Jamshedpur news: ऐसा लोग कहते हैं कि ईश्वर कुछ लोगों को अपने किसी खास कार्य के लिए चुनते हैं। दो रोज पहले पंडित विजय शंकर मेहता एक प्रसंग सुना रहे थे। प्रसंग कुछ यूं था कि माता सीता को खोजने के लिए वानरों की सेना को अलग-अलग दिशाओं में भेजा जा रहा था। पूरब दिशा में, पश्चिम दिशा में, उत्तर दिशा में और दक्षिण दिशा में। दक्षिण दिशा के जिन वानरों का चयन किया गया, वो लगे उछल-कूद मचाने। प्रभु का लगे जयकारा करने। खूब उछल-कूद हुई। उन सभी ने जोश ही जोश में प्रभु को भरोसा दिलाया कि वे विजयी होकर लौटेंगे….माता जी को खोज निकालेंगे। प्रभु तो ठहरे सीधे-सीधे। अधरों पर मुस्कुराहट लिये वह सभी को आशीर्वाद देते चले गये लेकिन उन्हें पता था कि ये सब कूदने-फांदने वाले हैं। काम करने वाला क्यों नहीं दिख रहा है। मेरा काम तो हनुमान ही करेगा। तब, पीछे खड़े हनुमान जी लजाते, सकुचाते प्रभु के समक्ष उपस्थित हुए। प्रभु ने उन्हें देखा। उन्होंने प्रभु को प्रणाम किया। श्री राम ने उन्हें न सिर्फ आशीर्वाद दिया वरन उनके सिर पर कई बार हाथ भी फेरा। उन्हें पता था कि यही रुद्रावतार मेरे काम को अंजाम देगा। लिहाजा, उन्होंने पवनपुत्र को जी भर कर आशीर्वाद दिया और बड़े भरोसे में आकर उन्होंने कहा कि हनुमान, अब तुम प्रस्थान करो। विजयी होकर लौटो। ये मेरी मुद्रिका है। इसे सीता को दे देना। वह पहचान लेंगी इसे और तुम्हें भी। बाद में क्या हुआ, यह आप सभी जानते हैं।
यह प्रसंग इसलिए भी अहम है क्योंकि बिड़ला मंदिर, जिसका अब नाम श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर हो गया है, उपेक्षित पड़ा था। केबुल कंपनी ने दिवालिया होने के बाद 1992 में इसका निर्माण कार्य रोक दिया था। जाहिर है, काम होता है तो चहल-पहल होती है। काम रुक जाता है तो लोगों की आमद खत्म हो जाती है, झाड़-झंखाड़ उग आते हैं। यह मंदिर भी बीते तीन दशकों तक उपेक्षा का दंश सहता रहा। तमाम लोग इस इलाके से गुजरते थे लेकिन किसी के मन में यह नहीं आया कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार करें। कुछ भ्रांतियां ऐसी फैली कि लोगों ने इस ओर आना तक बंद कर दिया। कहा जाता है कि एक-दो लोगों ने मंदिर निर्माण में हाथ लगाया तो उन्हें भारी घाटा हुआ, जनहानि हुई। इन बातों में कितना दम है, कहा नहीं जा सकता। हानि के प्रमाण भी खोजने पड़ेंगे पर भ्रांतियां थीं।
2019 में जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव जीतने के बाद भ्रमण के क्रम में विधायक श्री सरयू राय की दृष्टि इस मंदिर पर पड़ी। उन्होंने पता किया तो ज्ञात हुआ कि मंदिर केबुल कंपनी बना रही थी। कंपनी दिवालिया घोषित हो गई। उसके बाद मंदिर में किसी ने हाथ नहीं लगाया। अब यह धीरे-धीरे असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका था। फिर तमाम भ्रांतियों के बारे में भी उन्हें बताया गया।
लोगों को जानकारी होगी कि श्री सरयू राय तथ्यान्वेषी हैं। वह तत्यों को समझने का प्रयास करने लगे। उन्होंने कई विद्वानों से बातचीत की। भ्रांतियों के बारे में भी चर्चा की। अंत में उन्होंने तय किया कि वह इस कार्य को करेंगे। लोगों से मिले। कुछ लोगों ने मना किया। कुछ लोग तैयार हुए। फिर इस मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शनैः-शनैः प्रारंभ हो गया। अब मंदिर का जो स्वरूप है, वह लोगों के सामने है। आने-वाले दो-तीन वर्षों में जो मंदिर का स्वरूप होगा, वह और सुंदर होगा। अभी तो मात्र 25 प्रतिशत कार्य ही संपन्न हुआ है। 75 प्रतिशत कार्य बचा हुआ है।
आपको यह भी समझना होगा कि यह सारा कुछ मंदिर के जीर्णोद्धार तक ही सीमित नहीं है। दरअसल, यह उस माइंडसेट को करारा जवाब भी है, जहां यह कहा जाता था कि इस मंदिर को फिर से बनवाने में जिन लोगों ने भी हाथ लगाया, वो तबाह हो गये। यह उस माइंडसेट की जीत है जो इस धारणा में यकीन रखते हैं कि ईश्वर अपने भक्तों का कभी अहित नहीं करते, बशर्ते भक्त की भक्ति स्वार्थरहित हो। नकारात्मक चचार्एं हमारी शक्तियों को क्षीण करती हैं और हमारा माइंडसेट भी शनै:-शनै: नकारात्मक होता चला जाता है। हां, इस नकारात्मक माइंडसेट को सकारात्मक करने के लिए जो मेहनत करनी होती है, वह बेहद थका देने वाली और निरंतर चलने वाली होती है। लेकिन, अगर आप श्री सरयू राय को जानते-पहचानते-मानते हैं तो इस बात के कई प्रमाण आपको मिले होंगे कि उम्र के इस पड़ाव पर आकर भी वह थकते नहीं।
सच तो यह भी है कि यह सिर्फ श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर के जीर्णोद्धार का ही मामला नहीं है। यह पूरी तरह से नकारात्मकता से लड़ने का ऐलान है। यहां सिर्फ मंदिर के जीर्णोद्धार ही नहीं बल्कि हर दकियानूस सोच से भी लड़ने की बात है। आप इसे (जीर्णोद्धार कार्य को) महज एक मंदिर का जीर्णोद्धार समझ रहे हैं तो आप गलती पर हैं। मंदिर तो रोज कहीं न कहीं बन रहे हैं, कहीं न कहीं टूट रहे हैं। 1992 से बंद पड़े इस मंदिर के निर्माण को अपने दम पर दोबारा चालू करना कोई हंसी-ठट्ठा नहीं। यहां बात सकारात्मक सोच की है। भक्ति की शक्ति की है। प्रभु की कृपा की है। शक्तियां तो होती ही हैं। 84 लाख योनियों में सब तरह की शक्तियां हैं, योनियां हैं। अगर किसी का नुकसान हुआ हो तो क्या यह संभव नहीं कि उसे फायदा भी हो? मामला सोच का है। गिलास में आधा पानी है, आधा खाली। अब यह आप पर निर्भर है कि आप उसे आधा भरा मानते हैं या आधा खाली? लिहाजा, श्री सरयू राय ने उन तथाकथित आसुरी शक्तियों को, नकारात्मक प्रभाव को नष्ट करने के मकसद से जो शंखध्वनि करवाई, जो मंत्रोच्चार करवाया, जो अन्य दैवीय-सकारात्मक उपक्रम करवाए, वो सब सकारात्मकता से परिपूर्ण और दैवीय शक्तियों के आह्वान के प्रतिबिंब ही तो थे! यह माना जा सकता है कि परमात्मा ने उनका चयन इस निमित्त भी किया हो कि वही श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार करें।
अगर आप जमशेदपुर के ही रहने वाले हैं तो आपको याद दिलाने की जरूरत नहीं कि इस मंदिर परिसर की क्या हालत थी? लोग कैसे डरते थे इधर आने से। अब आप जरा एक बार घुम कर आएं तो समझ में आएगा कि सकारात्मक सोच की परिणति क्या हो सकती है! अब तो मंदिर का सौंदर्य देखते ही बनता है। माहौल शांत है। यहां आकर आपको एक सकारात्मक ऊर्जा की अनुभूति होती है। भक्ति-भाव महसूस करेंगे आप। इस परिसर में अभी निर्माण कार्य लंबा चलना है। कम से कम दो-तीन साल और। लेकिन, शुरूआती काम से ही जब मंदिर इस कदर खूबसूरत दिख रहा है तो आप अंदाजा लगा लें, दो साल बाद यह कितना भव्य दिखेगा। अब मंदिर परिसर में महिलाएं आती हैं, बैठती हैं। पुरुष भी आते हैं, बैठते हैं। महिलाएं भक्तिभाव से श्री हरि विष्णु के भजन गाती हैं। ये महिला भक्तों की टोली कहीं से प्रायोजित नहीं। ये स्वत: आती हैं, श्री हरि चर्चा करती हैं और अपने घर को चली जाती हैं। तो, एक निर्दलीय विधायक के रूप में जमशेदपुर पूर्वी में आशातीत विकास कार्य करवाने वाले श्री सरयू राय ने तमाम व्यस्तताओं के बावजूद जिस तरीके से इस अभियान को शुरू किया, संभाला, लोगों को जोड़ा, इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवा रहे हैं, वह असामान्य है। यह कहा जा सकता है कि बिना विशेष ईश्वरीय कृपा के यह असंभव था। यही बात बीते शनिवार को पटना महावीर मंदिर के संरक्षक आचार्य किशोर कुणाल भी कह गये हैं।