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अपने पूर्ण प्राणोंपण से कार्य करते जायें… करते जायें… करते जायें

अपने पूर्ण प्राणोंपण से कार्य करते जायें… करते जायें… करते जायें

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राजीव थेपड़ा 

Keep working with all your heart… keep doing… keep doing… : जरा कल्पना कीजिए कि आप कोई चार पहिया वाहन चला रहे हैं और आपके समक्ष अचानक कोई अन्य वाहन आता हुआ दिखाई देता है और जैसे वह टकराने को ही है, उस समय आप क्या करते हैं ? क्या आप अपने वाहन को उस वाहन से टकराने देते हैं या स्टेयरिंग पर अपनी पकड़ को मजबूत करके अपने वाहन को दायें या बायें जाकर उस अवश्यसम्भावित दुर्घटना से बचने का प्रयास करते हैं ? निश्चित तौर पर मैं यह कह सकता हूं कि आप दुर्घटना से बचने के लिए हर सम्भावित यत्न करते हैं । जीवन एकदम वैसा ही है। अपने आपको कहीं भी पहुंचने के लिए उस दिशा में अथक परिश्रम करना ही पड़ता है। 

                  मान लीजिए, आप घर से निकले, तो यदि आपको जहां जाना है, वहां जाने की कोई कल्पना ही ना हो कि आप किस जगह जाना चाहते हैं और कोई वजह भी ना हो कि आप क्यों जाना चाहते हैं।…तो, आप भला क्यों घर से निकलने के बाद कहीं जायेंगे और जायेंगे, तो आखिर कहां जायेंगे ? निश्चित तौर पर आपको जहां जाना है, वह जगह आपकी सोच में, आपकी कल्पना में, आपके दिल में और आपके दिमाग में होनी चाहिए और यह भी आवश्यक है कि आपको वहां पर क्यों जाना है। क्योंकि, जब तक आप यह नहीं जानते कि आपको कोई भी काम क्यों करना है, तब तक कभी भी आप उस काम को सही ढंग से नहीं कर सकते। 

                मान लिया कि आप पढ़ाई कर रहे हैं, किन्तु यदि आपको यह पता ही नहीं हो कि पढ़ाई करने से आपको क्या लाभ होनेवाला है और पढ़ने के बाद आपको किस विषय में कौन-से एग्जाम देने हैं, तो आप भला किस दृष्टि से या किसी लक्ष्य से पढ़ाई करेंगे? अथवा क्यों पढ़ाई करेंगे ? तो इस प्रकार किसी भी कार्य को करने के लिए उसकी प्रेरणा से निश्चित रूप से आपको कोई ना कोई लाभ होता है। इससे आप अपने जीवन को थोड़ा और बेहतर बना लेते हैं और जितना ज्यादा उस कार्य को करते चले जाते हैं, उतना ज्यादा उसमें पारंगत ; यानी एक्सपर्ट होते चले जाते हैं।

             बहुत लोग कहते हैं कि मुझे काम करने को प्रेरणा (मोटिवेशन) नहीं मिलती । यह बात सच है कि किसी भी मोटिवेशन/ प्रेरणा से कोई भी काम और भी अधिक अच्छे तरीके से किया जा सकता है। लेकिन, आप विश्वास कीजिए कि इसका उल्टा भी बिलकुल सच है। मतलब किसी भी काम को आप जितनी भी अधिक बार करते हैं, उतना ही उसमें पारंगत होते चले जाते हैं और जितनी अधिक बार आप उसे काम को करते हैं। उतने अधिक प्रेरित होते चले जाते हैं। क्योंकि  किसी भी कार्य को अधिक से अधिक बार किये जाने के कारण उस अभ्यास से मिलनेवाली सफलता आपको खुद ब खुद प्रेरित करती है।

  …तो, जितनी यह बात सच है कि प्रेरणा से कामों को गति मिलती है, उतनी ही यह बात भी सच है कि कामों को बार-बार करने से उससे मिलने वाली प्रेरणा के चलते आपके कार्यों को और भी अधिक गति मिलती है। और मजे की बात है कि इससे मिलनेवालीं प्रेरणाएं भी दुगनी और तिगुनी होती चली जाती हैं। एक समय ऐसा आता है कि आप स्वतः प्रेरित व्यक्तित्व बन जाते हैं और किसी द्वारा आपके विषय में अथवा आप द्वारा किये जा रहे कार्यों के विषय में कुछ भी नकारात्मक कहे जाने से, आप नकारात्मक नहीं होते या यूं कहें कि आपको इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि आपके बारे में कोई क्या कह रहा है।

                    इसके अलावा एक बात और है…क्योंकि, सच तो यह है कि सुनी हुई बातों से हम केवल मन ही मन प्रेरित होते हैं। किन्तु, सफलता की राह में मन ही मन प्रेरित होने का कोई अर्थ ही नहीं है। क्योंकि, जब तक हम किसी भी कार्य को करने की दिशा में अपने पांव बढ़ा नहीं लेते और उन पांव को लगातार चलते रहने के लिए सतत अभ्यास करते रहने का अपना स्वभाव नहीं बना लेते, तब तक हमारा कोई भी काम किसी भी रूप में हमें कोई सुखद परिणाम नहीं दे सकता।…तो, इसका एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि किसी भी कार्य के पूर्ण होने के लिए सबसे पहले उस कार्य का आरम्भ होना आवश्यक है, किन्तु फिर उसके बाद उस पर सतत चलते जाना उससे भी अधिक आवश्यक है।

              किन्तु, सबसे बड़ी बात वह सतत चलना या किसी भी कार्य में अभ्यास करना किसी भी प्रकार के अनमनेपन से नहीं, बल्कि अपना पूरा मन लगा कर उसे करना ही आपको आपके मनोनकुल परिणाम प्राप्त करवा सकता है। क्योंकि, जब तक किसी भी चीज में आप अपना पूरा मन नहीं उड़ेल देते, तब तक आप उस कार्य को चाहे कितनी ही बार क्यों न कर लें, आप उसमें पारंगत नहीं हो सकते। इस प्रकार किसी भी विषय में पारंगतता प्राप्त करने के लिए केवल और केवल मन से किया गया सतत अभ्यास ही सबसे महत्ती आवश्यकता होती है।

            किसी भी कार्य को करने के पश्चात आपको क्या मिलनेवाला है, यह भी उतना ही आवश्यक विषय है। क्योंकि, यदि किसी कार्य को करने से आपको यदि कोई छोटी चीज मिलानेवाली है, तो आप उसमें उतना मन नहीं उड़ेलते। लेकिन, उससे थोड़ी ज्यादा बड़ी चीज मिलती है, तो अपना मन, अपना अभ्यास और भी अच्छी तरह उड़ेलते हैं और यदि उससे भी बड़ी चीज मिलानेवाली हो, तो आपका अभ्यास और भी बढ़ जाता है।…तो, इसका यह भी अर्थ है कि किसी भी कार्य को करने पर उसके परिणाम के रूप में आपको आनुपातिक रूप से और बड़ा, और बड़ा, और बड़ा लाभ मिलने की सम्भावना हो, तो आप उस कार्य को करने में अपने आप को पूरी तरह से उड़ेल देते हैं। 

कोई भी काम छोटा और बड़ा नहीं होता, बल्कि आप जितनी पारंगतता से किसी कार्य को करते हैं और जितना ही उसमें घुसते चले जाते हैं, वह काम उतना ही बड़ा होता चला जाता है। यानी किसी भी विषय में, किसी भी कार्य से कोई व्यक्ति यदि थोड़ा कमाता है और उसी कार्य से कोई दूसरा व्यक्ति उससे अधिक कमाता है, कोई तीसरा व्यक्ति उससे अधिक, तो कोई चौथा व्यक्ति उससे अधिक और कोई पांचवां व्यक्ति उससे भी अधिक कमाता है और कोई ऐसा भी व्यक्ति होता है कि वह इस कार्य से इतना अधिक कमा रहा होता है कि आपकी आंखें फट जाती हैं !…तो, इसका अर्थ केवल इतना ही है कि सबसे ज्यादा कमानेवाले उस व्यक्ति ने उस कार्य में छिपे हुए उस विजन को देख लिया, जो आप लोगों में से किसी ने नहीं देखा। या फिर उसे व्यक्ति ने उस कार्य में इतनी अधिक मेहनत की और इससे उसने उस कार्य में इतनी पारंगतता प्राप्त कर ली, कि वह एक अलग ही युक्तिजनक ढंग से उस कार्य को करने लगा और उसकी कमाई बढ़ती चली गयी। 

                 इसी प्रकार यह माना जा सकता है कि कोई भी बात छोटी या बड़ी नहीं होती, बल्कि आप उस बात को जितना फैलाना और बड़ा करना चाहते हैं, वह उतनी ही बड़ी होती चली जाती है। किसी चीज से एक रुपया भी कमाया जा सकता है, सौ भी, हजार भी, लाख रुपया भी और करोड़ भी। यह केवल और केवल आपके ऊपर निर्भर है कि आप उसमें अपना कौन-सा विजन देख पाये हैं अथवा आप उस कार्य में कौन-सा सपना डाल पाते हैं! तो जितने बड़े सपने आप किसी कार्य में डालेंगे, उतना ही ज्यादा उसको करते हुए आप और ऊंचे, और ऊंचे, और ऊंचे होते चले जायेंगे। अंततः इस बात को यूं कहा जा सकता है कि आप अपनी कल्पना के अनुसार ही अपना कद, अपनी प्रतिष्ठा, अपनी कमाई तय करते हैं।

कोई भी काम छोटा और बड़ा नहीं होता, बल्कि आप जितनी पारंगतता से किसी कार्य को करते हैं और जितना ही उसमें घुसते चले जाते हैं, वह काम उतना ही बड़ा होता चला जाता है। यानी किसी भी विषय में, किसी भी कार्य से कोई व्यक्ति यदि थोड़ा कमाता है और उसी कार्य से कोई दूसरा व्यक्ति उससे अधिक कमाता है, कोई तीसरा व्यक्ति उससे अधिक, तो कोई चौथा व्यक्ति उससे अधिक और कोई पांचवां व्यक्ति उससे भी अधिक कमाता है और कोई ऐसा भी व्यक्ति होता है कि वह इस कार्य से इतना अधिक कमा रहा होता है कि आपकी आंखें फट जाती हैं !…तो, इसका अर्थ केवल इतना ही है कि सबसे ज्यादा कमानेवाले उस व्यक्ति ने उस कार्य में छिपे हुए उस विजन को देख लिया, जो आप लोगों में से किसी ने नहीं देखा। या फिर उसे व्यक्ति ने उस कार्य में इतनी अधिक मेहनत की और इससे उसने उस कार्य में इतनी पारंगतता प्राप्त कर ली, कि वह एक अलग ही युक्तिजनक ढंग से उस कार्य को करने लगा और उसकी कमाई बढ़ती चली गयी। 

                 इसी प्रकार यह माना जा सकता है कि कोई भी बात छोटी या बड़ी नहीं होती, बल्कि आप उस बात को जितना फैलाना और बड़ा करना चाहते हैं, वह उतनी ही बड़ी होती चली जाती है। किसी चीज से एक रुपया भी कमाया जा सकता है, सौ भी, हजार भी, लाख रुपया भी और करोड़ भी। यह केवल और केवल आपके ऊपर निर्भर है कि आप उसमें अपना कौन-सा विजन देख पाये हैं अथवा आप उस कार्य में कौन-सा सपना डाल पाते हैं! तो जितने बड़े सपने आप किसी कार्य में डालेंगे, उतना ही ज्यादा उसको करते हुए आप और ऊंचे, और ऊंचे, और ऊंचे होते चले जायेंगे। अंततः इस बात को यूं कहा जा सकता है कि आप अपनी कल्पना के अनुसार ही अपना कद, अपनी प्रतिष्ठा, अपनी कमाई तय करते हैं।

    …तो, किसी भी मंच पर आपने देखा होगा कि बहुत सारे मोटिवेशनल स्पीकर आपको मिलते हैं। उस सभागार में आप सब मंच के नीचे बैठे उन्हें सुनते हैं, एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा, चार घंटा, पांच घंटा, यहां तक कि पूरे के पूरे दिन सुनते चले जाते हैं और उन घंटों में उनके लिए आप न जाने कितनी ही बार कितनी ही जोरदार तालियां बजाते हैं। आपको लगता है कि आप मोटिवेट हो रहे हैं। आप प्रेरित हो रहे हैं। किन्तु सच में ऐसा नहीं होता, क्योंकि उस सभागार में बैठे सैकड़ों और हजारों व्यक्तियों के साथ बैठे हुए होने के कारण वहां निर्मित वातावरण के कारण ऐसा हो जाता है कि आप सबका साथ दिये बगैर नहीं रह पाते और आपको लगता है कि सामनेवाला जो कह रहा है, वह बहुत बेहतर है और वह आपके लिए भी बेहतर है। 

               किन्तु, सच तो यह है कि सभागार से बाहर निकलने के पश्चात आपके घर तक पहुंचने तक वह मोटिवेशन हर क्षण कम होता हुआ, आपके अपने घर पहुंचने तक अथवा किसी और कार्य में लगने तक पूरी तरह से विदा हो चुका होता है ! इस बात का यह अर्थ निकाला जा सकता है कि बाहरी मोटिवेशन कुछ क्षण भर की बात है, लेकिन अपने स्वयं के भीतर पैदा हुआ इमोशन और मोटिवेशन ही सबसे गहरी बात है। हां, यह अवश्य हो सकता है कि उस हाल में किसी को सुन कर कोई बात आपके मन को भा जाये…आपके हृदय को चुभ जाये और यह भी हो सकता है कि किसी बात से आप किसी हद तक प्रेरित हो जायें। आपके भीतर कोई तड़प पैदा हो जाये और तब आप अपने आप को अपने द्वारा उस कार्य में पूरी तरह से झोंक डालें और आप उस कार्य को करने के लिए किसी भी हद तक जुनूनी हो जायें और तब वह बात घटने लगती है, जो कुछ समय पहले उस वक्ता के साथ घट चुकी होती हैं, जिसे आप सुन कर आए हैं और जिसके लिए आपने तालियां बजायी हैं। 

            …तो, इस तरह आप सोच कर देखिए कि किसी जमाने में उस वक्ता ने भी कहीं ना कहीं, किसी न किसी बिन्दु पर यह कार्य आरम्भ किया होगा और इसे करते-करते…करते-करते करते वह इस वर्तमान पारंगतता, विशेषज्ञता पर पहुंच पाया होगा कि जिसे सुन कर हजारों/लाखों लोग प्रेरित होते हैं, जिसे सुन कर हजारों/लाखों लोग उसके लिए तालियां बजाते हैं। अब थोड़ा इस बात की गहराई में जाकर देखें ; भले ही उसकी बात ने या किसी और व्यक्ति की किसी बात ने आपको प्रेरित किया या झकझोर डाला। लेकिन, आप यह महसूस करके देखिए कि आप जब कार्य करने लगे और बार-बार उस कार्य को करते गये, तभी आपके स्वयं के अंदर उस कार्य को करने की प्रेरणा जगी और वह प्रेरणा अनवरत आप में जगी रह गयी। इस कारण आप अनवरत उस काम को करते चले गये, तभी तो आप आगे बढ़े ? 

       …तो, यदि आप सचमुच सफल होना चाहते हैं, तो उपरोक्त कुछ बातों को अपने हृदय और मस्तिष्क में सदा सदा के लिए समाहित कर लें और तदनुरूप अपने आप को उस अनुसार ढाल दें। आपकी सफलता निश्चित है और आपकी सफलता के लिए ईश्वर स्वयं आपके पांव के नीचे फूलों का कालीन बिछाये दिखाई देगा।

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