो वह विवरण न केवल तथ्य रूप में, बल्कि भावना के रूप में भी बिलकुल अनुचित और अन्यायपूर्ण ठहरता है ! क्योंकि, इस तरह के अनुचित एवं गैर जिम्मेदार वक्तव्य के चलते न केवल राजनीति में, बल्कि समाज की समुचित एकता को बहुत बड़ा आघात पहुंचता है। पूरे समाज की भावना आहत होती है।

ऐसे नेता, जो सार्वजनिक जीवन में एक अच्छी और बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं, उनको किसी भी हाल में ऐसे वक्तव्य को देने से परहेज करना चाहिए और उन्हें यह सोचना चाहिए कि स्वयं को लाइमलाइट में लाने के लिए जिस प्रकार की मनगढ़ंत बातें वे कर रहे हैं, उससे सम्भव है कि देश की अनपढ़ एवं अनगढ़ जनता उनके झांसे में आ जाये। इसी प्रकार भांति-भांति की घटनाओं पर पक्ष और विपक्ष के नेताओं के जिस प्रकार के शत्रुतापूर्ण बयान मीडिया द्वारा जनता के सामने आते हैं, उनसे जनता भी हैरान और परेशान होती है और साथ ही बहुत सारे सुचिन्तित लोग इस विषय पर चिन्तित हो जाते हैं। ओवरआॅल इससे समूची सामाजिकता को जिस प्रकार का आघात पहुंचता है, वह अंतत: किसी भी समाज या किसी भी देश की सेहत के लिए बिलकुल भी सही नहीं है।

वर्तमान समय में हमारे ऐसे प्रधानमंत्री, जो देश को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने की संकल्पना करते हुए अपने समस्त आह्वानों में इस बात को संकल्पित करते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे समय में जबकि भारत की अर्थव्यवस्था ओवरआॅल एक अच्छी गति से आगे बढ़ती हुई विश्व के सबसे तेज अर्थव्यवस्था बन चुकी है (भले ही उसका लाभ एक आम नागरिक को मिलता हुआ प्रतीत नहीं होता!!) इसी प्रकार, जबकि सारा विश्व भारत को लेकर एक सकारात्मक सोच लेकर भारत को बहुत सारी व्यवस्थाओं के लिए एक वैकल्पिक मध्य समझने लगा है, ऐसे में उन्हें अपने अंतर्गत आनेवाले ऐसे समस्त विधायकों एवं सांसदों की डोर कम से कम इन अर्थों में अपने हाथों में लेनी ही चाहिए कि एक विकसित देश के नागरिक किसी भी तरह ऐसे नहीं हो सकते हैं, जैसे कि उनके नेता अपने आचरण में दर्शा रहे हैं! 

…तो, कंगना रावत ने जो भी कुछ कहा, उसमें न केवल, और केवल झूठ है, बल्कि ऐसी बातों को कहने से जिस समरसता पर आघात होता है, उसे बिलकुल असंवैधानिक मानते हुए ऐसी नेत्री या नेता को अपने देश के लिए समुचित सोच रखनेवाली किसी भी पार्टी को अपने दल से निलम्बित कर देना चाहिए । क्योंकि, एक ऐसे देश में, जहां कदम-कदम पर वैविध्य फैला हो और न जाने कितने ही प्रकार की विविधताओं के बीच एक समरसता भी दिखाई देती हो। ऐसे बहुधर्मी और बहुजातीय देश में ऐसी सोच रखनेवाला नेता/ नेत्री किसी भी पार्टी का हो, वह हर लिहाज से सबके लिए घातक ही होता है ! 

कोई भी देश किसी एक पार्टी का, किसी एक नेता का नहीं होता। कोई भी देश ना राष्ट्रपति का होता है, ना प्रधानमंत्री का होता है। वह ना केवल एक भूमि भर होता है और ना एक भौगोलिक स्थिति भर होता है। एक देश, एक क्षेत्र के नागरिकों की समुचित राजनीतिक इकाई होता है, जिसमें एक सम्प्रभुता अंतर्निहित होती है और वह सम्प्रभुता उस देश के गरिष्ठ होने के अनुपात में निर्मित और विकसित होती है और देश को चलानेवाले ऐसे कोई भी व्यक्ति या संस्थान, जो उसे देश की समरसता को विखंडित करते हैं, वे अंततोगत्वा उस सम्प्रभुता को भी हानि पहुंचाते हैं, किन्तु जिसका कि उनको एहसास तक नहीं होता !

…तो, वह हमारी पार्टी का है, इसलिए हम उसके गलत वचनों का विरोध ना करें और वह दूसरी पार्टी का है, इसलिए हम उसके गलत वक्तव्यों का भयानक विरोध करें !! इस तरह की परिपाटी, जो हमारी राजनीति में लगातार पनप रही है और पोषित की जा रही है, वह अंतत: देश को इस तरह से विभाजनकारी बनाती जा रही है, जिसका कि हमें तनिक भी आभास नहीं है और यदि आभास भी हो, तो भी स्वयं को इस ओर का या उस ओर का मानने के कारण देश का और उसके मान का तनिक भी लिहाज नहीं है।…और, ऐसे में धीरे-धीरे इस देश की राजनीति अपने नागरिकों को भी एक संकीर्ण सोच में डालती जा रही है।

किसी भी देश के लोग यदि संकीर्ण सोच के होंगे, तो वह देश विकसित होने में तो वक्त लगायेगा ही। लेकिन, यदि विकसित हो भी गया, तो भी वह देश अनेक-अनेक इकाइयों में बंट जायेगा ! यदि बहुत दूर ना भी देखें, तो अपने देश के पड़ोसियों को देख कर हमें यह सहज ही समझ लेना चाहिए। तरह-तरह की जाति और धर्म की राजनीति के चलते यह देश लगातार क्रमश: खंडित भावना का शिकार बनता जा रहा है और ऐसे में इस तरह के वक्तव्य एक तो करेला और ऊपर से नीम चढ़ा वाली कहावत को चरितार्थ करते हैं !  

हमारे समस्त परिपक्व राजनेताओं को इन स्थितियों की अनदेखी करना देश को बहुत भारी पड़ेगा और इसलिए किसी के इस पार या उस पार जैसी बातें ना सोच कर एक समन्वयकारी भावना इस राजनीति में पैदा करें और उसे ही पोषित करें और आपस के विरोध को विखंडनकारी होने की सीमा तक न जाने दें और अपने मतभेदों को एक रचनात्मक संवाद द्वारा हल करें। देश की समस्याओं को सुलझाने में सभी पक्ष के लोग रचनात्मक सहयोग करते हुए देश को सही मायनों में एक अच्छी जगह तक पहुंचाने का प्रयास करें, तभी हम सब का भला है । 

हम सभी इस देश का भला चाहते हैं और यदि सचमुच ऐसा ही चाहते हैं, तो हममें से प्रत्येक को किसी भी प्रकार की विभाजनकारी सोच को पूरी तरह से परित्याग करते हुए देश के लिए समन्वयकारी सोच को लगातार पोषित और विकसित करते रहने पर जोर देना पड़ेगा, तभी हम वह बन सकते हैं, जो हम चाहते हैं। किसी भी स्थिति में हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे वर्तमान आचरणों के ऊपर ही न केवल हमारे देश का भविष्य निर्भर है, बल्कि हमारा समयानुकूल और अनुकरणीय आचरण ही हमारे बच्चों को भी इस देश के प्रति सच्चा और ईमानदार नागरिक बनाने में उनकी मदद कर सकता है और यदि हम यह चाहते हैं, तो अभी की अभी उपरोक्त बातों पर हमें अमल करना आरम्भ करना ही पड़ेगा।

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